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भारत की सनातन संस्कृति के खिलाफ है सरकार की सीएए की चाल

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मुनेश त्यागी 

     भारत की सरकार आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर की जा रही अपनी तमाम कोशिशें से संतुष्ट नहीं दिखती और अंत में चुनाव से ठीक पहले वह नागरिक संशोधन कानून यानी सइएए, लेकर आई है। इस कानून के तहत जारी सूचना में कहा गया है कि दिसंबर 3,  2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान के जो हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई शरणार्थी भारत में आ गए थे अब वे सारे शरणार्थी भारत के नागरिक बन जाएंगे।

     इस कानून के बाद इन देशों से आए अल्पसंख्यक गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। सरकार का कहना है कि दिसंबर 2014 तक भारत आए प्रताड़ित गैर मुस्लिम प्रवासियों को भारत की नागरिकता देनी मिलनी शुरू हो जाएगी। सरकार का कहना है कि इस कानून से असम, मेघालय और त्रिपुरा के ट्राइबल इलाके मुक्त होंगे और इसी के साथ-साथ यह अरुणाचल प्रदेश मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों में लागू नहीं होगा।

    यह विवादित कानून दिसंबर 2019 में पारित हो गया था मगर तब से लेकर आज तक सरकार ने इसे लटकाए रखा। इसका क्या कारण था? अगर सरकार इन देशों से आए इन शरणार्थियों के प्रति इतनी ही चिंताग्रस्त थी तो उसने तभी इस कानून को लागू क्यों नहीं कर दिया था? 

     भारत के अधिकांश विपक्षी दलों जिन में कांग्रेस, सीपीएम, आप पार्टी, त्रिमूल, कांग्रेस, सपा तेलुगू देशम शामिल हैं, ने इसका जमकर विरोध किया है। विरोध करने वालों में केरल के मुख्यमंत्री पिन्नराई विजयन, तमिलनाडु के एमके स्टालिन, दिल्ली के अरविंद केजरीवाल और बंगाल की ममता बनर्जी ने इसका जोरदार विरोध किया है।

      इन सभी का कहना है कि यह सरकार का एक विभाजनकारी एजेंडा है और वह पूरे भारत मे हिंदू मुसलमान के बीच ध्रुवीकरण पैदा करके वोट हासिल  करके सत्ता में बने रहना चाहती है। चुनाव से ठीक पहले सरकार द्वारा इस विवादित कानून को लाना उसकी मंशा पर बहुत सारे सवाल खड़े करता है।

     आखिर क्या कारण है कि सरकार पांच साल पहले पारित किए गए इस कानून को लागू नहीं कर पाई और अभी कौन सी परिस्थितियों पैदा हो गई हैं कि सरकार इसे चुनाव से ठीक पहले लेकर आई है। भारत में चुनावी तैयारियां जोरों पर हैं, सरकार पूरी जी जान लगाकर चुनाव की तैयारी में डटी हुई है, वह टिकट वितरण कर रही है, इस बीच उसे क्या सूझा कि वह इस कानून को लेकर आई है?

     इसके पीछे लगता है कि सरकार “चार सौ पार” के नारे के साथ अपनी तैयारी से खुश और संतुष्ट नहीं है।  वह सर्वोच्च न्यायालय के इलेक्टोरल बोंड्स पर आये फैसले से भयभीत हो गई है। उसे लगता है कि यह सब करने के बाद बावजूद भी वह सत्ता तक नहीं पहुंच रही है, इसलिए उसने आखिरी दवा के रूप में इस अस्त्र का प्रयोग किया है और वह इस कानून को लेकर आ गई है। देश में दंगे हों ,हिंसा बढे, इसे लेकर सरकार को कोई चिंता नहीं है।

    इस कानून के लागू होने के बाद देश में अल्पसंख्यकों में डर का माहौल पैदा होगा, इससे जनता में हिंदू मुसलमान के नाम पर विवाद होने की गुंजाइश बढ़ जायेगी, जनता में आपकी तनाव बढ़ेगा और इसे पूरे देश में हिंदू बनाम मुसलमान की लड़ाई शुरू हो जाएगी, हिंदू मुसलमान के ध्रुवीकरण का संघर्ष अपने चरम पर पहुंच जाएगा, इसके बाद पूरा चुनाव हिंदू बनाम मुसलमान में हो जाएगा और सरकार का मानना है कि ऐसी स्थिति में उसे हिंदुओं के वोट और ज्यादा संख्या में मिलेंगे और वह आसानी से सत्ता में आ जाएगी।

     मगर यहीं पर सवाल उठता है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जो मुसलमान वहां की संप्रदायिक ताकतों का विरोध कर रहे हैं, उनके खिलाफ लिख पढ़ रहे हैं, उनकी जन विरोधी नीतियों का विरोध कर रहे हैं, उनकी धर्मांधताओं और अंधविश्वासों का विरोध कर रहे हैं, उन सबको भी धर्म के आधार पर बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया है, उनका दमन किया गया है, उनके साथ हिंसा की गई है और उनको अपना देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। क्या वे मुसलमान आदमी नहीं है? इंसान नहीं है? 

    अगर वे अपनी जान बचाकर भारत में आ गए तो सरकार उन्हें शरणार्थी मानकर नागरिकता देने को तैयार क्यों नहीं है? क्या यह सरकार की अमानवीय नीतियों का प्रमाण नहीं है? जब उपरोक्त देशों में सभी धर्म के लोगों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो रहा है तो उसमें मुस्लिम शरणार्थियों को बाहर क्यों किया जा रहा है? उनके भारत में आने पर सरकार को क्या आपत्ति हो सकती है? 

    2014 से पहले भारत में आने वाले जिन धर्मों के लोगों को नागरिकता मिलेगी, उनकी संख्या 31, 313 है, जिनमें 25,447 हिंदू, 5,807 सिख, 55 ईसाई, दो बौद्ध और दो पारसी हैं। इस अवधि में कितने मुसलमान बाहर से आए, उनकी संख्या कितनी है, उसे बताने से सरकार क्यों भाग रही है? हमारा मानना है कि इनकी संख्या भी नग्न ही है, इसलिए सरकार इनका खुलासा नहीं कर रही है। वैसे भी ये मुसलमान भी तो धर्म आधारित हिंसा और उत्पीड़न का शिकार ही होंगे, तो फिर धर्माधारित उत्पीड़न और हिंसा के शिकार भारत में शरण लेने वाले मुसलमानों को नागरिकता के अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है? क्या ये इंसान नहीं है? सरकार की यह बात बिल्कुल समझ से परे है। यह पूरे तौर से धार्मिक भेदभाव है।

     वैसे भी हमारी सरकार विश्वगुरु बनने का दिन रात प्रचार करती रहती है। वह पूरी दुनिया को बता रही है  कि भारत दुनिया का विश्व गुरु बन गया है। हम सरकार से पूछते हैं कि वह कैसा विश्व गुरु है? जो बाहर से आने वाले चंद मुसलमान की संख्या नहीं बता रहा है और अगर कुछ धर्म पीड़ित और हिंसा के शिकार कुछ असहाय मुसलमान हमारे देश में आकर बस जाएंगे तो उनसे किसी को क्या परेशानी है? भारत तो बहुत बड़ा देश है, यहां की जनता का दिल बहुत बड़ा है, वह इन हिंसा और उत्पीड़न के शिकार मुसलमानों को भी रखने, खाने-पीने और रहने का इंतजाम कर देंगी, इससे किसी को परेशानी होने वाली नहीं है। इससे सिर्फ और सिर्फ सरकार को परेशानी हो रही है।

     वैसे भी हमारी सनातन परंपरा रही है कि हमारे देश में जो भी कोई बाहर से आया है, हमने उसका सदैव स्वागत किया है और इन बाहर से आने वाले लोगों में हूण, शक,  कुशाण,  मंगोल, पठान हजारों लाखों की संख्या में लोग शामिल हैं। वे यहां आकर बस गए। उन्होंने भारत की सभ्यता से सीखा, उसको प्रभावित किया और आज इन्हीं सब की मिली जुली संस्कृति हमारे भारत में काम कर रही है।

     हमारा भारत तो पहले से ही “विश्वबंधुत्व” और “वसुधैकुटुंभकम्” की बात करता है। इसी मान्यता और सभ्यता के तहत बाहर से आने वाले लोगों को यहां बसने दिया गया और रहने दिया गया है और वे हजारों साल से यहां रह रहे हैं। इस सरकार को उन पर तो कोई आपत्ति नहीं है, उसे केवल चंद मुसलमानों के आने पर आपत्ति है। सरकार की यह नीति और मान्यता एकदम मानवीयता के खिलाफ है और भारत की सनातन संस्कृति और सभ्यता के उसूलों खिलाफ है। भारत के सनातन धर्म के खिलाफ है। इसे किसी भी दशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

     सरकार द्वारा इस नाजुक वक्त पर लाया गया यह कानून पूरी तरह से अनुचित है, यह संविधान की धारा 14 का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है। यह नागरिकों के मौजूदा अधिकारों को छीनने का एक खेल है। यह कानून सरकार की विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए लाया गया है। यह कानून चुनाव से ठीक पहले लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश है। यह कानून एकदम विभाजनकारी है और यह हिंदू मुस्लिम की आपसी नफरत बढ़ाकर ध्रुव्रीकरण की साजिश का एक बड़ा हिस्सा है। इसे किसी भी दशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसका पुरजोर विरोध किया जाना चाहिए। यह कानून सरकार के विश्वगुरु बनने के अभियान, भारत की सभ्यता, संस्कृति सनातन धर्म और साझी संस्कृति के सिद्धांतों के बिलकुल खिलाफ है।

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