मुनेश त्यागी
आज यानि 10 मई 1857 के दिन मेरठ शहर दुनिया में क्रांति का प्रतीक बन गया। भारत की जनता के दिलों दिमाग में छा गया। भारत के इतिहास का सबसे बड़ा और सबसे स्वर्णिम दिन है आज का दिन। आज भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का 166वां अवसर है। यह लड़ाई हमारे मेरठ से शुरू हुई थी। 10 मई 1857 दिन रविवार, की क्रांति अचानक हुई क्रांति नहीं थी, बल्कि आजादी के लिए एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा थी, जिसकी तैयारियां पिछले चार सालों से चल रही थीं।
इस क्रांति का उद्देश्य अंग्रेजों को मार भगाना, भारतवर्ष को फिरंगियों की गुलामी से आजाद कराना, फिरंगियों की लूट से, अत्याचार से और शोषण से जनता और देश को बचाना थे। इसका नारा भी था “मारो फिरंगी को”। इस क्रांति के कारण आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक थे। इस क्रांति के वे कारण थे जिनकी वजह से जनता में अंग्रेजो के खिलाफ त्राहि-त्राहि मच गई थी और उसने अपना सब कुछ कुर्बान करने की ठान ली थी और आजादी पाने के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करने की नियत से क्रांति की जंग में कूद गई थी।
इस क्रांति के नेता बहादुर शाह जफर, नाना साहेब, अजीमुल्ला खान, महारानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, वीर कुंवर सिंह, तात्या टोपे, मौलाना अहमद शाह और बेगम हजरत महल के प्रधानमंत्री बाल कृष्ण सिंह, मातादीन, धनसिंह कोतवाल आदि थे।
इस क्रांति के लिए फ्रांस, इटली, रूस, क्रीमिया, ईरान आदि देशों से संपर्क किया गया था जो अजीमुल्ला खां ने किया था। इसमें सिपाहियों, किसानों, मजदूरों, जनजातियों, राजा-रानियों, नवाबों-बेगम और आम जनता के लोगों ने भाग लिया था।
उस समय के महान दार्शनिक कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने इंग्लैंड में बैठकर इस लड़ाई का पूरा जायजा लिया था और उन्होंने कहा था कि अंग्रेज जिसे सिपाहियों की लड़ाई यानी “सिपोई वार” कह रहे हैं, यह फौजी बगावत नहीं है, बल्कि यह सचमुच राष्ट्रीय विद्रोह है और इसे राष्ट्रीय महाविद्रोह की संज्ञा दी थी और उन्होंने इसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया था।
आजादी के इस युद्ध को आगे बढ़ाने के लिए और चलाने के लिए एक युद्ध संचालन समिति का गठन किया गया था जिसमें आधे हिंदू थे और आधे मुसलमान थे। इस संग्राम की सबसे बड़ी विरासत थी हिंदू मुस्लिम एकता की विरासत। यह लड़ाई हिंदू मुस्लिम जनता और नेताओं की लड़ाई का मिलाजुला परिणाम थी। इस लड़ाई में हिंदू मुस्लिम एकता को, बहादुर शाह जफर और मुकुंद, नानासाहेब और अजीमुल्ला खान, महारानी लक्ष्मी बाई और गौस खान और जमा खान, मैंमनसिंह जिले के कदीम खान और वृंदावन तिवारी, बेगम हजरत महल और उनके प्रधानमंत्री बालकृष्ण सिंह आगे बढ़ा रहे थे।
यह लड़ाई मेरठ से शुरू हुई थी जिसमें 85 सैनिकों को अलग-अलग सजा दी गई थी। कमाल की बात यह है कि इन 85 सैनिकों में 53 मुस्लिम और 32 हिंदू सिपाही शामिल थे जिनको अंग्रेजों ने बड़ी बड़ी सजाएं दी थी। यह हिंदू मुस्लिम एकता भारतीय इतिहास की अनूठी मिसाल थी।
यह लड़ाई हमारी कुछ कमियों की वजह से हम हार गए। इसके मुख्य कारण थे हमारे अंदरूनी झगड़े, सेनापतियों की अनुशासनहीनता, हुकुम ऊदूली, हमारे राजाओं, सामंतों और नवाबों द्वारा क्रांति के साथ की गई गद्दारी, जिसमें जियाजीराव सिंधिया, जगन्नाथ सिंह, हैदराबाद का निजाम और बहादुर शाह जफर का समधि इलाही बख्श, सलार गंज, गोरखा और सिख सामंत, गद्दार दुल्हाजू और गद्दार मानसिंह शामिल थे जिन्होंने उस स्वतंत्रता संग्राम की और अपने नेताओं की मुखबिरी की, हमारी सेनाओं का, हमारी युद्ध संचालन समिति के फैसलों की जानकारी अंग्रेजों को देते रहे और अंग्रेज समय से उनकी काट ढूंढते रहे।
यह आजादी की लड़ाई हमारे लिए कुछ कामयाबियां, कुछ गुण, अनुभव, दांव पेंच, कमियां और खामियां छोड़ कर गई है। इसने हिंदुस्तानियों में मनुष्यत्व का बोध जगाया, उनको एक दूसरे के लिए अपनी जान कुर्बान करना सिखाया, उनको लड़ने वाला इंसान बनाया। इसने चीन को गुलाम होने से बचाया, भारत का सर्वनाश होने से बचाया और अंग्रेजों की विजेता होने की और सुपरनैचुरल होने की मान्यता को भंग किया और यह धारणा मजबूत कि कि अंग्रेजों को युद्ध में बाकायदा हराया जा सकता है।
इस महान आजादी की लड़ाई ने एक बहुत मूल्य विरासत छोडी है,,,,,भारतीयों की, हिंदू-मुस्लिम एकता की विरासत। इसने भारतीयों के अंदर स्वाभिमान जगाया, उन्हें मूल्यों के लिए लड़ना सिखाया और मरना सिखाया। अंग्रेजों के हौसले और महत्वाकांक्षा को बाकायदा तोड़ डाला। इसने भारतीयों को सिर उठाकर चलने, संगठन बनाने और संघर्ष करने का अवसर प्रदान किया। इस जंग ने भारतीयों को सीना चौड़ा करना और उन्हें सिखाया कि वे अपने और दूसरों के लिए लड़ मर सकते हैं और अपना सब कुछ कुर्बान कर सकते हैं, अपना सब कुछ स्वाह कर सकते हैं, अपना तन मन धन देश की आजादी के लिए न्योछावर कर सकते हैं और अपने अंदरूनी झगड़ों और मतभेदों को भुला सकते हैं। यह जंग यह भी सीख देती है कि अपने अंदरूनी झगड़ों को अंदरूनी मतभेदों को भुलाए बिना हम किसी लड़ाई, किसी जंग को नहीं जीत सकते।
क्रांति की इस महान लड़ाई ने हमें सिखाया कि हम अपनी आजादी हासिल करने के लिए अपनी जान तक दे सकते हैं और किसी भी प्रकार की ज्यादती, अत्याचार और जुल्मों सितम का सामना कर सकते हैं और उसका अंत कर सकते हैं। इस क्रांति की लड़ाई ने हमें यह भी सीख दी कि सामाजिक परिवर्तन करने के लिए क्रांतिकारी कार्यक्रम, क्रांतिकारी नेतृत्व, क्रांतिकारी संगठन, क्रांतिकारी अनुशासन और क्रांतिकारी जनता का एकजुट संघर्ष बेहद जरूरी है, इस सबके बिना कोई क्रांति सफल नहीं हो सकती।
हमारी आजादी के स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों ने जो सपने देखे थे, वे अभी भी अधूरे हैं। यहां की अधिकांश जनता भूखी है, प्यासी है, बिना समुचित शिक्षा के, बिना जरुरी रोजगार के, बिना प्रयाप्त रोटी कपड़ा मकान के हैं, अभी वह लडाई अधूरी है, पूरी नहीं हुई है।
अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में जनता को दूसरी लड़ाई यानी जनता की जनवादी क्रांति और समाजवादी व्यवस्था के लिए तैयार करें और हिंदू मुस्लिम एकता और किसानों मजदूरों की एकता की विरासत को आगे बढ़ाएं।