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अटल जी की महामूर्खता – कारगिल

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अरूणेश सी दवे

सन 65 की जंग में हमसे कई गुना बेहतर हथियारों से लड़ रहे पाकिस्तान को भारतीय सैनिकों ने अपनी जांबाजी से रोका। इसके बाद महज 5 सालों में इंदिरा गांधी और रक्षा मंत्री चव्हाण ने भारतीय सेना का कायापलट कर दिया। 71 की जंग के 1 साल पहले बने सेना अध्यक्ष जनरल मानेक शॉ ने इतिहास का एकमात्र ऐसा युद्ध जिसकी पहल भारतीय सेना ने की थी को जीतकर पाकिस्तान को धूल चटा दी।

इस जीत के कुछ ही वक्त पर बाद इंदिरा गांधी ने परमाणु विस्फोट कर भारत को परमाणु शक्ति बना दिया।

अब भारत पाकिस्तान के सामने एक ऐसी अपराजेय शक्ति थी जिससे न लड़ने की ताकत पाकिस्तान में थी और ना ही उसके पास परमाणु शक्ति। सियाचिन पर जब भारत ने कब्जा किया तो पाकिस्तान तिलमिलाकर रह गया। ऑपरेशन कारगिल का प्लान जिया उल हक की टेबल पर था। लेकिन वह जानता था कि ऐसा होते ही भारत हमला कर देगा और पाकिस्तान के पास उसे रोकने की शक्ति नहीं है। 

कश्मीर इनसरजेंसी के वक्त  जब कश्मीर की जनता पूरी तरह भारत के खिलाफ हो चुकी थी तब भी वह हमला करने का साहस नहीं जुटा पाया।

इसके बाद आए अटल बिहारी बाजपेई जिन्होंने सत्ता पर काबिज होते ही एक और परमाणु बम का धमाका करने का निर्णय ले लिया। उनका इरादा भारत को घोषित रूप से परमाणु शक्ति बनाने का था। तर्क ये था कि ईसाई बौद्ध यहूदी सभ्यताओं के पास परमाणु हथियार है तो हिंदुओं के पास भी होना चाहिए। क्या उन्होंने ऐसा करने के पहले आर्मी और रॉ के चीफ से मशवरा किया था?  क्या भारत की सिक्योरिटी इस्टैब्लिशमेंट को यह जानकारी नहीं थी कि पाकिस्तान परमाणु ताकत बनने से महज एक परमाणु धमाका दूर है? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब हमें शायद ही कभी मिले क्योंकि परमाणु विस्फोट के झूठे दंभ की डुगडुगी की के बीच सवाल पूछने का चलन हमारे देश में नहीं है।

जब हिंदुस्तान इस धमाके का जश्न मना रहा था तब पाकिस्तान अपने बम विस्फोट की तैयारी कर रहा था। पश्चिमी देशों के भारी दबाव के बावजूद उसने अपना परमाणु विस्फोट कर दिया और 26 सालों से चला आ रहा भारतीय सेना का दबदबा एक क्षण में समाप्त हो गया। पाकिस्तान की एक परमाणु ताकत बन चुका था। इसकी मिसाइल केवल 4 मिनट में आपके सारे उत्तरी शहरों पर परमाणु बम गिरा सकती थी।

इस गलती का एहसास अटल बिहारी बाजपेई को बहुत जल्द ही हो गया था। आनन-फानन में लाहौर बस यात्रा, जिन्ना की मजार पर फूल चढ़ाना एक ऐसी शांति का खोखला प्रयास था जिसके लिए परमाणु बम लेकर नाच रही पाकिस्तान की सेना कभी भी तैयार नहीं होती।

जल्द ही इसका नतीजा सामने आ गया जब पाकिस्तान ने कारगिल में हमला कर दिया। लेकिन पाकिस्तान परमाणु शक्ति बनने की खुशी में यह भूल गया था कि दुनिया की महाशक्तियां दो परमाणु ताकतों के बीच जमीनी युद्ध को कभी भी बर्दाश्त नहीं करेगी। एक बार फिर भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति से यह असंभव सा युद्ध जीत कर दिखाया।

इसके बाद 10 साल तक पाकिस्तान ने संसद पर हमला, मुंबई हमला, सीमा पर सैनिकों के गले काट ले जाना, देश भर में बम धमाके, एक के बाद एक भारत की प्रतिष्ठा को ध्वस्त कर देने वाले आतंकवादी हमले जारी रखे। भारत ने 2003 से लेकर 2010 तक  बलूचिस्तान और अफगान पाकिस्तान सीमा में पाकिस्तान के खिलाफ ऐसा आतंकवादी नेटवर्क तैयार किया की तब जाकर पाकिस्तान ने घुटने टेके और दोनों देशों ने ट्रैक टू डिप्लोमेसी के जरिए एक दूसरे के देशों में आतंकवादी हमलों को सपोर्ट ना करने का निर्णय लिया। हालांकि आज भी छिटपुट तौर पर  टिट फार टैट चल ही रहा है।

अपने जीवन काल में मैंने कभी किसी पत्रकार कोअखबार में या टीवी पर अटल जी के इस ब्लंडर का उल्लेख करते तक नहीं सुना। पाकिस्तानी पत्रकार नजम सेठी की कारगिल और दीगर युद्धों पर सीरीज देखी तक मेरे दिमाग की खिड़की खुली।

मजे की बात यह है कि परमाणु बम धमाका, कारगिल युद्ध और आतंकवादी हमलों का भाजपा को सीधा फायदा हुआ। शायद अटल जी मुझसे ज्यादा दूरदर्शी थे और उन्होंने परमाणु धमाका कुछ सोचकर ही किया था।

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