एस पी मित्तल, अजमेर
गुजरात की सीमा राजस्थान से लगी हुई है। बांसवाड़ा, डूंगरपुर आदि जिलों के आदिवासी क्षेत्र गुजरात तक है। ऐसे में गुजरात के चुनाव परिणामों का असर राजस्थान में होना स्वाभाविक है। राजस्थान में मात्र 11 माह बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। पहले बात भाजपा नेताओं की। राजस्थान में ऐसे कई भाजपा नेता है जिन्हें लगता है कि उनके बिना पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती है। ऐसे नेताओं को गुजरात के परिणाम से ज्यादा सबक लेने की जरूरत है। सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के गृह प्रदेश गुजरात में चुनाव से एक वर्ष पहले पूरे मंत्रिमंडल को बदल दिया गया। चुनाव के समय टिकट बंटवारे में भी विधायकों के टिकट काटे गए। यानी गुजरात में नए और युवा कार्यकर्ताओं को आगे लाया गया। पीएम मोदी और अमित शाह की देखरेख में जो बड़ा बदलाव किया गया, उसी का परिणाम रहा कि 182 में से 156 सीटें भाजपा को मिल गई। यानी गुजरात में प्रादेशिक नेताओं के भरोसे चुनाव नहीं लड़ा गया। भाजपा के चेहरे के तौर पर कमल के फूल के साथ साथ मोदी और शाह का ही चेहरा था। गुजरात का आज कोई नेता यह नहीं कहा सकता कि चुनाव में उसके भरोसे जीत हुई है। यह सही है कि हार्दिक पटेल जैसे नेताओं के भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई। लेकिन हार्दिक पटेल भी यह दावा नहीं कर सकते कि उनके दम पर भाजपा को इतनी बड़ी जीत मिली है। असल में गुजरात की जनता का भरोसा मोदी और शाह पर है। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व चाहता है कि जिस रणनीति के तहत गुजरात में चुनाव लड़ा गया वही रणनीति राजस्थान में भी अपनाई जाए। राष्ट्रीय नेतृत्व गुजरात के परिणाम से बेहद उत्साहित है। राजस्थान में उन नेताओं को सबक ले लेना चाहिए कि जो यह दावा करते हैं कि उनके उम्मीदवार होने पर ही भाजपा की जीत होगी।
कांग्रेस नेता भी सबक लें:
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बार बार यह दावा कर रहे हैं कि इस बार उनकी सरकार रिपीट होगी। सब जानते हैं कि सीएम गहलोत गुजरात के सीनियर ऑब्जर्वर थे, गुजरात में कांग्रेस की रणनीति गहलोत के दिशा निर्देशों पर ही तय हुई। गहलोत ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गुजरात में भी गिनाई और यह वादा किया कि कांग्रेस की सरकार बनने पर गुजरात में राजस्थान का मॉडल लागू किया जाएगा। लेकिन गुजरात के मतदाताओं ने राजस्थान के मॉडल को नकार दिया। इससे सीएम गहलोत को सबक लेना चाहिए। मतदाता चाहे राजस्थान का हो गया गुजरात का। चुनाव में उसकी सोच एक जैसी ही होती है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सरकार शहर के उपचुनाव में मिली जीत को कांग्रेस की बहुत बड़ी उपलब्धि बताया है। आमतौर पर उपचुनाव के परिणाम सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में ही जाते हैं। डोटासरा चाहते कितने भी दावे करें, लेकिन सरदारशहर के उप चुनाव में सरकार के खिलाफ ज्यादा वोट पड़े हैं। विजयी कांग्रेस प्रत्याशी अनिल शर्मा को 91 हजार 357 मत मिले हैं, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के अशोक पीचा को 64 हजार 505 मत मिले हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस 26 हजार 852 मतों से जीती है। लेकिन यदि आरएलपी के उम्मीदवार लालचंद मूड को मिले, 46 हजार 752 मतों को भी सरकार के खिलाफ मान लिया जाए तो सरकार के विरोध में 1 लाख 11 हजार 258 वोट पड़े हैं। सरकार के पक्ष और विपक्ष में पड़ेे मतों से डोटासरा को कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच विवाद अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। भले ही राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा में दोनों नेता एक साथ नजर आ रहे हों, लेकिन मुख्यमंत्री के पद हो लेकर दोनों के समर्थक आमने सामने हैं। सीएम गहलोत, सचिन पायलट को कई बार सार्वजनिक तौर पर अपमानित कर चुके हैं। हालांकि इस अपमान का पायलट ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। लेकिन उन्होंने गहलोत के शब्दों पर दु:ख प्रकट किया है। सीएम गहलोत पायलट को भले ही अपमानित करें, लेकिन राहुल गांधी सचिन पायलट को कांग्रेस के लिए असेट मानते हैं। माना जा रहा है कि 18 दिसंबर को जब राहुल गांधी की यात्रा राजस्थान से गुजर जाएगी तब सचिन पायलट को लेकर कोई बड़ा निर्णय होगा।