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जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- हाजी उस्मान सेठ

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निर्मल कुमार शर्मा

क्या इस बात पर यकीन किया जा सकता है,कि स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान करने के लिए इसी भारतवर्ष में एक ऐसा बहादुर,दिलेर, दानवीर भी था जो अपने बेटे को ही नीलाम करके उससे मिले पैसे को ब्रिटिशसाम्राज्यवाद के खिलाफ लड़े जा रहे स्वतंत्रता संग्राम की जंग को समर्पित कर दिया था ! इसका उत्तर हां में है ! वे महादानी वीर थे बैंगलोर शहर के सबसे सुप्रतिष्ठित और रईस मुस्लिम व्यापारी के घर वर्ष 1987में जन्मे हाजी उस्मान सेठ ! इनके पिता जी का गुजरात राज्य के कच्छ में भी कपड़ों का बहुत बड़ा व्यापार था ।
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार हाजी उस्मान सेठ वर्ष 1919में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे,इसी दौरान उनका प्रगाढ़ परिचय महात्मा गांधी और अली बंधुओं से हुआ,वर्ष 1920 में स्वतंत्रता संघर्ष के इस आंदोलन में पैसों की भारी कमी हो गई,इसके समाधान के लिए महात्मा गांधी,जवाहरलाल नेहरू और अली बंधु हाजी उस्मान सेठ के यहां मदद मांगने गए। तब वे बगैर ज्यादे आगे-पीछे सोचे ही इण्डियन नेशनल कांग्रेस के नाम एक ब्लैंक चेक व दस किलो सोने के जेवरों से भरा एक बड़ा बैग गांधीजी को पकड़ा दिया और कहा कि ‘आप नाश्चिंत रहें,मेरे पास जो कुछ भी है वो अपने देश की आज़ादी के लिए ही है,जब भी देश को जरूरत होगी मैं उसे नि:संकोच देने के लिए सदैव सहर्ष तैयार रहूंगा ! ‘अपने वतन की भलाई के लिए किए अपने वादे को उन्होंने भविष्य में शिद्दत और बेहद बेहद ईमानदारी से निभाया भी !

हाजी उस्मान सेठ ‘कांग्रेस के कैश बैग ‘के नाम से मशहूर थे !

           हाजी उस्मान सेठ स्वतंत्रता संग्राम की मदद के लिए अक्सर ब्लैंक चेक ही दिया करते थे, इसलिए उस दौरान वे 'कांग्रेस के कैश बैग ' के तौर पर काफी मशहूर हुए थे ! इतना ही नहीं वे अपने वतन के लिए अपने पैतृक 27 आलीशान बंगलों को बेचकर,वह सारा धन ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों के खिलाफ लड़े रहे महात्मा गांधी को दे दिए थे ! वे 15 वर्ष तक मैसूर स्टेट कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष पद पर भी रहे ! गांधी जी द्वारा आहूत 3 आंदोलनों में वे जेल भी गए ! उनके इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने से ब्रिटिशसाम्राज्यवाद के कर्णधार गोरे अंग्रेज उनसे बेसद नाराज हो गए ! और अब अंग्रज हुक्मरानों ने उनके व्यापार का बहिष्कार करना प्रारंभ कर दिया ! 

हाजी उस्मान ने व्यापार में घाटा होने के बावजूद अपने 27 बंगलों को बेचकर स्वतंत्रता आंदोलन के मददगार बने !

        इन वजहों से हाजी उस्मान सेठ को अपने व्यापार में भारी घाटा होने लगा ! इसकी क्षतिपूर्ति के लिए उन्हें मजबूर होकर अपनी तमाम संपत्तियों को गिरवी रखना पड़ा और बेचने को भी बाध्य होना पड़ा ! ऐसी विषम परिस्थितियों में भी जब वर्ष 1930 में जब स्वतंत्रता संग्राम लड़ रही इण्डियन नेशनल कांग्रेस कमेटी को फिर एक बार फण्ड की ज़रूरत हुई तो जवाहरलाल नेहरू ने उस्मान सेठ साहब को मदद करने के लिए अनुरोध किया,तब उन्होंने अपने कीमती 27 बंगलो को बेचकर गांधीजी को दान में दे दिया ! हाजी उस्मान सेठ द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में नेशनल कांग्रेस कमेटी को दी गई यह बड़ी राशि आज के हिसाब से 7000 करोड़ रुपये मतलब 70 अरब रूपए आंकी गई है ! बात यहीं नहीं रूकी वे अपनी उस वक़्त की कारोबारी तंगहाली और बर्बादी की फिक्र नहीं की और अपने बड़े बेटे इब्राहिम को ही गिरवी पर रखकर उससे जो रूपए प्राप्त किए उसे कांग्रेस कमेटी के पार्टी फ़ण्ड में जमा करा दिए ! ऐतिहासिक रूप से महाराणा प्रताप के समय में भामाशाह का अक्सर उदाहरण दिया जाता है, लेकिन अपने वतन की खातिर अपने बेटे को गिरवी रख देने की यह मिशाल भारत सहित दुनिया में अन्यत्र कहीं भी मिलना दुर्लभतम् है या ऐसी कोई मिशाल ही नहीं है !  
         ये बात जब गांधीजी को मालूम हुई तब वे कांग्रेस कमेटी की सार्वजनिक सभा में हाजी उस्मान सेठ की कुर्बानियों का हवाला देते हुए कहा कि 'हाजी उस्मान सेठ के हम सभी सदा के लिए कर्ज़दार हो गए हैं। इनके देश के लिए किए अप्रतिम त्याग और बलिदान का बदला चुकाया ही नहीं जा सकता है ! '

विदेशी कपड़ों के बहिष्कार में अपनी दुकान के ही लाखों रूपए मूल्य के कपड़े में आग लगाई !

        गांधीजी से वे इतने प्रभावित हुए कि जब ब्रिटेन के बने कपड़ों की बायकाट करने के लिए विदेशी कपड़ों की होली जलाई जलाई जाने लगी,तब वे अपनी कपड़े की बहुत बड़ी दुकान में रखी लाखों रूपए मूल्य के विदेशी कपड़ों को भी आग के हवाले कर दिया ! वर्ष 1920 -1921 में अंग्रेज़ी स्कूलों के बाईकाट के आंदोलन में हाजी उस्मान सेठ साहब ने इण्डियन नेशनल स्कूल खोलकर गरीब भारतीय लोगों के बच्चों के लिए स्वदेशी पढ़ाई की भी व्यवस्था कर दिया था !
    आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादे खराब होने के बाद हाजी उस्मान सेठ अक्सर बीमार रहने लगे और अन्ततः वर्ष 1932 में बेंगलौर में ही उनका देहावसान हो गया ! 

बेटे इब्राहिम ने 300एकड़ भूमि की सरकारी पेशकश को ठुकराया !
भारत के वर्ष 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य वादियों से स्वतंत्र होने के उपरांत भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने वर्ष 1949में हाजी उस्मान सेठ साहब के बेटे इब्राहिम को,जिन्हें वे पूर्ववर्ती काल में नीलाम भी कर दिए थे,को 300 एकड़ ज़मीन देने की पेशकश की थी,लेकिन हाजी उस्मान सेठ साहब के इस बेटे इब्राहिम ने इतने बड़े जमीन के भूखंड को यह कहते हुए लेने से इंकार कर दिया था !

‘अगर बहुत ज्यादे जरूरी हो तो अपने वतन के लिए मौत को गले लगाने से भी मत हिचको !’- हाजी उस्मान से

सन् 1919 में खिलाफत मूवमेंट में हिस्सा लेकर मुल्क की आज़ादी में कदम रखा तो फिर जब तक जिन्दा रहे आंदोलन के ही होकर रहे।

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बंगलोर में कारोबार शुरू करने से पहले आपके वालिद का कच्छ में कपड़ो का कारोबार था।

बंगलोर में हिन्दुस्तान का पहला मॉल या डिपार्टमेंटल स्टोर ष्कैश बाज़ारष् के नाम से हाजी उस्मान सेठ ने ही खोला था।

मूवमेंट में शामिल होने के बाद आपके मोहम्मद अली जौहर से बहुत क़रीबी ताल्लुक़ात हुए।

उसके बाद महात्मा गांधीजी से बहुत नज़दीकी हुई।

गांधीजी से असरअंदाज़ होकर ही आपने स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत अपने कैश बाज़ार में से अपना विदेशी कपड़ा आग के हवाले करके किया था। उस ज़माने में उन कपड़ो की कीमत लाखों की थी।

सन् 1920.1921 में अंग्रेज़ी स्कूलों के बाईकाट के मूवमेंट मे आपने इण्डियन नेशनल स्कूल खोलकर स्वदेशी पढ़ाई का इंतज़ाम किया।

सन् 1920 में आज़ादी के आंदोलन में जब फण्ड की कमी हुई तो महात्मा गांधी, पं• जवाहरलाल नेहरू और अली बिरादरान आपके पास मदद के लिए आये तो आपने इण्डियन नेशनल कांग्रेस के नाम एक ब्लैंक चेक व दस किलो सोने के जेवरों का बैग गांधीजी को दिया और कहा कि आप बेफिक्र रहें, मेरे पास जो कुछ भी है वो मैं मुल्क की आज़ादी के लिये है। जब जरूरत हो मैं देने के लिये तैयार हूं और बाद में आपने अपने कीमती 27 बंगलो को बेचकर गांधीजी को दान में दिया इन बंगलो की आज की कीमत 10 हजार करोड़ रुपये होती है।

आप कांग्रेस के ऐक्टिव मेम्बर रहते हुए आंदोलनो में भी हिस्सा लेते रहे तथा तीन आंदोलनो में जेल भी गये।

मूवमेंट में मदद करने की वजह से अंग्रेज़ अफसरों की नाराज़गी के भी शिकार रहे।

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आहिस्ता.आहिस्ता उस वक़्त का सबसे बड़ा कारोबारी हाजी उस्मान सेठ तंगहाली में आ गया लेकिन मूवमेंट से क़दम पीछे नही हटाया।

आप मैसूर स्टेट कांग्रेस कमेटी के 15 साल तक सदर रहे।

एक बार आज़ादी के मूवमेंट में सन् 1930 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस कमेटी को फण्ड की ज़रूरत हुई तो जवाहरलाल नेहरू ने उस्मान सेठ साहब को मदद के लिए कहा। आपने अपनी उस वक़्त की कारोबारी तंगहाली और बर्बादी की फिक्र नहीं की और अपने बड़े बेटे इब्राहिम को गिरवी रखकर जो रक़म हासिल की उसे कांग्रेस कमेटी के पार्टी फ़ण्ड में जमा कर दिया।

ये बात जब गांधीजी को पता चली तो उन्होंने कांग्रेस कमेटी के इजलास में हाजी उस्मान सेठ की कुर्बानियों का हवाला देते हुए कहा कि हाजी उस्मान सेठ के हम सभी कर्ज़दार हैं। इनके एहसानों का बदला चुकाया नहीं जा सकता है। माली हालात से कमज़ोर होने के बाद आप बिमार रहने लगे और सन् 1932 में बंगलौर में ही इंतक़ाल कर गये।

आज़ादी के बाद सन् 1949 में प्रधानमंत्री पं• जवाहरलाल नेहरू नें हाजी साहब के बेटे को 300 एकड़ ज़मीन देने की पेशकश की जिसे आपके बेटे ने लेने से इंकार कर दिया

तब जवाहरलाल नेहरूजी ने आपके बेटे इब्राहिम को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया। उस मीटिंग में हाजी साहब के बेटे ने कहा कि हमारे वालिद हाजी उस्मान सेठ ने अपने आख़ीर दिनों में कहा था कि हम तुम लोगो के लिए कुछ छोड़कर नहीं जा रहे हैं। हमने वतन को आज़ाद कराने के लिए तुम्हारे साथ ज़्यादती ज़रूर की है। तुम ख़ुद अपने पैरों पर खड़े हो और जब तक ज़िंदा रहो मुल्क के लिये और अगर जरूरी हो तो मौत को भी गले लगाओ तो मुल्क के लिये।

आपके वारिसों में अभी आपके पोते जनाब मोहम्मद अली जावेद और जनाब मोहम्मद अली यूसुफ बंगलौर में ही रहकर औसत दर्जे की ज़िंदगी बिता रहे हैं लेकिन तीसरी पीढ़ी को भी अपने दादा की कुर्बानी पर फख्र है। 

        हाजी उस्मान सेठ के बेटे इब्राहिम ने कहा कि  "हमारे वालिद हाजी उस्मान सेठ ने अपने आखिरी दिनों में मरने से पूर्व कहा था कि 'मैं तुम लोगों के लिए कुछ भी छोड़कर नहीं जा रहा हूं,मैंने अपने वतन को आज़ाद कराने के लिए तुम सभी लोगों के साथ बहुत ज्यादे ज़्यादती ज़रूर की है,अब तुम लोग ख़ुद अपने पैरों पर खड़े होओ और जब तक ज़िंदा रहो अपने इस वतन के लिये जीओ और अगर बहुत ज्यादे जरूरी हो तो अपने वतन के लिए मौत को भी गले लगाने से मत हिचको !" इसके बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल ने स्वतंत्रता संग्राम को अक्षुण्ण रखने के लिए अपना सर्वस्व त्यागने वाले और वतन के लिए दान देने वाले आधुनिक भामाशाह रूपी हाजी उस्मान सेठ के बेटे इब्राहिम को सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया। आजकल स्वतंत्रता संग्राम में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने वाले हाजी उस्मान सेठ जैसे लोगों को आधुनिक युवा पीढ़ी और सरकार की चमची भांड़ मिडिया ने बिल्कुल विस्मृत कर दिया है ! 

‘भारत छोड़ो आंदोलन ‘ को हर हाल में कुचल देना चाहिए – बीजेपी के लब्धप्रतिष्ठित नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी
दूसरी तरफ आज इस देश में कुछ ऐसे देशद्रोहियों का एक गुट जो भारत की सत्ता पर येनकेनप्रकारेण कब्जा जमा लिया है,जिनके पूर्वजों का इस देश के स्वतंत्रता संग्राम में रत्ती भर भी योगदान नहीं था,उल्टा इनके तत्कालीन बड़े नेता स्वतंत्रता संग्राम के विरूद्ध जाकर इस देश पर अकथनीय जुल्म करनेवाले ब्रिटिश साम्राज्य वादियों को बार-बार इस आशय का अनुरोध कर रहे थे ! कि ‘हमें कांग्रेस द्वारा आहूत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कोई रूचि नहीं है, हमारी पूरी निष्ठा ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति है ! ‘
उदाहरणार्थ बीजेपी के कथित प्रातः स्मरणीय महान नेता श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी भीषण स्वतंत्रता संग्राम के समय देश के साथ क्या कर रहे थे ?उसकी एक बानगी देखिए,जो हम यहां पर प्रस्तुत कर रहे हैं । 26 जुलाई 1942 को बंगाल के गवर्नर को चिट्ठी लिखकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने “भारत छोड़ो आंदोलन ” को हर हाल में कुचलने की सलाह दी थी तथा अंग्रेजी हुकूमत के प्रति अपनी वफादारी दोहराई थी ! उसी का एक अंश देखिए-
“प्रश्न यह है बंगाल में इस आंदोलन मतलब भारत छोड़ो आन्दोलन से कैसे निपटा जाए ? प्रांत का प्रशासन इस तरह से चलाया जाना चाहिए कि कांग्रेस द्वारा हर संभव कोशिश करने के बाद भी यह आंदोलन प्रांत में जड़ पकड़ने में असफल रहे। हम लोगों,विशेषकर जिम्मेदार मंत्रियों को चाहिए कि जनता को समझाएं कि कांग्रेस ने जिस स्वतंत्रता को हासिल करने के लिए आंदोलन शुरू किया है,वह स्वतंत्रता जनप्रतिनिधियों को पहले से ही हासिल है। कुछ मामलों में आपात स्थिति में यह स्वतंत्रता कुछ सीमित हो सकती है। भारतीयों को अंग्रेजों पर भरोसा करना चाहिए ! ” (संदर्भ- ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी,लीव्स फ्राम ए डायरी, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, दिल्ली, पृष्ठ संख्या – 183 )

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आजाद हिन्द फौज में भर्ती युवकों की हत्या करा रहा था !
इसके अतिरिक्त इसी बीजेपी की पितृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जब राष्ट्र नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा गठित ‘आजाद हिन्द फौज ‘में भर्ती हुए युवाओं की निर्ममता पूर्वक हत्या तक करवा रहा था ! यही नहीं यही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू युवकों को राष्ट्र नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा गठित ‘आजाद हिन्द फौज ‘ और इस वतन की कट्टर दुश्मन ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की सेना में सेवा देने के लिए हिन्दू युवकों की तेजी से भर्ती करने के लिए देश भर में कैंप लगाने में शामिल था !

           -निर्मल कुमार शर्मा 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण,गाजियाबाद, उप्र,संपर्क-9910629632, ईमेल - nirmalkumarsharma3@gmail.com
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