आज चेतना मिशन के सूत्रधार/डायरेक्टर हमारे साथी डॉ. विकास ‘मानव
‘ का अवतरण दिवस है। वे कहते हैं~
_*मात्र ‘शरीर-संसार जीवियों ‘ के लिए जन्म दिन उत्सव का नहीं, मातम का सब्जेक्ट होता है। जीवन सतत विकास का नाम है और विकास घटती उम्र के वर्षों की संख्या बढ़ना नहीं, उनमें जीवन जोड़ना है। ऐसा न कर, पूरे एक वर्ष की आयु व्यर्थ कर देने वाले जश्न मनाएं तो तरस आता है उनपर।”*_
ज़ाहिर है वे अपवाद हैं। स्पीड इतनी की ‘लमहों में सदियों का सफ़र’ तय कर लेने वाली।
_जीवन-जगत का शायद ही कोई सब्जेक्ट हो जिसके नीर-क्षीर विवेक में वे सक्षम न हों। तन को रोगी बनाने वाला मन का शायद ही ऐसा कोई रोग हो जिस के निवारण में वे सक्षम न हों।_
और तो और :
*जन्मों बाद समग्र तृप्ति/पूर्णत्व/परमानंद/मोक्ष की व्यवस्था देने वाले धूर्तों-मूर्खो को धता बताकर; सबकुछ इसी जीवन में और वो भी ‘मरने के बाद नहीं, जीते जी’ संभव करने का सरंजाम शग़ल है मानवश्री का।*
_आश्रम, मठ, हॉस्पिटल, ब्रांचेज इसलिए नहीं कि औरों की तरह इन्हें मैनेज करने का व अपनी ऐय्यासी का खर्च आपसे लेना मानवश्री को मंज़ूर नहीं।_
*वे आपको सर्वथा निशुल्क सुलभ हैं और उनके प्रेमियों के तमाम आश्रम/हॉस्पिटल भी।*
ऐसे इंसान का जन्मदिन उत्सव का सब्जेक्ट बनता है।