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क्या आरक्षण से ओबीसी वर्ग के साथ हुआ है अन्याय

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आरक्षण के बाद पंचायत चुनावों में घट जाएगी ओबीसी वर्ग की 26-60% सीटें

कांग्रेस सरकार के परिसीमन से बढ़ जाती 35-40%सीटें होता हर वर्ग को फायदा*

*विजया पाठक,

प्रदेश में पंचायत चुनावों का ऐलान हो चुका है। इसके साथ ही चुनाव आचार संहिता भी लग गई है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश में पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण की अनुमति देने के बाद यह चुनाव हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भाजपा ने खूब मिठाई बांटी और जश्‍न मनाया। संदेश साफ था कि बीजेपी ओबीसी वर्ग की सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है। पर वास्तव में सरकार ने ओबीसी वर्ग के साथ पंचायत चुनाव में बहुत बड़ा धोखा दिया है। दरअसल इस बार आरक्षण के साथ पंचायत चुनाव में ओबीसी वर्ग की सीटें पिछले चुनाव से 26% से 60 % तक घट जाएगी। आंकड़ों में सरकार ने तो 35% का लॉलीपॉप दिया पर वास्तविकता में इस बार ओबीसी वर्ग के कम प्रत्याशी चुने जाएंगे। पिछली बार के पंचायत चुनावों में जनपद अध्यक्ष की कुल 56 सीटें थी, इस बार आरक्षण के बाद ओबीसी वर्ग की करीब-करीब 47% कम हो जाएंगी,  पिछली बार 168 जिला पंचायत सदस्य चुनकर आए थे जो इस बार के करीब 40% कम आएंगे। ऐसा ही ओबीसी वर्ग से पिछले चुनावों में 1280 जनपद सदस्य चुने गए थे जो इस बार 40% तक कम हो सकते है। पिछले पंचायत चुनाव में ओबीसी वर्ग से 4023 सरपंच विजयी रहे थे जो इस बार 26% कम पिछड़े वर्ग से सरपंच आयेंगे। ऐसे में भाजपा ने ओबीसी वर्ग को आगामी चुनावों में बेवक्कूफ बना दिया है। सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के आधार पर आरक्षण किया है उससे पिछड़े वर्ग की सीटें काफी कम हो जाएंगी।

*सिर्फ ओबीसी वर्ग की चिंता का दिखावा किया है शिवराज सरकार ने*

कुछ दिन पहले ओबीसी सम्मान समारोह में यह बात चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था “मैं सच में आज भावनात्मक रूप से आपको बता रहा हूं, कोई पूछे कि 16 साल के मुख्यमंत्री काल में कौनसा सबसे बड़ा काम किया, जिसने मेरे दिल को सुकून दिया?  तो मैं कहूंगा, ओबीसी आरक्षण के साथ हम चुनाव करा पाए”। लेकिन देखा जाये तो चंद ओबीसी वर्ग के लोगों का ही भला कर पाई है शिवराज सरकार। 20 साल से सत्ता के फोकस से बाहर रहे पिछड़ों के आरक्षण पर इस बार मध्यप्रदेश में घमासान मचा हुआ है। मध्यप्रदेश में इनकी आबादी 49% है लेकिन मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट में इस हिसाब से कभी जगह नहीं मिली। कभी अधिकतम 28% मंत्री ओबीसी के रहे हैं। वर्तमान में 25% है जबकि दावे 27 से लेकिन 35% तक आरक्षण देने की हो रही है। पर सरकार में हिस्सेदारी में इसे हमेशा पिछड़ा ही रखा। हाल ही में ओबीसी रिजर्वेशन के साथ चुनाव कराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भाजपा अपनी जीत बता रही है। कांग्रेस कह रही है कि ये तो पहले से ही था, फिर जीत किस बात की। इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच भाजपा और कांग्रेस ने पिछड़ों को सरकार में कितनी हिस्सेदारी दी? इससे आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि सियासत का ये घमासान पिछड़ों को सत्ता देने की छटपटाहट है या चुनावी स्टंट?

*कमलनाथ सरकार ने की थी प्रदेश में ओबीसी रिफॉर्म्स की शुरुआत*

कमलनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में 28 फीसदी पिछड़ों को जगह दी। 29 मंत्रियों में 08 पिछड़ों को स्थान मिला। ओबीसी के लिए रिजर्वेशन बढ़ाकर 14% से 27% कर दिया। इससे पिछड़ों की बात फिर सियासत के केंद्र में आ गई। शिवराज के वर्तमान मंत्रिमंडल में 31 मंत्रियों में सामान्‍य वर्ग के 16, ओबीसी वर्ग  के 08 हैं। सरकार खोने के बाद जब शिवराज की सत्ता में वापसी हुई तो शिवराज ने भी ओबीसी को ज्यादा तवज्जो दी। 04 कार्यकाल में इस बार सबसे ज्यादा 25 फीसदी ओबीसी को मंत्री पद दिए। 2013 की शिवराज कैबिनेट में 35 सदस्य थे। सबसे ज्यादा 18 सामान्य वर्ग के थे। पिछड़े वर्ग के मंत्रियों की संख्या 07 थी। 2008 में भी शिवराज सरकार में 34 मंत्री थे। इसमें पिछड़े वर्ग के 06 और SC के 07 थे। ST के 5 मंत्री थे। जबकि सामान्य वर्ग के मंत्रियों की संख्या 16 थी।

कमलनाथ सरकार की बात करें तो 29 मंत्रियों में 08 पिछड़े और 11 ST-SC के थे। कमलनाथ सरकार में 29 मंत्री थे। इनमें सामान्य वर्ग से 10 और OBC के 08 मंत्री थे। SC से 05 और ST कैटेगरी के 06 मंत्री थे। पिछड़ों की सत्ता में हिस्सेदारी का यह सवाल आरक्षण की सियासत से ही उपजा है। लेकिन ये भी साफ है कि आबादी में 50% से ज्यादा हिस्सा रखने वाले पिछड़े सत्ता में 20 से 22 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं पा सके। जबकि 16%  दलित और 20 फीसदी आदिवासी मंत्रिमंडल में पिछड़ों से कभी कमतर नहीं रहे। इसके अलावा प्रदेश में आबादी के हिसाब से परिसीमन किं घोषणा पंचायत चुनाव में हुई इससे ओबीसी वर्ग के साथ सवर्ण, एससी- एसटी वर्ग सभी की सीटें 30-40 % तक बढ़ जाती।

*आरक्षण से जिलों में कम होगीं ओबीसी वर्ग की सीटें*

प्रदेश में जिला पंचायत सदस्‍यों के लिए जो आरक्षण तय किया गया है उससे प्रदेश के लगभग सभी जिलों में ओबीसी वर्ग को भारी नुकसान हो रहा है। 2015 में 32 जिलों में जिला पंचायत सदस्‍यों के लिए जो 114 सीटें आरक्षित थी वह अब 45 रह गई हैं। इसके साथ ही अन्‍य जिलों में भी कमोबेश यही स्थिति बनने वाली है। इसके साथ ही ग्राम पंचायत चुनावों में भी सरपंच आरक्षण में ओबीसी को लगभग 12 प्रतिशत कम सीटें मिलेगी।

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