मुनेश त्यागी
विभिन्न धर्मों, पार्टियों और समूहों के लोगों के नफरती भाषणों पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय एक बार पुनः बहुत गंभीर है और उसने कहा है कि अब यह सरकार की बारी है क्योंकि नफरती बोल और भाषणों के मामले, सीमा लांघ लांग रहे हैं। इन नफरत भरे भाषणों से समाज में हिंसा, नफरत और बदअमनी फैल रही है।
सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान भारत सरकार के वकील ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि सरकार इस विषय में नए कानून बनाने के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि सरकार अपराधिक कानूनों में व्यापक संशोधन करने पर विचार कर रही है, पीड़ितों को व्यापक और सच्चा न्याय देने की बाबत विचार कर रही है। वह जनप्रिय माहौल बनाने की तैयारी कर रही है।
उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को आगे बताया कि इस विषय में सरकार ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों, भारत के मुख्य न्यायाधीश, सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, न्यायिक संस्थाओं, राष्ट्रीय कानून विश्वविद्यालयों और तमाम सांसदों से सुझाव मांगे गए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने भड़काऊ भाषणों को समाज के लिए एक गंभीर धमकी और खतरा बताया है। उसने कहा है कि इसके लिए तुरंत कार्यवाही की जरूरत है, नाम मात्र की कार्रवाई से काम नहीं चलेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी चैनलों के पक्षपाती रिपोर्टिंग पर गंभीर आपत्ति जताई है। उसने बोलने की आजादी की रक्षा करने और नफरती भाषण बोलने वालों को तुरंत और प्रभावी दंड देने के लिए कहा है।
सर्वोच्च न्यायालय पिछले वर्ष ही ऐसे मामलों में पुलिस द्वारा स्वत: संज्ञान लेकर अपराधियों के खिलाफ तुरंत कार्यवाही करने के आदेश दे चुका है। इसी आदेश के परिपालन में यूपी में चार सौ प्रतिशत वृद्धि हुई है और 581 मामले दर्ज किए गए हैं। उत्तराखंड में नफरती तत्वों के खिलाफ 118 मामले दर्ज किए गए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को आदेश और सुझाव दिए हैं कि तमाम कानूनों का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करें, जिससे अपराधी किसी भी हालत में बच ना पाएं। यह समाज के लिए एक संपूर्ण धमकी और खतरा है। सर्वोच्च न्यायालय ने टीवी चैनलों की गतिविधियों पर भी चिंता व्यक्त की है। उसने कहा है कि एंकरों के खिलाफ कार्यवाही हो, एकतरफा रिपोर्टिंग और खबरों पर रोक लगाई जाए। समाज में शांति, सद्भाव और भाईचारा कायम रखा जाए।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि जनतंत्र को सुरक्षित रखने के लिए प्रेस की आजादी पर नियंत्रण जरूरी हैं। टीवी चैनलों की टीआरपी की बीमारी समाज को बांटने ना पावे। टीआरपी बढ़ाने के लिए टीवी चैनल एक-दूसरे से होड़ करते हैं, खबरों को उत्तेजनापूर्ण और सनसनीखेज बनाते हैं। टीवी, अखबारों के मुकाबले नौजवानों के दिमाग पर ज्यादा असर डालते हैं जिस कारण समाज में नफरत, डर और हिंसा का माहौल पैदा होता है।
उसने आगे कहा है कि एंकर भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। टीवी चैनलों की जनविरोधी, कानून विरोधी, समाज विरोधी, देशविरोधी और संविधान विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाई जानी जरूरी है। ऐसे लोगों पर और चैनलों पर भारी अर्थदंड लगाया जाना जरूरी है। ये चैनल वाले प्रेस की आजादी का दुरुपयोग करते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा है कि इस तरह की भड़काऊ और नफरती रिपोर्टिंग से टीवी चैनल समाज देश और व्यक्ति की शांति भंग करते हैं और कानून के शासन को तोड़ते हैं। अगर चैनलों का इस्तेमाल एक अपराधी ऐजेंडे को बढ़ाने और चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो तब आप जनता या देश की सेवा नहीं कर रहे हैं, बल्कि किसी और एजेंडे को चला रहे होते हैं और किसी अन्य व्यक्ति या अपने मालिक का हित साध रहे होते हैं। उसने कहा कि हालात इतने खराब हैं कि यदि कोई आदमी सच्ची बात कर रहा है जो की इनको पसंद नहीं है तो एंकर उस आदमी की आवाज को म्यूट कर देते हैं। यह कारस्तानी देश, समाज, कानून, संविधान, व्यक्ति और बोलने की आजादी के हित में नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से सवाल किया है कि सरकार प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की तर्ज पर टीवी चैनलों पर नकेल क्यों नहीं कस रही है? उसने कहा कि अब मामला केंद्र सरकार के पाले में है। उसे एक व्यापक, समुचित और प्रभावी कानून बनाना चाहिए, ताकि नफरती बोल बोलकर समाज में हिंसा, नफरत और बदअमनी व डर फैलाने वालों को जेल में डाला जा सके और उनके ऊपर भारी अर्थदंड लगाया जाना चाहिए।
यहीं पर हमारा कहना है कि नया कानून बनाने के मामले में हमारी सरकार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया और तमाम राज्य बार कौंसिलों और अधिवक्ता संगठनों से भी प्रभावी कानून बनाने के बारे में सुझाव मांगने चाहिए और उनकी मदद लेनी चाहिए, क्योंकि वे सब मिलकर एक उम्दा और प्रभावी कानून बनाने में सरकार की मदद कर सकते हैं।
यहां पर हमारा कहना है कि सरकार की जिम्मेदारी के साथ-साथ यहां नफरत परोसने वाले टीवी चैनलों के मालिकों और अखबारों के मालिकों के खिलाफ भी सख्त से सख्त कानून बनाकर, सख्त और प्रभावी कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए और उनके ऊपर भारी अर्थदंड लगाया जाना चाहिए और उस कानून का निष्पक्ष और पारदर्शी व प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया जाना चाहिए, तभी जाकर नफरती भाषण देने वालों और बोलने वालों और उन्हें आगे बढ़ाने वालों के खिलाफ मुकम्मल कार्रवाई की जा सकती है।
हम यहां पर यह भी कहना चाहेंगे कि जब से सर्वोच्च न्यायालय ने नफरती बोल बोलने वालों के खिलाफ सख्ती दिखाई है और आदेश दिए हैं और पुलिस को नफरती बोल बोलने वालों के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेकर मामले दर्ज करने और एफ आई आर दर्ज कर उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए हैं, तब से नफरती बोल बोलने वाले मामलों में काफी गिरावट दर्ज की गई है और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और पुलिस की शक्ति ने अपना रंग दिखाया है।
जब इस विषय में एक सख्त और प्रभावी कानून आ जाएगा और उसका निष्पक्ष और पारदर्शी व प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया जाएगा, अपराधियों को सख्त से सख्त सजा देकर जेल में डाल दिया जाएगा और उन पर भारी अर्थदंड लगाया जाकर वसूला जाएगा और जिन संस्थाओं, संगठनों और पार्टियों के वे सदस्य हैं उन पर भी भारी अर्थदंड लगाया जाना सुनिश्चित किया जाएगा, तो यकीनन समाज में नफरती बोल बोलने वालों पर नकेल डाली जा सकेगी।