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महिला दिवस:’अपराजिता’ के हौसले को सलाम…. हर चुनौती में कुंदन सी चमकी नारी ‘शक्ति’

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ताजनगरी की अपराजिताओं ने अपने हौसले और दृढ़ इच्छाशक्ति से न केवल खुद अपना मुकाम बनाया है, बल्कि दूसरों की उड़ान के लिए जज्बा दिया है। उपलब्धियां संख्या में अधिक न हों लेकिन बड़े बदलाव की धुरी बनी हैं। कोरोना काल में सेवा का कीर्तिमान बनाने वालीं चिकित्सक हैं, वह आठ महीने तक घर से दूर रहीं, दिनभर में 18 घंटे तक काम किया। खिलाड़ी और छात्राएं हैं जिनसे असफलता भी हार मान गई, मुकाम हासिल करने तक यह अपने प्रयासों को बढ़ती गईं। इन अपराजिताओं ने अपने कार्यों से देश, दुनिया तक पहचान नहीं बनाई हो लेकिन जो काम हाथ में लिया खुद को साबित करके दिखाया। आइए, शक्ति के संघर्ष, संकल्प और सफलता की कुछ कहानियों से रूबरू होते हैं।

संघर्ष: डॉ. नेहा दयाल ऐसी ही कोरोना योद्धा हैं, जिनके बलबूते पर ताजनगरी में महामारी पर नियंत्रण रखा जा सका। दिसंबर, 2019 में उनकी शादी हुई और अप्रैल में उन्होंने एसएन मेडिकल कॉलेज में ज्वाइन किया। कोरोना महामारी के दौरान के दौरान 18 घंटे तक वायरोलॉजी लैब में नमूनों की जांच की। इस बीच आठ महीने तक घर नहीं जा र्पाइं। बीते साल नवंबर में संक्रमित भी हुईं। ठीक होने के बाद गाजियाबाद स्थित ससुराल जाने का मौका मिला।

डॉ. भूमिका अरोड़ा ने कोरोना वायरस के मरीजों की जान बचाने के लिए दो बार प्लाज्मा दान किया। जिले में वह सर्वाधिक प्लाज्मा दान करने वाली महिला हैं। उनका पूरा परिवार कोरोना से संक्रमित हो गया था। मां आईसीयू में भर्ती थी, डॉक्टरों ने प्लाज्मा थेरेेपी देने की बात कही। बमुश्किल प्लाज्मा मिल पाया। उन्होंने तब प्रण किया कि ठीक होने के बाद वह प्लाज्मा जरूर दान करेंगी।

संकल्प: जरूरतमंदों के लिए रक्तदान करने के प्रति जागरूकता लाऊंगी। खुद भी रक्तदान करती रहूंगी। मरीजों की सेवा करना ही मकसद है। 

संघर्ष: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की सदस्य दीप्ति शर्मा का टीम इंडिया तक का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा। मां सुशीला शर्मा के संबल से यह संभव हुआ। माध्यमिक विद्यालय में शिक्षिका रहीं सुशीला शर्मा ने बताया कि करियर के शुरुआती दौर में लोग लड़की के घर से बाहर जाने पर ताने कसते, दीप्ति निराश हो जाती। ऐसे में बेटी के साथ खड़ी रही। ताने सुने लेकिन उसे नहीं टोका। हर मां यही करती। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने के बाद मेरे पास ऐसे कई लोगों के बधाई संदेश आए, जो शुरुआती दौर में दीप्ती को नहीं खेलने देने की सलाह देते थे। 

संकल्प: अपनी बच्ची का उदाहरण देकर लोगों को समझाती हूं कि बेटियों को रोको नहीं। वह किसी मायने में कम नहीं हैं।

संघर्ष: आगरा कैंट रेलवे स्टेशन पर 12 साल के लंबे संघर्ष के बाद कुली नंबर 21 मुंद्रा देवी सबकी चहेती हैं। बोझ उठाने में वह किसी पुरुष कुली से कमतर नहीं हैं। वह आगरा रेल मंडल की पहली महिला कुली भी हैं। किरावली के गांव विद्यापुर की रहने वाली मुंद्रा देवी ने बच्चों की पढ़ाई के लिए यह काम शुरू किया। वर्ष 2008 में कुली की भर्ती के लिए आवेदन कर दिया। नंबर मिला 21, कुली की वर्दी पहनकर आगरा कैंट स्टेशन पहुंची तो साथियों ने मजाक उड़ाया। परवाह किए बिना अपना काम करती रहीं। दो बेटों और एक बेटी को शहर में पढ़ा रही हूं। 

संकल्प: मैं पढ़ी-लिखी नहीं हूं। जीवन ने शिक्षा का महत्व समझा दिया है। बच्चों को पढ़ने को प्रेरित करती हूं। उनको पढ़ाने में कोई कमी नहीं होने दूंगी। 

संघर्ष: आराध्या की मां, खेरिया मोड़ निवासी प्रमोद कुमारी कुशवाह की यही पहचान है। उनको इसका गर्व है। बैडमिंटन की अंतराष्ट्रीय खिलाड़ी आराध्या की कामयाबी उनके संघर्ष का फल ही है। बोलीं, मैं खिलाड़ी बनकर देश का नाम ऊंचा करना चाहती थी। मजबूरियों ने आगे नहीं बढ़ने दिया। लेकिन इस सपने को बेटी आराध्या में जीया। जो बचत होती है, उसको आगे बढ़ाने पर लगा देती हूं। घर वाले ताने देते हैं लेकिन बेटी की कामयाबी उनका असर खत्म कर देती है।  
संकल्प: बेटियों को आगे बढ़ाना ही मकसद है। उनको कोई कमी नहीं होने दूंगी। 

संघर्ष: वर्ष 2006 में पति के देहांत के बाद विद्या सिंह पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी थी, रिश्तेदार अधिक मदद नहीं कर सके। लेकिन समस्याओं से टूटी नहीं और मजबूत हुईं। गुजारा चलाने के लिए एक स्कूल में पढ़ाया। खर्च नहीं चल पा रहा था। ऐसे में गत्ते के डिब्बे बनाने वाली फैक्ट्री में भी नौकरी की। यहां काम की बारीकियों से सीखा। बैंक से लोन लेकर और कुछ अपनी बचत से सात साल पहले गत्ते के डिब्बे बनाने वाली इस फैक्ट्री को खरीद लिया। आज एक बेटा होटल मैनेजमेंट, दूसरा बीटेक कर रहा है। सात लोगों को रोजगार दे रही हैं।

संकल्प: फैक्ट्री में महिलाओं को प्राथमिकता से नौकरी देती हूं। उनको मुसीबतों का सामना करने के काबिल बनाना मकसद है।

संघर्ष: आगरा कॉलेज में बीएससी तृतीय वर्ष की छात्रा लक्ष्मी बसवराज ने इस वर्ष आर्मी विंग की सर्वश्रेष्ठ कैडेट के तौर पर राजपथ पर हुए गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लिया। डीजी एनसीसी ने महानिदेशक प्रशंसापत्र से सम्मानित किया। प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने राज्यपाल स्वर्ण पदक प्रदान किया। उन्होंने वर्ष 2019 में भी गणतंत्र दिवस परेड शिविर के लिए प्रयास किया था लेकिन सफलता नहीं मिली। पूर्व गणतंत्र दिवस परेड शिविर तृतीय से बाहर हो गईं। और मेहनत की और वर्ष 2021 में फिर से प्रयास किया और सफलता पाई। 

संकल्प: आर्मी अधिकारी बनना है। उसके लिए जितनी भी मेहनत करनी पड़े, पीछे नहीं हटना है। उन्हें खुद पर पूरा भरोसा है।  
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