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क्या कथित मोदी-भक्तों को भी अब लगने लगा है – अब बहुत हुआ, अब और झेल पाना अपने वश की बात नहीं ?

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बॉलीवुड के मशहूर गीतकार, प्रसून जोशी का एक गीत पिछले 10 साल से देश के चुनावों में बेहद लोकप्रिय रहा। इस गीत को करोड़ों भारतीयों के बीच लोकप्रिय बनाने का काम तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदार दास मोदी, जो कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे, ने किया था। 

2010 में कॉमनवेल्थ खेल से जुड़े विवाद के साथ ही यूपीए-2 के पतन की स्क्रिप्ट देश के सामने आ चुकी थी। दो वर्ष पहले जिस मनमोहन सिंह सरकार ने वैश्विक मंदी के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसकी आंच नहीं आने दी थी, उसके अवसान के दिन आ चुके थे। 2012 तक रियल एस्टेट बुरी तरह से पिटने लगा था।

दिल्ली के ‘निर्भया कांड’ ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया था। इसके साथ ही सरकार पर कॉमनवेल्थ खेल घोटाले के साथ-साथ 2-जी, कोयला आवंटन घोटाले जैसे दसियों लाख करोड़ के घोटाले की खबर देश के समाचारपत्रों और न्यूज़ टेलीविजन की सुर्खियां बनी हुई थीं। 

इंडिया अगेंस्ट करप्शन के झंडे तले महाराष्ट्र के अन्ना हजारे के नेतृत्व में अरविंद केजरीवाल और भाजपा, आरएसएस से जुड़े लोगों की एक पूरी जमात ही देश में भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए देश के युवाओं और नागरिक संगठनों का आह्वान कर रही थी। मीडिया में दिन-रात कांग्रेस का ट्रायल किया जा रहा था, और बड़ी संख्या में लगभग हर रोज मध्य-वर्ग इंडिया गेट पर जमा होकर खुलकर यूपीए सरकार की मुखालफत कर रहा था। 

यही वह पृष्ठभूमि थी, जिसमें ‘गुजरात मॉडल’ के ब्रांड एम्बेसडर, नरेंद्र मोदी का भारतीय राजनीति में धमाकेदार एंट्री होती है। लेकिन तब देश के आम-अवाम को नहीं पता था कि असल में यह तैयारी तो पिछले 5 वर्ष से चल रही थी, और इसके पीछे सबसे बड़ा समर्थन देश के सबसे बड़े धन्नासेठों का है। 

अडानी समूह के निजी विमान से देश के भावी प्रधानमंत्री को एक के बाद एक सभाओं में हुंकार भरते, और देश को ‘अच्छे दिन’ ‘बहुत हुई महंगाई की मार-अबकी बार मोदी सरकार’, ‘प्रति वर्ष 2 करोड़ रोजगार’ ‘किसानों की आय दोगुनी’ और जवानों को ‘वन रैंक-वन पेंशन’ के नारे के साथ प्रसून जोशी के गीत की इन पंक्तियों को भी स्टेज से मोदी जी पूरे जोशो-खरोश के साथ सुनाते देखे जा सकते थे।

21 फरवरी, 2014 को सबसे पहली बार तब पीएम पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी जी ने स्टेज पर खुद के शब्दों में इस गीत को नारे के रूप में जारी किया था। हालांकि तब न उनकी 2.25 करोड़ फैन फालोविंग ही थी, और न ही उन्हें यह कविता ही याद थी। इस पूरे गीत को दोहराने के लिए उन्होंने 4-5 पर्चियों का सहारा लिया था, और शायद तब तक टेलिप्रॉम्प्टर की सुविधा भी नहीं थी।   

आज जब तीसरी बार, मोदी सरकार की दुहाई दी जा रही है, देश को 10 वर्ष पीछे मुड़कर देखने की जरूरत है। प्रसून जोशी के लिखे इस गीत को बीजेपी ने अपने 2014 का चुनावी एंथम (गीत) बनाया था। बीजेपी के ऑफिसियल यू-ट्यूब एकाउंट पर इसे 25 मार्च, 2014 को जारी किया गया, जिसमें पहली तीन पंक्तियों को खुद नरेंद्र मोदी की आवाज में और उसके बाद संगीतकार आदेश श्रीवास्तव की धुन पर गायक सुखविंदर सिंह की आवाज में तैयार किया गया था। इस वीडियो को टीवी चैनलों और इंटरनेट पर विज्ञापन के रूप में जारी किया गया था। इसके अलावा इसका ऑडियो वर्जन पूरे देश में भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए सभाओं के दौरान उत्साह और जोश से भरने वाला ओजस्वी गीत बन गया था। 

पूरे गीत से आपको 2014 के पूरे चुनावी कैम्पेन का मजमून याद आ जायेगा: 

“सौगंध मुझे इस मिट्टी की,

मैं देश नहीं मिटने दूंगा।

मैं देश नहीं मिटने दूंगा,

मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

मेरी धरती मुझसे पूछ रही,

कब मेरा कर्ज़ चुकाओगे।

मेरा अम्बर मुझसे पूछ रहा,

कब अपना फर्ज़ निभाओगे।

मेरा वचन है भारत माँ को,

तेरा शीश नहीं झुकने दूंगा।

सौगंध मुझे इस मिट्टी की,

मैं देश नहीं मिटने दूंगा।

मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो लूट रहे हैं सपनों को,

मैं चैन से कैसे सो जाऊँ।

वो बेच रहे हैं भारत को,

खामोश मैं कैसे हो जाऊँ।

हाँ मैंने कसम उठाई है,

मैं देश नहीं बिकने दूंगा।

मैं देश नहीं मिटने दूंगा,

सौगंध मुझे इस मिट्टी की,

मैं देश नहीं मिटने दूंगा,

मैं देश नहीं मिटने दूंगा।

मैं देश नहीं झुकने दूंगा।

वो जितने अँधेरे लायेंगे

मैं उतने उजाले लाऊंगा

वो जितने रात बढ़ाएंगे

मैं उतने सूरज उगाऊंगा

इस चल फरेब की आंधी में

मैं दीप नहीं बुझने दूंगा,

सौगंध मुझे इस मिट्टी की

अमीन देश नहीं मिटने दूंगा।

वे चाहते हैं जागे न कोई,

बस रात का कारोबार चले।

वो नशा बांटते जायें,

और देश यूँ ही बीमार चले।

पर जाग रहा है देश सारा,

हर भारतवासी जीतेगा।

सौगंध मुझे इस मिट्टी की,

मैं देश नहीं मिटने दूंगा।

मैं देश नहीं झुकने दुगना

माँओं, बहनों की अस्मत पर

गिद्ध नजर लगाये बैठे हैं,

हर इंसा है यहाँ डरा-डरा

दिल में खौफ जमाये बैठे हैं।

मैं अपने देश की धरती पर,

अब दर्द नहीं उगने दूंगा।

मैं देश नहीं रुकने दूंगा।

सौगंध मुझे इस मिट्टी की,

मैं देश नहीं मिटने दूंगा।

अब घड़ी फैसले की आई,

हमने है कसम अब खाई।

हमें फिर से दोहराना है,

और खुद को याद दिलाना है।

न भटकेंगे न अटकेंगे,

कुछ भी हो इस बार।

हम देश नहीं मिटने देंगे,

सौगंध मुझे इस मिट्टी की,

मैं देश नहीं मिटने दूंगा।”

राष्ट्रवाद की चाशनी में डूबे इस गीत ने मोदी को महानायक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके अलावा देश में नया-नया व्हाट्सअप समूह शुरू हुआ था, जिस पर कांग्रेस के भ्रष्टाचार की एक लंबी फेहरिश्त करोड़ों मध्यवर्गीय परिवारों में एक के बाद एक फॉरवर्ड हो रही थी। इतने फॉरवर्ड्स के बाद तो शायद ही कोई ऐसा बचा हो जिसे कांग्रेस और यूपीए गठबंधन के दलों पर लाखों करोड़ रुपये स्विस बैंकों में रखने पर कोई संदेह रहा हो।

ऊपर से एक सभा में मोदी जी विदेशों में छिपाए गये काले धन को देश में वापस लाने और उसमें से हर भारतीय को 15 लाख दिलाने का आश्वासन तक देते दिखे। इसे देखते हुए बहुसंख्य भारतीयों के लिए ‘अबकी बार-मोदी सरकार’ के सिवाय कुछ भी विचार करने का सवाल ही नहीं था। 

जुमले थे, जुमलों का क्या  

लेकिन हुआ क्या? विदेशों में काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की जगह 2016 में अचानक एक रात 8 बजे पीएम मोदी नोटबंदी की घोषणा करते हैं, और रातों-रात गरीबों और गृहस्थ महिलाओं पर कहर टूट पड़ता है। परिवार पर हारी-बीमारी या विपत्ति के लिए पति से छिपाकर रखे पैसों को परिवार के मुखिया के हाथ बैंक में जमा करने को मजबूर कर दिया गया।

देश को कैश-लेस बनाने की सनक में लाखों एमएसएमई और कुटीर उद्योगों पर ताला लग गया। विदेशों से काला धन तो एक पैसा नहीं आया, उल्टा देश के बैंकों में जमा आम लोगों की जमापूंजी को कर्ज पर लेकर कई पूंजीपति मित्र दुनिया के विभिन्न कोनों में पलायन कर गये। बैंकों के बढ़ते एनपीए को सरकार ने लाखों करोड़ रूपये की फंडिंग से एक बार फिर चकाचक कर दिया, अगला एनपीए कराने के लिए। 

लिहाजा 2019 में इस गीत को दोबारा भाजपा की चुनावी थीम बनाना संभव नहीं था। लेकिन मौका बना, क्योंकि कमजोर विपक्ष अपनी आधी-अधूरी कोशिशों के कारण सरकार पर राफेल, क्रोनिज्म के आरोप को बड़ा नैरेटिव नहीं बना सका। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी सरकार पर “सूट-बूट की सरकार” और “चौकीदार चोर है” के आरोप चस्पा किये, लेकिन पर्याप्त सूचना होने के बावजूद विपक्ष ने खुद को प्रेस कांफ्रेंस और ट्वीट तक सीमित रख अतीत की तरह उम्मीद पाल रखी थी कि देश की जनता रोटी पलट देगी। 

लेकिन 14 फरवरी, 2019 के दिन पुलवामा की घटना के बाद तो देश का चुनावी माहौल ही पूरी तरह से बदल गया। अपने शहीद जवानों की मौत में ग़मगीन देश को राष्ट्रवाद के नए उन्माद में ले जाने का पूरा अवसर था, जबकि विपक्ष सन्नाटे की स्थिति में था। मोदी-शाह राजस्थान, गुजरात की सीमाओं पर पाकिस्तान को ललकार रहे थे।

भारतीय जनता पार्टी के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर 26 फरवरी, 2019 को पीएम नरेंद्र मोदी एक बार फिर चुरू, राजस्थान की चुनावी सभा में “मैं देश नहीं मिटने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा” को 3.53 मिनट तक लगातार दोहराते हैं, जिसके जवाब में भीड़ पूरे जोशोखरोश के साथ जवाब देती नजर आती है। यह वही दिन है, जिस दिन पाकिस्तान के बालाकोट पर भारतीय वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक होती है, जिसमें कथित तौर पर करीब 300 आतंकियों को मार गिराने और उनके ठिकानों को नेस्तनाबूद की सूचना के आगे देश के लिए कुछ भी गौरतलब नहीं रह गया था।  

2024 के लिए पिटारे में क्या है?

2014 में मोदी जी देश के मध्य वर्ग के लिए एक ताज़ी हवा का झोंका थे, जिसे लगता था कि मनमोहन सिंह के आर्थिक विकास में अब वह बात नहीं रही, और उनके नीरस लिखित भाषण से तो ऊब होने लगी थी। इसके उलट नरेंद्र मोदी के ओजस्वी भाषण से उसे किक मिल रही थी। 2019 में भी एंटी-इनकम्बेंसी पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक में गुम हो गई, और मोदी सरकार पहले से भी बड़े बहुमत के साथ लौटी। लेकिन 2024 की तो तारीख भी तय हो गई, और कल से देश में आचार-संहिता भी लागू हो जायेगी। 

तो क्या 2024 राम मंदिर उद्घाटन, सीएए कानून, धारा 370, एक देश-एक चुनाव, सनातन धर्म या विपक्ष के खिलाफ परिवारवाद के आरोप पर लड़ा जायेगा? इस बार तो भाजपा ने अपने लिए 370+ का लक्ष्य रखा है, जो 2019 की संख्या से 67 सीट ज्यादा है। 

आज जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर देश के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को एक-एक कर इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक पटल पर उजागर करने की बाध्यता है, तो ऐसे में क्या “मैं देश नहीं झुकने दूंगा, मैं देश नहीं बिकने दूंगा” थीम को भाजपा तीसरी बार भी अपना चुनावी थीम बनाने की हिम्मत जुटा सकती है? 

देश में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 1989 में राजीव गांधी और 2014 में मनमोहन सिंह सरकार की विदाई हो चुकी है। इन दोनों ही सरकारों पर भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में आज तक कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाए। बोफोर्स मामले से ज्यादा तथ्य तो राफेल विमान मामले में फ़्रांस के अखबार और पूर्व फ़्रांसीसी राष्ट्रपति बता चुके थे। लेकिन विपक्ष के तौर पर कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा बनाने में पूरी तरह से नाकामयाब रही।

लेकिन इलेक्टोरल बांड मामले में तो खुद मोदी सरकार ने पहले इसे क़ानूनी स्वरूप दिया, जिसके लिए वित्तीय कानून में 3-3 बदलाव किये गये। लेकिन भारत में चुनाव अभियान को ज्यादा पारदर्शी और ब्लैक मनी पर लगाम की दुहाई देकर लाई गई स्कीम में इतने बड़े पैमाने पर क्विड-प्रो-को ही नहीं बल्कि आपराधिक किस्म से सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल कर हफ्ता वसूली के मामले सामने आ रहे हैं, उसने पूरे देश को सकते की स्थिति में ला खड़ा कर दिया है। 

सबसे बड़ी बात, ईडी-सीबीआई-आयकर के दबाव में इलेक्टोरल बांड पाने के तथ्य से अब देश की जनता भाजपा के खिलाफ अभी तक टिके राजनीतिक दलों के संघर्ष से सहानुभूति करते नजर आ रहे हैं, जिनके बारे में अभी तक उनकी यही राय थी कि कमजोर नेतृत्व और वैचारिकी के चलते विपक्षी दलों से नेता एक-एक कर भाजपारूपी महासागर में खुद की मर्जी से शामिल हो रहे हैं।

देश के मध्य वर्ग को अब यही बात खाए जा रही है कि जब 129 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को बेहद मामूली कारणों से सील किया जा सकता है, या देश के कारोबारियों के साथ हफ्ता-वसूली ऐसे की जा रही है, तो तीसरी बार सत्ता में आने के बाद अगर हम मध्य वर्ग के साथ ऐसा कुछ किया गया, तो हमारी बिसात ही क्या है? 

कथित मुख्यधारा न्यूज़ मीडिया को एक बार परे हटा दें तो मोदी जी की लोकप्रियता को उनके एक यूट्यूब पोस्ट से समझा जा सकता है। यूट्यूब पर पीएम मोदी के चैनल को 2.25 करोड़ लोग सब्सक्राइब करते हैं। 6 दिन पहले पीएम मोदी ने अपने चुनावी अभियान में यूक्रेन से हजारों मेडिकल छात्रों की सुरक्षित देश वापसी का वीडियो जारी किया है, जिसमें बेहद घबराए अपने माता-पिता से चिपटती हुई लड़की बताती है कि कैसे मोदी जी ने हमें सुरक्षित निकालने के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा दिया। 

हैरानी की बात यह है कि इस पोस्ट को सिर्फ 626 लोगों ने लाइक किया है, लेकिन 1242 लोगों ने अपने कमेंट्स में इस वीडियो को सबसे बड़ा जोक बताकर खिल्ली उड़ाई है। इस चुनावी प्रचार के हिस्से काटकर सोशल मीडिया पर मीम को कई गुना ज्यादा लोकप्रियता मिल रही है।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कथित मोदी-भक्तों को भी अब लगने लगा है कि अब बहुत हुआ, अब और झेल पाना अपने वश की बात नहीं है? और इसी तथ्य से बाखबर, भाजपा सरकार अंतिम क्षणों तक सभी विपक्षी दलों के भीतर सेंधमारी, देश के हर कोने में छोटे-छोटे राजनीतिक दलों से गठबंधन बनाने के चक्कर में बिहार और महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्यों में अपने उम्मीदवार घोषित करने से बच रही है। सवाल बहुत से हैं, जवाब देश की आत्मा को देना है, बशर्ते सही तार छेड़े जायें।

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