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ये भी राजनीति प्यारे

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सदाशिव का डर अब विश्वास में बदला
कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सदाशिव यादव को प्रदेश की ओर से तो पद पर बने रहने की हरी झंडी दे दी गई थी, लेकिन लगातार उनके विरोधी उन्हें पद से हटाने में लगे हुए थे। यादव भले ही बाहरी तौर पर पार्टी का काम बिंदास रूप से कर रहे थे, लेकिन उन्हें डर था कि कहीं विरोधी उन पर भारी नहीं पड़ जाए और उन्होंने अपनी नियुक्ति राष्ट्रीय स्तर पर करवा ही ली। 11 मार्च को सदाशिव यादव सहित तीन जिलों के अध्यक्षों की नियुक्ति का लेटर के.सी. वेणुगोपाल ने जारी कर दिया, यानी अब एआईसीसी का ही ठप्पा लग गया है तो यह तय हो गया है कि वे अब अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। अब इंदौर शहर का फैसला होना है और जल्द ही इस बारे में निर्णय करने का दावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर रहे हैं।

कहीं राजनीति से मोहभंग तो नहीं
उस्ताद के रूप में जाने जाने वाले भाजपा के पुराने थाटी नेता गोपीकृष्ण नेमा इन दिनों यू ट्यूब पर लाइव रहते हैं। कभी कविता कहते हैं तो कभी जीवन या किसी महापुरूष पर चर्चा करते हैं। सबको मालूम है कि नेमा को पढऩे और लिखने का शौक है। कई किताबें उन्होंने पढक़र बंद कर दी है। भाजपाई कह रहे हैं कि कहीं उस्ताद का राजनीति से मोहभंग तो नहीं हो गया है जो अब वे वर्चुअली दुनिया के माध्यम से प्रवचन और कविता पढऩे लगे हैं। खैर उस्ताद की उस्तादी वे ही जाने कि इस बहाने उन्हें कहां पहुंचना है?

लिफाफे नहीं रामचरित मानस बांट रहे गोलू
गोलू शुक्ला जैसे भाजपाई नेता ेको हर शादी और मांगलिक कार्यक्रमों में याद किया जाता है। ऐसे कई नेता हैं, जिनके कार्यक्रमों में जाने चार चांद लग जाते हैं। हालांकि इससे नेताओं की प्रसिद्धि मालूम तो पड़ती है, लेकिन उनकी जेब हलकी होने से भी नहीं बचती। बताया जाता है कि शादियों के सीजन में एक दिन में गोलू शुक्ला 50 से अधिक शादियां अटैंड करते हैं और सामान्य तौर पर एक दिन में 10 से 15 कार्यक्रम। गोलू ने अब लिफाफा देने की बजाय रामचरित मानस देना शुरू किया है। अब इसके पीछे गोलू की सोच क्या है ये वे ही जाने।

भगोरिया में रूचि नहीं ली भाजपा नेताओं ने
दशहरा मैदान में होली के पहले भगोरिया मेला रखा था, जिसका आयोजन संघ से जुड़े आदिवासी संगठनों ने किया था, लेकिन मेले को तवज्जो नहीं मिली। कारण यही रहा कि कोई भी राजनीतिक व्यक्ति मेले से सीधे जुड़ नहीं पाया और उसका प्रचार-प्रसार नहीं हो पाया। महापौर भार्गव ने जरूर कोशिश की, लेकिन वे भी असफल रहें और आम लोगों की भागीदारी के बिना मेला प्लाप हो गया, जबकि आयोजन में व्यवस्थाएं जोरदार रखी गई थीं। समीक्षा में यही बात सामने आई कि किसी नेता का व्यक्तिगत या संस्थागत आयोजन होता तो वो और उसके समर्थक उसे सक्सेस करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते।

ठाकरे की परंपरा अभी भी जिंदा रखे हैं
भाजपा यूं ही बड़ी राजनीतिक पार्टी नहीं बनी। इसके किस्से कई बड़े नेता सुनाते हैं, लेकिन अनुसरण कोई नहीं करता। कुशाभाऊ ठाकरे जैसे नेता के बारे में कहा जाता था कि वे बस से ही आते-जाते थे। कोई कार्यकर्ता कार लाता भी तो मना कर देते। इसी परंपरा को अभी इंदौर भाजपा के संगठन प्रभारी तेजबहादुरसिंह जिंदा रखे हुए हैं जो उज्जैन में रहते हैं और इंदौर नियमित आना-जाना करते हैं। भाजपा में प्रभारी का पद महत्वपूर्ण होता है, लेकिन वे अधिकांश समय बस से ही आते-जाते हैं, ताकि कार्यकर्ताओं में भी यह संदेश जाए।

चुनाव के पहले बना रहे सांसद प्रतिनिधि
सांसद शंकर लालवानी ने पिछले दिनों अपने समर्थकों की सांसद प्रतिनिधि के रूप में कई विभागों में नियुक्ति की। हालांकि लोकसभा चुनाव में एक साल है, लेकिन विधानसभा चुनाव तो सिर पर है, इसलिए लालवानी ने अपने समर्थकों को उपकृत करना शुरू कर दिया है। इनमें एक कमल आहूजा है जो लंबे समय से लालवानी से जुड़े हैं। उन्हें जिला प्रशासन में सांसद प्रतिनिधि बनाया है। भाजपा के उत्सव प्रकोष्ठ में रहे आहूजा को जिला प्रशासन में भेज तो दिया है, लेकिन कई दूसरे इसके लिए जोर-आजमाइश कर रहे थे जो मुंह देखते रह गए।

हिन्दूवादियों की हरकत पर भाजपा नेता चुप
जिस तरह से हिन्दूवादियों ने एक रिसोर्ट में हंगामा मचाया, उसको लेकर हिन्दू संगठन पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। इस मामले में भाजपा के नेताओं ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। कोई भी अभी कुछ कहने को तैयार नहीं है। दबी जुबान में सब मान रहे हैं कि जो हुआ है गलत हुआ है, लेकिन सामने आकर कहने की हिम्मत किसी में नहीं है। हिन्दू संगठनों के पदाधिकारी भी इस हरकत को ठीक नहीं मान रहे हैं, लेकिन इसके पीछे जो कहानी सामने आ रही है वह संगठन में वर्चस्व की भी है। जो भी संगठन में पद लेकर आता है वह अपने आपको सक्रिय बताने के लिए ऐसे काम कर बैठता है, जिससे संगठन की वाहवाही तो दूर संगठन उलटा बदनाम हो जाता है। इसलिए अब ऐसे पदाधिकारियों को लेकर लगाम लगाने की बात कही जा रही है।
इस बार भी हिन्द रक्षक की फाग यात्रा का श्रेय लेने की होड़ गौड़ परिवार में मची रही। एक तरह एकलव्यसिंह गौड़ ने अपने आपको फाग यात्रा का आयोजक बताया तो दूसरी ओर राजसिंह गौड़ इस बार भी दावे पर कायम रहे कि फाग यात्रा के आयोजकों में वे भी शामिल हैं। हालांकि दोनों की पटरी कभी बैठती नहीं है और ये आने वाले विधानसभा चुनाव में गौड़ परिवार के लिए भारी साबित होने वाला है।

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