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जो निरंतर जीवंत, नवीन तथा युगानुकूल है, वही ईश्वर है,अल्ला है, गॉड है, वाहे गुरू है!

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डॉ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सीएमएस), लखनऊ
(1) ईश्वर शरीर रूप में नहीं वरन् वह चेतना स्वरूप है। वह खनिज, वनस्पति, पशु-पक्षियों में जीवन के रूप में व्याप्त है। हम उसे अपनी सुविधानुसार अलग-अलग भाषा में विभिन्न नामों से पुकारते हैं। आस्तिक व्यक्ति उसे चेतना या परम आत्मा के रूप में मानते हैं। नास्तिक उसे प्रकृति के रूप में मानते हैं। वैज्ञानिक उसे ऊर्जा अर्थात इनर्जी के रूप में मानते हैं। ईश्वर को सत्य, न्याय तथा समता के रूप में रोजाना अपने प्रत्येक कार्य में जानकर अपनी नौकरी या व्यवसाय करना चाहिए। साथ ही सृष्टि के रचनाकार ईश्वर की प्रत्येक रचना से प्रेम करते हुए उसकी रक्षा करना चाहिए। हे ईश्वर तूने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जांनू तथा तेरी शिक्षाओं पर चलूं। जो निरंतर जीवंत, नवीन तथा युगानुकूल है, वही ईश्वर है, अल्ला है, गॉड है, वाहे गुरू है!
(2) पारिवारिक एकता इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। परिवार में माता-पिता को तथा स्कूल में टीचर्स को पारिवारिक एकता के महत्व को बच्चों को भली-भांति बताना चाहिए। जिस परिवार में घर के सभी सदस्य मिल-जुलकर प्रार्थना करते हैं उस परिवार में एकता, शान्ति तथा समृद्धि आती है। परिवार के ईश्वरीय प्यार तथा सहकार से भरे वातावरण में बच्चे एकाग्रता से मन लगाकर पढ़ते हैं। प्यार तथा सहकार से भरापूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग है। पारिवारिक एकता से ही भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधा को कुटुम्ब बनाने की परिकल्पना साकार होगी।
(3) रूस-यूक्रेन युद्ध की वर्तमान वैश्विक उथल-पुथल तथा तृतीय विश्व युद्ध की आशंका की विषम परिस्थितियों में राष्ट्र पिता के स्थान पर अब विश्व पिता की आवश्यकता है। मानव जाति को उसे पूरे मनोयोग से समय रहते ढूंढ़कर विश्व सरकार रूपी परिवार के मुखिया का दायित्व साैंपना होगा। शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिसके उपयोग से विश्व को बदला जा सकता है। 21वीं सदी का विश्व वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) के व्यापक रूप में बदलाव चाहता है। शान्ति के लिए विश्व सरकार का गठन शीघ्र समय रहते करना होगा। हमारा 63 वर्षों के व्यापक शैक्षिक अनुभव के आधार पर मानना है कि मनुष्य की ओर से सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है- (अ) बच्चों की शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा (स) उनके हृदय में परमात्मा के प्रति अटूट प्रेम उत्पन्न करना।
(4) अतीत में जैसे हमने प्रथम विश्व युद्ध के चलते लीग आफ नेशन्स बनाया तथा द्वितीय विश्व युद्ध से पीड़ित होकर शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया था। अब समझदारी से तृतीय विश्व युद्ध होने के पूर्व लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित विश्व सरकार का गठन कर लेना चाहिए। अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। विश्व सुरक्षित होगा तो हमारा देश, हमारा प्रदेश, हमारा जिला, हमारा गांव तथा हमारा घर सुरक्षित रहेगा। यह प्यारा विश्व भी हमारा है पराया नहीं है।
(5) युद्ध के विचार सबसे पहले मनुष्य के मस्तिष्क में पैदा होते हैं अतः दुनियाँ से युद्धों को समाप्त करने के लिये मनुष्य के मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार उत्पन्न करने होंगे। शान्ति के विचार देने के लिए मनुष्य की सबसे श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। स्कूल चार दीवारों वाला एक ऐसा भवन है जिसमें कल का भविष्य छिपा है। मनुष्य तथा मानव जाति का भाग्य क्लास रूम में गढ़ा जाता है। शिक्षकों को पूरे मनोयोग से विद्यालय को लघु विश्व का मॉडल तथा बच्चों को विश्व नागरिक बनाना चाहिए। चरित्र निर्माण एवं विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है! महान विचारक पाऊलो फेरी के अनुसार शिक्षा लोगों को बदलती है, और लोग शिक्षा द्वारा दुनियाँ को बदल सकते हैं।
(6) हे आत्मा के पुत्र, मनुष्यों को भेड़ों का एक समूह समझ, जिसकी रक्षा के लिए एक गड़रिया की आवश्कता होती है। एक सच्चा गड़रिया अपनी जान की बाजी भी लगाकर भेड़ियों से अपनी भेड़ों की रक्षा करता है। हे आत्मा के पुत्र! एक शुद्ध, दयालु तथा प्रकाशित हृदय धारण कर ताकि प्राचीन, अमिट तथा श्रेष्ठता का संसार तेरा हो।
(7) जिसने ईश्वर के प्यार और सहकार का सुस्वाद चख लिया है वह इसका सौदा सम्पूर्ण पृथ्वी की धन-सम्पदा से भी नहीं करेगा। हमें अपने प्रत्येक मानवीय कार्य को रोजाना अपनी पहचान बनाना है, न कि कोरे शब्दों को। ऐसे कर्म करना है जो शुद्ध और पवित्र हो। जीवन का एकमात्र उद्देश्य ईमानदारी तथा सच्चाई से अपनी नौकरी या व्यवसाय करके अपनी आत्मा का विकास करना है। आत्मा के विकास का सबसे सरल उपाय ईमानदारी तथा लोक कल्याण की भावना से अपनी नौकरी या व्यवसाय करना है। हमें रोजाना अपने प्रत्येक कार्य को ही प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बनाने का पूरे मनोयोग से प्रयास करना चाहिए।
(8) ईश्वर को जो लगे अच्छा वहीं मेरी इच्छा होनी चाहिए। ईश्वर की इच्छा सदैव लोक कल्याण रही है। ईश्वर की इच्छा को अपनी इच्छा बनाकर जीने में समझदारी है। इसके ठीक उलटा अपनी इच्छा को ईश्वर की इच्छा बनाने की जिद्द तथा नसमझी नहीं करनी चाहिए। ईश्वर के प्रति प्रेम प्रगट करने का सबसे सशक्त माध्यम प्रार्थना है। अब एक ही छत के नीचे सब धर्मों की प्रार्थना होना चाहिए। जो लोग प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लेते हैं फिर उन्हें धरती तथा आकाश की कोई शक्ति प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकती।
(9) बच्चांे को बाल्यावस्था से ही घर में माता-पिता तथा स्कूल में टीचर्स द्वारा बताना चाहिए कि ईश्वर एक है, उसका धर्म एक है तथा सारी मानव जाति एक है। मानव सभ्यता के पास जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में भेजे गये महान अवतारों राम (7500 वर्ष पूर्व), कृष्ण (5000 वर्ष पूर्व), बुद्ध (2500 वर्ष पूर्व), ईसा मसीह (2000 वर्ष पूर्व), मोहम्मद साहब (1400 वर्ष पूर्व), गुरू नानक देव (500 वर्ष पूर्व) तथा बहाउल्लाह (200 वर्ष पूर्व) धरती पर अवतरित हुए हैं। स्कूलों के माध्यम से संसार के प्रत्येक बालक को राम की मर्यादा, कृष्ण की न्याय, बुद्ध की सम्यक ज्ञान, ईशु की करूणा, मोहम्मद साहेब की भाईचारा, गुरू नानक की त्याग और बहाल्लाह की हृदय की एकता की शिक्षाओं का ज्ञान कराया जाना चाहिए। प्रत्येक बालक को एक ही परमपिता परमात्मा की ओर से युग-युग में अपने संदेशवाहकों के द्वारा भेजी गई पवित्र ग्रन्थों- गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान शरीफ, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस में संकलित परमात्मा की एक जैसी मूल शिक्षाओं का ज्ञान बच्चों को स्कूल के माध्यम से कराया जा रहा है तथा परमात्मा की शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
(10) ईश्वर की इच्छा के अनुरूप हमारे विद्यालय की कठोर परिश्रमी प्रधानाचार्याओं के आत्मीयतापूर्ण कुशल मार्गदर्शन में शिक्षकांे के निरन्तर प्रयासों से सीएमएस गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में एक ही शहर में विश्व एकता की शिक्षा ग्रहण कर रहे सबसे अधिक 55,000 बच्चों वाले विश्व के सबसे बड़े विद्यालय के रूप में दर्ज है। सीएमएस को यूनेस्को द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति शिक्षा पुरस्कार-2002’ से सम्मानित किया गया है। यूनेस्को का यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत को अभी तक केवल दो बार मिला है, जिसमें पहली बार यह पुरस्कार वर्ष 1992 में मदर टेरेसा को व दूसरी बार वर्ष 2002 में विश्व एकता एवं विश्व शान्ति की शिक्षा देने के लिए सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ को मिला है। सीएमएस विश्व का एकमात्र ऐसा विद्यालय है जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने अधिकृत एनजीओ के रूप में मान्यता भी दी है।
(11) आज आधुनिक विद्यालयों के द्वारा बच्चों को एकांकी शिक्षा अर्थात केवल भौतिक शिक्षा ही दी जा रही है, जबकि मनुष्य की तीन वास्तविकतायें होती हैं। पहला- मनुष्य एक भौतिक प्राणी है, दूसरा- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा तीसरा मनुष्य- एक आध्यात्मिक प्राणी है। इस प्रकार मनुष्य के जीवन में भौतिकता, सामाजिकता तथा आध्यात्मिकता का संतुलन जरूरी है। सीएमएस में प्रत्येक बालक की तीनों वास्तविकताओं को ध्यान मंे रखते हुए भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की संतुलित शिक्षा देने के लिए 2000 से अधिक टीचर्स तथा 1000 से अधिक सहयोगी कार्यकर्ता पूरे मनोयोग तथा समर्पित भाव से रात-दिन संलग्न हैं।
(12) हमें विश्व के लगभग दो अरब 40 करोड़ बच्चों सहित मानव जाति के भविष्य को वैश्विक महामारी कोरोना, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, घातक शस्त्रों की होड़ तथा तृतीय विश्व युद्ध की आशंका से सुरक्षित करने के लिए एक वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व संसद का समय रहते गठन करना होगा। इसके पश्चात मानव सभ्यता की गुफाओं से शुरू हुई यात्रा का अन्तिम लक्ष्य संसार में आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना का मार्ग प्रशस्त होगा। विगत 63 वर्षों में सीएमएस के लाखों छात्र विश्व के विभिन्न देशों में उच्च तथा महत्वपूर्ण पदों पर असीन होकर भारतीय संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् को साकार करने में यथाशक्ति योगदान दे रहे हैं।
।।। वसुधैव कुटुम्बकम् – जय जगत ।।।

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