रजनीश भारती
आप हैरान हैं कि आज भी इतना छुआछूत? पानी का मटका छूने पर एक अबोध बालक की जघन्य हत्या…ये कैसी आजादी?
75 साल बाद भी वर्णव्यवस्था, जातिगत छुआछूत के चलते इन्द्र कुमार नाम के अबोध दलित बच्चे की निर्मम हत्या हो जाती है। यही नहीं ऐसे लाखों बच्चे आये दिन जातिगत भेद भाव के शिकार होते रहते हैं जिन्हें मीडिया में जगह नहीं मिल पाती, जिससे हम नहीं जान पाते।
ऐसा क्यूं है?
दलितों में भी गरीबों की बात छोड़िए बहुत से करोड़पति और अरबपति हैं, उनके बच्चों के साथ भी कभी कभार जातिगत भेद भाव हो जाता है। जब कि सवर्णों में बहुत ऐसे बच्चे हैं, जो गरीब हैं मगर उनके साथ जातिगत अपमान नहीं होता?
इन तथ्यों के आधार पर कुछ लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि भारत में असल लड़ाई जातिगत भेदभाव की ही है। यहाँ अमीर और गरीब के बीच कोई लड़ाई है ही नहीं। इसी से प्रेरित होकर 15/85, मूलनिवासी के नारे गढ़े गये। अगड़ा, पिछड़ा, हिजड़ा, दलित, अतिदलित, अतिपिछड़ा… करते-करते कुछ धूर्त नेताओं ने मनुवाद, ब्राह्मणवाद के विरोध के नाम पर ब्राह्मणों को खूब गालियां दिया, हालांकि सत्ता की मलाई चाटने के लिए वे अन्ततः गरीब ब्राह्मणों की गोद में नहीं बल्कि अमीर सामन्ती ब्राह्मणों की गोद में भी बैठ गए।
इन्हीं गोदी नेताओं के कहने पर देश की अधिकांश शोषित उत्पीड़ित जनता सात दशकों से जातिवाद कर रही है, और शोषक वर्ग के संविधान को ही अपना संविधान मानकर उसकी पूजा कर रही है।
जो संविधान सवर्णों को शोषक और दलितों, पिछड़ों आदिवासियों को शोषित मान कर वर्णव्यवस्था पर आधारित आरक्षण की वकालत करता है, जिस आरक्षण का फायदा सिर्फ 1% लोगों को ही मिल सकता है। मगर जातिप्रमाण पत्र सबको बनवाना पड़ता है। इस प्रकार वर्ण एवं जाति व्यवस्था की गुलामी को मजबूत करता है,
जो संविधान इस तरह ‘फूट डालो शासन करो’ की नीति लागू करके एक तरफ जनता को कमजोर तो दूसरी तरफ शोषक वर्ग को मजबूत करता है,
जिस संविधान के रहते 70 साल बाद भी दलितों एवं आदिवासियों में 98%, पिछड़ी जातियों में 90%, तथा अगड़ी जातियों में लगभग 20-30% लोग गुलामी की अवस्था में जीने के लिए बाध्य हैं,
जिस संविधान की रजामंदी से शोषक वर्ग मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, जुआखोरी, अश्लीलता… को बढ़ावा देकर जनता को लूट रहा है,
शोषित-पीड़ित वर्ग के अधिकांश लोग उसी भारतीय संविधान को अपना संविधान कहकर उसकी रक्षा करने के नाम पर आजादी के इतने दिन बाद भी शोषक वर्ग का साथ देना जारी रखे हुए हैं।
फिर भी लोग पूछते हैं कि आजादी के इतने दिन बाद भी दलितों का उत्पीड़न क्यों?
सवर्ण गरीब हैं तो भी सम्मान, तथा दलित अमीर हो जाए तो भी अपमान क्यों? इस प्रश्न का सही उत्तर न जानने के कारण ही रट्टू तोते की तरह मनुवाद ब्राह्मणवाद को गाली देते-देते लोग जातिवादियों के जाल में फँस जाते हैं, और महत्वपूर्ण आर्थिक सवालों को छोड़ देते हैं।
सवर्ण गरीब हैं तो भी सम्मान, तथा दलित अमीर हो जाए तो भी अपमान इसलिए होता है कि सवर्णों में मध्यवर्ग एवं धनी लोगों की संख्या अधिक है। सवर्णों में कोई गरीब है तो उसके ज्यादातर रिश्तेदार अमीर मिल जाएंगे। इसलिए गरीब सवर्णों का भी अपमान करने की हिम्मत अक्सर कोई नहीं करता। इसके विपरीत दलितों में अधिकांश भूमिहीन, गरीब किसान और मजदूर हैं इसी लिए इनमें कुछ थोड़े लोग सम्पन्न होते भी हैं तो उनके ज्यादातर रिश्तेदार गरीब ही होते हैं, इसी लिए अमीर होने के बाद भी उन्हें कभी-कभी जातीय अपमान झेलना पड़ता है। इससे साफ जाहिर हो जाता है कि जातिगत शोषण या उत्पीड़न की बुनियाद में भी आर्थिक असमानता ही मुख्य तत्व है।
जब तक लोग जाति, धर्म के झगड़ों को छोड़कर आर्थिक असमानता के खिलाफ नहीं लड़ेंगे, ऐसे ही शोषण, दमन, उत्पीड़न के शिकार बनते रहेंगे। और जातिगत अपमान से भी छुटकारा नहीं मिलेगा। पानी के मटके तक पहुँचने के लिए ऐसे ही कितने इन्द्र मेघवाल मारे जाते रहेंगे।
रजनीश भारती
जनवादी किसान सभा