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हलो प्रधानमंत्री जी ! इसके बाद भी सावरकर को भारत रत्न दोगे ?

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कनक तिवारी

देश में हो रही उथलपुथल और ऊहापोह के (भी) चलते विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने का इरादा सरकार के इरादे और बहुमत के बावजूद खटाई में तो है. सावरकर ने हिन्दू धर्म की एकल ऐंद्रिकता के ‘हिंदुत्व‘ शब्द का आविष्कार किया. जवानी में मिली कठोर जेल यातनाओं के कारण बर्बर गोरी हुकूमत को लगातार माफीनामे लिखकर कैद से बरी होकर जीवन भर हुकूमत के खिलाफ रहस्यमय ढंग से खामोश रहे. इससे हटकर राष्ट्रपिता की सयानी बुद्धि की नज़र से सावरकर की शुरुआती भूमिका और विचारों को समझना सार्थक होगा. गांधी की हत्या को लेकर सावरकर पर भी लगा आरोप भले ही सिद्ध नहीं हो पाया.

1909 में गांधी इंग्लैंड में रह रहे कुछ भारतीयों द्वारा हथियारों की मदद से अंगरेजी हुकूमत को हटाने की हिंसात्मक लेकिन जरूरी की जा रही चुनौतियों तथा बर्तानवी हुकूूमत की वहशी जवाबी हरकतों के कारण समझाने की कशिश लेकर लन्दन गए. अहिंसा की समझाइश की खारिजी होने पर गांधी बेहद निराश हो गए. श्यामजीकृष्ण वर्मा और सावरकर सहित हिंसक-क्रांति के कई पैरोकार भारतीयों से एक सभा में हिंदुओं के आराध्य राम के जीवन के मूल संदेश पर बहस भी हुई. राक्षसों की हिंसा तक सीमित नहीं करके लोकतंत्र के आदर्श आयामों के आधार पर रामराज्य स्थापित करने की बात गांधी ने सावरकर की सम्मान-सभा में कही थी. उस सभा की अध्यक्षता करने गांधी के अलावा और कोई तैयार नहीं था.

सावरकर से प्रेरित युवा मदनलाल धींगरा ने अंगरेज अधिकारी कर्नल वाइली की लंदन में सरेआम हत्या कर दी. सावरकर पर कुछ और हिंसक गतिविधियों के लिए फ्रांस से जुगाड़कर हथियार भेजने का आरोप भी था. इस पर खुद गांधी का ही लिखा विवरण पढ़ना बेहतर है –

‘वे काफी समय तक लन्दन में रहे. यहां उन्होंने भारत की आजादी के लिए एक आन्दोलन चलाया. वह एक वक्त में ऐसी हालत में पहुंच गया कि श्री सावरकर पेरिस से भारत को बन्दूकें आदि भेजने लग गए थे. पुलिस की निगरानी से भाग निकलने की उनकी सनसनी फैला देने वाली कोशिश और जहाज के झरोखे से उनका फ्रांसीसी समुद्र में कूद पड़ना भी हुआ. नासिक के कलेक्टर श्री ए.एम.टी. जैक्सन की हत्या के सिलसिले में उन पर यह आरोप लगाया गया था कि जिस पिस्तौल से जैक्सन की हत्या की गई, वह सावरकर द्वारा लन्दन से भेजी गई पिस्तौलों में से एक थी….सन् 1857 के सिपाही विद्रोह पर उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी, जो जब्त कर ली गई है. सन् 1910 में उन पर मुकदमा चलाया गया और 24 सितम्बर, 1910 को उन्हें वही सजा दी गई जो उनके भाई को दी गई थी. सन् 1911 में उन पर लोगों को हत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया लेकिन इनके विरुद्ध भी किसी प्रकार की हिंसा का आरोप सिद्ध नहीं हो पाया.’

यह अलग बात है कि इसके बाद सावरकर को माफीनामे लिखकर अंगरेज सल्तनत से अंदमान की कठिन जेल सजा से 1921 में और 1924 में पूरी रिहाई मिली. सावरकर बंधुओं के माफीनामे के बावजूद काफी अरसा तक ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उन्हें नहीं रिहा करने को लेकर गांधी ने राजनीतिक सयानेपन, सहानुभूति और संवैधानिक प्रतिबद्धता की भाषा में एक इबारत यंग इंडिया के 26 मई 1920 के अंक में लिखी –

‘दोनों भाइयों ने अपने राजनीतिक विचारों का खुलासा कर दिया है. दोनों ने कहा है उनके मन में किसी प्रकार के क्रान्तिकारी इरादे नहीं हैं. अगर उन्हें छोड़ दिया गया तो वे 1919 के रिफाॅर्म्स ऐक्ट के तहत काम करना पसन्द करेंगे. उनका ख्याल है इस गर्वनमेंट आफ इंडिया ऐक्ट 1919 के तहत सुधारों से लोगों के लिए इस तरह का काम करना सम्भव हो जाता है जिससे भारत को राजनीतिक जिम्मेदारियां मिल सकती हैं. दोनों ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि वे ब्रिटिश रिश्तों से अलहदा नहीं होना चाहते. इसके बरक्स उन्हें लगता है कि भारत की किस्मत ब्रिटेन के साथ रहकर ही सबसे अच्छी तरह गढ़ी जा सकती है.’

गांधी अंगरेजों की नीयत, कानूनों की मंशा और भारतीय संघर्षकथा में सावरकर की क्रांतिकारी लगती भूमिका तथा सजा को लेकर इतिहास की नज़र से मकड़जाल निकाल देते हैं. सरल हृदय लेकिन कम्प्यूटरनुमा दिमाग के गांधी दो टूक कहते हैं कि सावरकर बंधुओं ने ब्रिटिश हुकूमत को बिना शर्त समर्थन दिया है और गवर्नमेंट आफ इंडिया ऐक्ट 1919 को भी. जबकि वह सुधार कानूनों के नाम पर अंगरेजों ने भारतीयों की मुश्कें बांधने वाली बदनीयती से लादा था. फिर भी गांधी इन्सान की गरिमा और उसकी आजादी पर किसी भी तरह की अत्याचारी बंदिश लगाए जाने की गुलाम भारत में भी संवैधानिक भाषा में मुखालफत करते हैं.

आज एक बात और मालूम होना चाहिए. सावरकर की रिहाई के माफीनामे के समर्थन में गांधी के दस्तखत की उम्मीद की गई थी. गांधी ने दस्तखत करने से इंकार किया लेकिन सयानेपन तथा मनुष्यता की उदारता के चलते अपनी भूमिका का सचनामा गांधी ने 27 जुलाई 1937 के बाॅम्बे क्राॅनिकल को भेजे एक पत्र में लिखा – ‘सावरकर मानते होंगे मैंने उनकी रिहाई के लिए भरसक कोशिश तो की थी. वे यह भी मानेंगे मेरे और उनके बीच लंदन में हुई पहली मुलाकात के वक्त आत्मीय रिश्ते थे.’ शेगांव से 12 अक्टूबर 1939 को लिखे पत्र में गांधी ने खुलासा किया कि ‘वे अपनी बात समझाने भारत में सावरकर के घर भी गए थे, भले ही उसे ठीक नहीं समझा गया हो.’

भूगोल और इतिहास के भाष्य बदल भी जाते हैं. गांधी की अद्भुत प्रतिभा की इन्सानियत का विस्तार नापना कूढ़मगज मजहबी नजरिए से मुश्किल है. गांधी को समझने में कशिश, कोशिश और पीढ़ियों का धीरज चाहिए. उनकी दिमागी रसमयता मनुष्य होने के आयाम का लचीला विस्तार करती है. उन्होंने उस सावरकर की रिहाई की कोशिशें की थी –

  1. जो बकौल खुद क्रांति का विचार छोड़ना चाहता था.
  2. जो 1919 के रिफाॅर्म्स ऐक्ट का समर्थन कर चुका था.
  3. जो ब्रिटिश गुलामी से अलग नहीं होना चाहता था.
  4. जो ब्रिटेन के साथ रहकर ही भारत की किस्मत गढ़े जाने के पक्ष में था.
  5. जो गवर्नमेंट आफ इंडिया ऐक्ट से भारतीयों को जिम्मेदारी मिलना कहता था.
  6. जो माफीनामे पर गांधी से समर्थन की क्यों उम्मीद कर रहा था ?

हलो प्रधानमंत्री जी ! इसके बाद भी भारत रत्न दोगे ?

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