–सुसंस्कृति परिहार
यूं तो देश में इस समय कायर बुज़दिल नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जिनमें अजित पंवार, वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह, नीतीश कुमार जैसे तथाकथित जनप्रिय नेता भी शामिल हैं किंतु ऐसे दहशतज़दा माहौल में एक ज़िंदादिल मुख्यमंत्री भी है जिसने जेल जाना कबूल किया। मोदी-शाह की डील से समझौता नहीं किया। बताया जाता है उन पर काफ़ी समय से दबाव डाला जा रहा था कि वे इंडिया गठबंधन से मुक्त हों।वे हिले नहीं तो कांग्रेस के विधायक जो झारखंड मुक्ति मोर्चा को समर्थन दे रहे थे उन्हें ख़रीद कर सरकार गिराने की कोशिश हुई किंतु सोरेन ने इस डील पर छापामार कर उल्टा वार कर दिया।जिसकी काफ़ी चर्चाएं रहीं।इससे मोदी शाह जोड़ी घबरा गई तब उन्होंने एक भूमि घोटाले में फंसे अफसर को सरकारी गवाह बनाकर हेमंत सोरेन को फंसाकर गिरफ्तार करने का षड्यंत्र रचा। जैसा शराब कांड में मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के साथ किया गया।
एक समझदार मुख्यमंत्री की तरह सोरेन को ये जानकारी मिलते ही उन्होंने विधायक दल की बैठक बुलाई मामले की सारी जानकारी उन्हें दी तथा मज़बूती से सरकार बनाने को तैयार किया।अपने विश्वसनीय चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री चुना। फिर त्यागपत्र दिया तब जाके गिरफ्तारी हुई। आदिवासी जिन्हें हम कमज़ोर और गैर जिम्मेदार समझते हैं उनमें से ही हेमंत सोरेन हैं जिन्होंने गिरफ्तार होने से पूर्व साथियों को मज़बूती दी और भाजपा के सपनों को धूल चटाई दी।आज हेमंत सोरेन के जाने के बाद तमाम आदिवासी समाज एकजुट है और डटकर मुकाबले को तैयार है।’सहो मत-डरो मत’ को सही मायने में साकार कर सोरेन ने एक मिसाल पेश की है।
अभी इन शैतानों के ख़ूनी पंजे अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी की ओर बढ़ेंगे। क्योंकि उन्हें ख़तरा इंडिया गठबंधन से ही है।उनके क्या कदम होंगे ये वक्त बताएगा लेकिन अपने राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की यदि वे बात कर रहे हैं तो यह जाहिराना तौर पर कहा जा सकता है वे मोदी शाह जोड़ी के दबाव में है वे इस समय सिर्फ यही चाहते हैं कि उनका इंडिया गठबंधन से जुड़ाव ना हो।
बहरहाल, राजनैतिक नफ़ा पाने की कशिश में बहुत से विपक्षी दलों में भटकाव साफ़ दिखाई दे रहा है अखिलेश यादव का रवैया भी स्पष्ट नज़र नहीं आ रहा है। इसलिए राहुलगांधी ने दूरदर्शी निर्णय लेते हुए गठबंधन से दूरियां बनाकर एक सूत्री ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पूर्व से पश्चिम शुरू की है।इसे जो कामयाबी मिल रही है उसका दूरगामी असर होगा।हाल ही में बिहार में जो हुआ उससे मोदी शाह को नफ़ा की जगह नुकसान ही हुआ। जेडीयू दो-फाड़ हो गई है जनमत इस सरकार के ख़िलाफ़ हुआ है जिसका फायदा गठबंधन के दलों को मिलेगा। नीतीश को सरकार बनाना भी मुश्किल पड़ सकता है।इससे बुरा हाल झारखंड में भाजपा का हुआ वे वहां इंडिया गठबंधन की सरकार गिरा नहीं पाए लेकिन वे गठबंधन तोड़ने की कोशिश में सतत लग गए हैं और राज्यपाल गठबंधन को सरकार बनाने आमंत्रित नहीं कर रहे हैं।
कुल मिलाकर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ने बिकाऊ और डरे ,दबे ,कुचले पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्रियों को साफ़ इशारा किया है कि उनके साथ यदि जनमत है और वे गलत राह पर नहीं है तो डरने की ज़रूरत नहीं।काश!इतनी हिम्मत गोवा राज्य में यदि सर्वप्रथम अल्पमत वाली सरकार का यदि डटकर विरोध हुआ होता तो यह इतनी बड़ी समस्या का स्वरूप नहीं लेता।देश को आज हेमंत सोरेन जैसे दमदार और ज़िंदादिल व्यक्तियों की ज़रूरत है। लोकतंत्र के पुजारी हेमंत सोरेन को सलाम।