बेंगलुरु : कर्नाटक में सब शांत था। अचानक इस साल की शुरुआत में हिजाब का मुद्दा उठा। उडुपी के एक स्कूल में छह छात्राएं क्लासरूम में हिजाब पहनकर जाने को अड़ गईं। अनुमति नहीं मिलने पर धरना प्रदर्शन हुआ और मामला तूल पकड़ता गया। मुसलमानों ने बंद का ऐलान किया। यह विवाद शांत नहीं हुआ कि मंदिर परिसर और आसपास मुसलमानों को दुकान लगाने पर पाबंदी लगा दी गई। यह मुद्दा चल ही रहा था कि हलाल मीट का मुद्दा उठा। यह विवाद भी खत्म नहीं हुआ कि अब कर्नाटक की मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटवाने की मांग शुरू हो गई। सरकार ने भी तेज आवाज में लाउडस्पीकर बजाने पर रोक लगा दी है।
कर्नाटक में एक के बाद एक यह मुद्दा क्यों उठ रहा है? कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सब अगले साल कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर है। विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी ध्रुवीकरण की राजनीति कर्नाटक में भी कर रही है। वहीं बीजेपी विपक्ष पर अपने फायदे के लिए मुसलानों को मुद्दा बनाने का आरोप लगा रही है।
हिजाब विवाद क्या है?
कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पहनने की अनुमति है लेकिन क्लासरूम में नहीं। इस साल जनवरी में छह छात्रों ने क्लास के अंदर हिजाब पहनने की जिद की। उन्हें अनुमति नहीं दी गई तो उन्होंने क्लास का बहिष्कार कर दिया। धरने पर बैठ गईं। मामला तूल पकड़ता गया। छात्राओं ने हाई कोर्ट में याचिका की। हाई कोर्ट ने फुल बेंच के सामने मामला लगातार चला। सुनवाई के बाद आखिर हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि हिजाब इस्लाम का हिस्सा नहीं है इसलिए शिक्षण संस्थानों में समानता के लिए स्कूल यूनिफॉर्म का ही पालन करना पड़ेगा। हाई कोर्ट की फुल बेंच के आदेश से असंतुष्ट छात्राओं और मुस्लिम संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका की है।
हिजाब बनाम भगवा मुद्दा
हिजाब विवाद के दौरान भगवा शॉल का मुद्दा बना। हिंदू छात्रों ने कहा कि अगर मुसलमान छात्राएं हिजाब पहनेंगी तो वे भी भगवा शॉल डालकर स्कूल आएंगे। दर्जनों छात्र भगवा शॉल डालकर जय श्री राम के नारे लगाकर स्कूल पहुंचने लगे। राज्य की कानून व्यवस्था बिगड़ी तो सरकार को धारा 144 लागू करनी पड़ी। कई इलाकों में कर्फ्यू लगाया गया। कुछ स्कूल-कॉलेजों को विवाद बढ़ने पर बंद कर दिया गया।
मुसलमान दुकानदारों को किया बैन
हाई कोर्ट के हिजाब पर आदेश के बाद मुस्लिम संगठनों ने कर्नाटक बंद का आव्हान किया और मुसलान दुकानदारों ने अपनी दुकानें नहीं खोलीं। उनके बंद से खफा हिंदू संगठनों ने मोर्चा खोला और मुसलमान दुकानदारों को मंदिर परिसर में बैन करने की मांग की। कर्नाटक के बड़े और नामी मंदिर प्रशासन ने आदेश जारी किया कि कोई भी मुसलमान मंदिर परिसर या आसपास सामान नहीं बेच सकता है।
कैसे उठा हलाल मीट विवाद?
कर्नाटक में हलाल मीट को लेकर अचानक विवाद शुरू हो गया। उगादि में कई हिंदू मांस का भोग लगाकर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं। इस बार 2 अप्रैल को उगादि मनाया गया। उससे पहले हिंदू संगठनों ने अभियान चलाया कि कोई भी मुसलमानों से मीट नहीं खरीदेगा। इसके पीछ तर्क दिया गया कि मुसलमान मक्का की तरफ मुंह करके जानवर को हलाल करते हैं। इस दौरान वह अल्लाह का नाम लेते है। इसका मतलब वह मीट अल्लाह चढ़ाते हैं। अगर हिंदू मुसलमानों से यह मीट लेकर प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं तो यह पाप होगा। इसे लेकर कैंपेन चलाया गया कि कोई भी हिंदू मुसलमानों से हलाल मीट नहीं खरीदेगा।
मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने का मामला
अब कर्नाटक में मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने की मांग उठी है। कहा जा रहा है कि मस्जिदों से लाउडस्पीकर बजने के कारण बच्चों, रोगियों, बूढ़ों और छात्रों को परेशानी होती है। कई साइलेंट जोन में भी मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर से तेज आवाज में अजान होती है, यह परेशान करने वाला है। हिंदू संगठनों ने इसे लेकर सरकार को अल्टीमेटम दिया। बसवराज बोम्मई सरकार भी कहना है कि लाउडस्पीकर मस्जिद में हो या मंदिर में, तेज आवाज में बजाना गैर कानूनी है। कर्नाटक पुलिस ने मस्जिदों को नोटिस जारी किया है।
क्या है राजनीति
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह साफ है कि कर्नाटक में कहीं न कहीं हिंदू-मुसलमानों को बांटने की राजनीति हो रही है। आम तौर पर कर्नाटक में जातिगत राजनीति होती रही है। खासकर लिंगायत और वोक्कालिगा की सियासत लंबे अरसे से चली आ रही है। यही वजह है कि जब बीएस येदियुरप्पा को जब हटाया गया तो उनकी जगह बसवराज बोम्मई के रूप में लिंगायत चेहरे को ही सीएम की कुर्सी पर बिठाया गया। राज्य में आज भी जाति की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है और इसी आधार पर चुनाव में वोटिंग का पैटर्न भी देखा जाता है। कुछ विश्लेषक कहते हैं कि जातिगत आधार को तोड़कर राज्य को सिर्फ हिंदू और मुसलमान वोट बैंक में बांटा जा रहा है। विश्लेषकों की मानें तो यह आसान नहीं है इसलिए राज्य में चुनाव की तैयारियां एक साल पहले ही शुरू कर दी गई हैं। हिंदू-मुसलमान के मुद्दे बनाकर हिंदुओं को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है। कुछ का मानना है कि हिजाब से इसकी शुरुआत नहीं हुई बल्कि बेंगलुरु में हुई एक पोस्ट के बाद ही इस राजनीति की नींव रख दी गई थी, जब अगस्त 2020 में हिंसा भड़की थी। राज्य में अगले साल चुनाव होने हैं, ऐसे में अभी इन सब मुद्दों के शांत होने की उम्मीद कम नजर आ रही है।
फाइल फोटो