कर्नाटक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर काफी समृद्ध प्रदेश रहा है और इसकी राजधानी बंगलुरु देश के आईटी हब के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी है। दुनिया की कई नामी-गिरामी कंपनियों के कार्यालय बंगलुरु में हैं और देश के युवाओं के लिए यह प्रदेश उनके उज्ज्वल भविष्य का केंद्र बन चुका है। मगर दक्षिणपंथियों की नफरत भरी राजनीति अब कर्नाटक को पाषाण युग में ले जाने की कोशिश कर रही है। शिक्षा संस्थानों में हिजाब विवाद उनकी इस कोशिश का ताजा नमूना है।
पिछले महीने से कर्नाटक के कई शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम बच्चियों के हिजाब पहनने को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इन छात्राओं ने पहली बार हिजाब पहना हो, लेकिन इस पर अब रोक ही नहीं लगाई जा रही, बल्कि छात्रों को इस्तेमाल करके घिनौनी राजनीति भी शुरु हो गई है। हिजाब पहनने वाली छात्राओं के विरोध में कुछ छात्र भगवा गमछा पहनकर आ गए। जिन विद्यार्थियों का ध्यान पढ़ाई, खेलकूद और अन्य शैक्षणिक, सांस्कृतिक गतिविधियों पर होना चाहिए था, जिन्हें तालीम हासिल कर अपने लिए रोजगार की संभावनाएं तलाशने की चिंता करनी चाहिए थी, वे इस विवाद में झोंक दिए गए हैं कि कैसे दूसरे धर्म की लड़कियों को हिजाब पहनने से रोका जाए।
नफ़रत का ये माहौल अपने आप नहीं बना, इसे पिछले कुछ बरसों में सोशल मीडिया और अन्य तरीकों से युवाओं को प्रभावित करके बनाया गया है। कुछ दिनों पहले राज्य के गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने कहा था कि बच्चों को स्कूल में न तो हिजाब पहनना चाहिए और न ही भगवा शॉल ओढ़ना चाहिए। लेकिन उन्हें यह भी बताना चाहिए कि स्कूल-कॉलेजों में हिजाब को लेकर यह विवाद क्यों खड़ा हुआ और इसके शुरु होते ही सरकार ने इसे रोका क्यों नहीं। अब ये विवाद इतना बढ़ चुका है कि अब कर्नाटक में दो कॉलेजों ने किसी भी सांप्रदायिक परेशानी से बचने के लिए आज छुट्टी घोषित कर दी है, जबकि एक कॉलेज ने हिजाब पहनी हुई छात्राओं के अलग कक्षाओं में बैठने की अनुमति दी। वहीं राज्य के शिक्षा मंत्री बी सी नागेश ने रविवार को कहा कि समान गणवेश संहिता का पालन न करने वाली छात्राओं को अन्य विकल्प तलाशने की छूट है।
उन्होंने छात्रों से राजनीतिक दलों के हाथों का ‘‘हथियार’’ न बनने की अपील की है। क्या ये अपील करने से पहले श्री नागेश ने इस बात पर विचार किया है कि छात्रों को हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाली ताकतें कौन सी हैं। इस बीच उडुपी ज़िले के कुंडापुर में एक सरकारी कॉलेज में हिजाब पहनने के अधिकार को लेकर विरोध प्रदर्शन के दौरान घातक हथियार रखने के आरोप में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। माना जा रहा है कि आरोपी छात्राओं के आंदोलन का हिस्सा नहीं थे। मतलब साफ़ है कि जानबूझकर सांप्रदायिक तनाव खड़ा करने की कोशिश कर्नाटक में हो रही है।
गौरतलब है कि संविधान का अनुच्छेद 25 (1) ‘अंतरात्मा की स्वतंत्रता, धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के लिए स्वतंत्र रूप से अधिकार’ की गारंटी देता है। यह एक ऐसा अधिकार है जो नकारात्मक स्वतंत्रता की गारंटी देता है- जिसका अर्थ है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा न हो। हालांकि, सभी मौलिक अधिकारों की तरह राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य हितों के आधार पर अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है।
इस अनुच्छेद के आलोक में कर्नाटक में चल रहे घटनाक्रम को परखने की जरूरत है। अगर संन्यासियों की वेषभूषा में एक प्रदेश के मुख्यमंत्री रह सकते हैं और सारे संवैधानिक दायित्व निभा सकते हैं, अगर सिख धर्म के अनुयायियों को उनके धार्मिक प्रतीक चिह्नों को पहनने की आजादी है, तो फिर मुस्लिम छात्राओं पर बंदिश क्यों लगाई जा रही है। हिजाब पहनना या न पहनना मुस्लिम छात्राओं का व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए। धार्मिक प्रतीकों को लेकर लागू बंदिशों में कितनी कड़ाई या ढिलाई बरती जाए, यह भी सभी धर्मों को अपने-अपने स्तर पर सोचना होगा। लेकिन हिजाब के नाम पर छात्राओं को पढ़ने से रोका जाए यह तो सीधे-सीधे संविधान की अवमानना है।
हिंदुस्तान विविधताओं का देश है, इस सच्चाई को दक्षिणपंथी लोग स्वीकार ही नहीं कर पाते हैं। इसलिए वे हर बात को अपने नजरिए से देखते हैं और चाहते हैं कि सभी लोग केवल उनके नजरिए के अनुसार चलें। और ऐसा करने में वे देश का नुकसान कर रहे हैं। भारत में शासन संविधान के मुताबिक चलता है, मगर यहां की उदार परंपराओं के कारण जाने-अनजाने धार्मिक रीतियां भी कई बार सरकारी कार्यक्रमों में शामिल हो जाती हैं। जैसे किसी पुल, कारखाने या भवन निर्माण के वक्त भूमिपूजन करना, दफ्तरों में दीपावली पर बही-खाते रखने की जगह लक्ष्मी-पूजन करना, बसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा, ऐसे कई काम बरसों से होते आए हैं और सभी धर्मों के लोगों ने इसे सहज भाव से लिया है।
दुनिया के कई देशों में सिख नागरिकों को हेलमेट पहनने से छूट मिली है। और जब इस तरह की कोई खबर सामने आती है कि किसी देश में किसी भारतीय की धार्मिक आस्था की खातिर नियम में किसी तरह की ढील दी गई, तो हम खुश होते हैं। लेकिन अपने ही देश में हम क्या कर रहे हैं और धार्मिक कट्टरता के नाम पर हम क्या बन चुके हैं, अपने बच्चों को नफरत का शिकार हम किस तरह बना रहे हैं, अब इन सवालों पर भी हमें विचार करना होगा। हिजाब बनाम भगवा गमछे का यह विवाद बच्चों को पढ़ाई से दूर रखने और सांप्रदायिक राजनीति से अपनी सत्ता सुरक्षित रखने की साजिश है। हमें इस साजिश से बचना होगा।
देशबन्धु में संपादकीय