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हिन्दू धर्म की हिफाजत खून खराबा और कत्ल से नहीं हो सकती-संघ की रैली में गांधी

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कनक तिवारी

संघ की रैली में गांधी ने कहा था, ‘शुरू में जो प्रार्थना गाई गई उसमें भारत माता, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म की प्रशस्ति है. मैं दावा करता हूं मैं सनातनी हिन्दू हूं. मैं ‘सनातन‘ का मूल अर्थ लेता हूं. हिन्दू शब्द का सही सही मूल क्या है, यह कोई नहीं जानता. यह नाम हमें दूसरों ने दिया और हमने उसे अपने स्वभाव के अनुसार अपना लिया. हिन्दू धर्म ने दुनिया के सभी धर्मों की अच्छी बातें अपना ली हैं और इसलिए इस अर्थ में यह कोई तिरस्कार योग्य धर्म नहीं है. इसका इस्लाम या उसके अनुयायियों के साथ ऐसा कोई झगड़ा नहीं हो सकता, जैसा कि आज दुर्भाग्यवश हो रहा है.

जब से हिन्दू धर्म में छुआछूत का जहर फैला तब से इसकी गिरावट शुरू हुई. एक चीज तय है, और मैं यह बात जोर से कहता आया हूं, यदि छुआछूत बना रहा तो हिन्दू धर्म मिट जायेगा. उसी तरह अगर हिन्दू यह समझें कि हिन्दुस्तान में हिन्दुओं के सिवाय और किसी के लिए कोई जगह नहीं है और यदि गैर-हिन्दू, खासकर मुसलमान, यहां रहना चाहते हैं तो उन्हें हिन्दुओं का गुलाम बनकर रहना होगा, तो वे हिन्दू धर्म का नाश करेंगे. और इसी तरह यदि पाकिस्तान यह माने कि वहां सिर्फ मुसलमानों के ही लिए जगह है और गैर-मुसलमानों को वहां गुलाम बनकर रहना होगा तो इससे हिन्दुस्तान में इस्लाम का नामोनिशान मिट जायेगा.’

15 नवंबर 1947 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में दिल्ली में गांधी ने कहा था, ‘हिन्दू महासभा का मकसद हिन्दू समाज का सुधार करना है. जनता के नैतिक स्तर को ऊंचा उठाना है. तब फिर सभा सभी मुसलमानों को अनिवार्य रूप से हिन्दुस्तान से बाहर निकाल देने की बात कैसे कर सकती है ?’ गांधी ने यह भी सुना था कि कुछ लोग कह रहे हैं कि ‘कांग्रेस ने अपनी आत्मा मुसलमानों के हाथों बेच दी है. गांधी जो बकता है, उसे बकने दो. वह तो खत्म हो गया है. जवाहरलाल भी उससे कोई बेहतर नहीं है. सरदार पटेल का एक हिस्सा ठोस हिन्दू है, लेकिन आखिरकार वह भी कांग्रेसी हैं.’

गांधी ने ऐलानिया कहा ‘मैंने ऐसा भी सुना है कि इस सारी शरारत के पीछे संघ है. हमें भूलना नहीं चाहिए कि लोकमत में हजारों तलवारों से भी ज्यादा जबरदस्त ताकत है. हिन्दू धर्म की हिफाजत खून खराबा और कत्ल से नहीं हो सकती.’ अचरज है गांधी ने यह आरोप संघ की रैली में खुलेआम लगाया. ऐसा भी नहीं कि गांधी उसके बाद खामोश रहे.

16 नवंबर 1947 की प्रार्थना सभा में उत्तरप्रदेश में रामपुर में हिन्दू मुसलमान टकराहट को लेकर गांधी ने फिर कहा ‘रामपुर के हिन्दू दोस्तों का कहना है कि वे मुस्लिम लीग के छलकपट से तो निपट सकते थे लेकिन वहां हिन्दू महासभा भी है जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आदमियों से मदद मिलती है, जिनका इरादा है कि सारे मुसलमानों को हिन्दुस्तान से निकाल दिया जाए.’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर गांधी ने बहुत ज़्यादा नहीं लिखा. उन्हें इतिहास ने आजादी की जद्दोजहद के कारण लिखने का वक्त भी नहीं दिया होगा. ताजा सूचनाओं से लैस गांधी 30 नवंबर 1947 की प्रार्थना सभा में ज़्यादा मुखर आरोप लगाते हैं, ‘राजकोट से काफी खत भी आये हैं मुसलमानों के. वे लोग काफी हिन्दुओं के दोस्त हैं और कांग्रेस से भी खुश हैं, तब हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कौन है ? उनसे मुझको कोई अदावत तो हो नहीं सकती. वे सोचते हैं कि हिन्दू-धर्म को बचाने का वही तरीका है, लेकिन मैं मानता हूं कि इस तरह से हिन्दू धर्म की रक्षा नहीं होगी.

‘हिन्दू महासभा से कहूंगा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी-ये दोनों हिन्दुओं की संस्था हैं और अच्छे बड़े और पढ़े लिखे आदमी इनमें हैं. आप हिन्दू धर्म को ऐसे नहीं बचा सकते, अगर यह बात सही है कि इन्होंने ही मुसलमानों को सताया है. अगर यह सही नहीं है तो फिर किसने उनको सताया है ? कांग्रेस ने नहीं सताया, वहां की हुकूमत ने नहीं सताया और यहां की हुकूमत ने नहीं, तो पीछे और कौन हिन्दू हैं जिसने किया ? इसलिए मैं कहूंगा कि जो बेगुनाह हैं और जिनके खिलाफ इल्जाम लगाये गये हैं उनको अपना नाम साफ करना चाहिए.’

शायद आखिरी बार गांधी ने 3 दिसम्बर 1947 को फिर कहा – ‘कुछ लोगों ने तार भेजा है कि काठियावाड़ में कांग्रेस वाले ऐसा करते ही नहीं हैं. हिन्दू महासभा वाले और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाले कहते हैं कि हमने तो किसी का मकान जलाया ही नहीं है. मैं किसकी बात मानूं ? कांग्रेस की या मुसलमानों की या हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ? हमारे मुल्क में ऐसा हो गया है कि ठीक ठीक पता लगाना मुश्किल हो गया है. गलती हो गई है तो मान लेना चाहिए. हिन्दुओं से गफलत हो गई, हिन्दुओं ने ज्यादतियां कीं तो कह देना चाहिए. इसमें क्या है ? इसी तरह से अगर हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वसंसेवक संघ से कुछ नहीं हुआ है तो मैं धन्यवाद देने वाला हूं. बड़ी अच्छी बात है. सही क्या है वह मैं नहीं जानता हूं. इसे जानने की मेरी कोशिश तो चल रही है.’

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