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पेगासस जासूसी मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय ऐतिहासिक– दुष्यंत दवे

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जेपी सिंह

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसियेशन के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कहा है कि पेगासस जासूसी मामले में उच्चतम न्यायालय का निर्णय ऐतिहासिक है और “अदालत के इतिहास में एक वाटरशेड” है। दवे ने कहा कि उच्चतम न्यायालय नागरिकों के निजता के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए खड़ा है और यह अंधेरे दिनों में एक तेज धूप है।

दवे ने समिति के सदस्यों के सुप्रीम कोर्ट की पसंद पर भी विश्वास जताया। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन को समिति के प्रमुख के रूप में नियुक्त करने पर दवे ने कहा कि जस्टिस रवींद्रन का सम्मान है और वह एक असाधारण ईमानदार न्यायाधीश हैं। वह कानूनी कौशल के मामले में एक शानदार न्यायाधीश हैं; वह बेहद स्वतंत्र हैं और वह जबरदस्त संयम दर्शाते हैं लेकिन सबसे बढ़कर, वह मुद्दों में गहराई से जांच करने की गहरी भावना रखते हैं। जस्टिस रवींद्रन जाँच समिति के प्रमुख के लिए उत्कृष्ट विकल्प हैं।

उच्चतम न्यायालय ने कल पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग कर राजनेताओं, पत्रकारों, कार्यकर्ताओं आदि की व्यापक और लक्षित निगरानी के आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति के गठन का आदेश दिया। दवे ने कहा कि न्यायालय नागरिकों की संवैधानिक गारंटी और विशेष रूप से निजता के अधिकार के उल्लंघन के बारे में गंभीर रूप से चिंतित है। उन्होंने आलोक जोशी सहित समिति में अन्य सदस्यों की नियुक्ति के विकल्प पर विश्वास व्यक्त किया, जिन्हें वर्तमान सरकार द्वारा राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस आरवी रवींद्रन ने संवैधानिक कानून, आरक्षण, मानवाधिकार और शिक्षा से जुड़े मामलों में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए थे। जस्टिस रवींद्रन 2011 में रिटायर हुए थे। 1968 में बतौर वकील अपने करियर की शुरुआत करने वाले आरवी रवींद्रन 1993 में कर्नाटक हाई कोर्ट के जज बने। 2004 में वो मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने। अगले ही साल 2005 में जस्टिस रवींद्रन को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति मिली और 2011 में वो वहीं से रिटायर हुए।

वर्ष 2006 में जिस संवैधानिक पीठ ने आईआईटी और आईआईएम समेत केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को बरकरार रखा था, जस्टिस आरवी रवींद्रन उस पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में शामिल थे।

वर्ष 2004 में राष्ट्रपति द्वारा हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और गोवा के राज्यपालों को हटाने के मामले में एक जनहित याचिका डाली गई थी, जिस पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था कि राज्यपाल को केवल इस आधार पर नहीं हटाया जा सकता कि, वो केंद्र सरकार या सत्तारूढ़ दल की विचारधारा से अलग मत रखता है या केंद्र सरकार ने उसमें विश्वास खो दिया है। जिस पीठ ने ये टिप्पणी की थी उसमें जस्टिस आरवी रवींद्रन भी थे। राज्यपालों को हटाने से संबंधित मामले का फैसला करते हुए संविधान पीठ ने केंद्र में शासन बदलने पर राज्यपालों को बदलने की प्रवृत्ति की निंदा की थी।

वर्ष 2014 में बीसीसीआई में सुधार के लिए बनी लोढ़ा समिति में जस्टिस आरवी रवींद्रन सदस्य थे। इस समिति ने करीब एक साल बाद 2015 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने केरल की रहने वाली हादिया के जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में एनआईए की जांच की देखरेख करने के लिए उनसे गुजारिश की, लेकिन इन्होंने इनकार कर दिया।

जस्टिस आरवी रवींद्रन की नवीनतम पुस्तक “एनोमलीज़ इन लॉ एंड जस्टिस: राइटिंग रिलेटेड टू लॉ एंड जस्टिस” इस साल जून में भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना द्वारा जारी की गई थी।इस कार्यक्रम में पूर्व चीफ जस्टिस आरसी लाहोटी ने कहा था कि जस्टिस रवींद्रन ने कभी अदालत में आवाज नहीं उठाई, कभी संतुलन नहीं खोया, कभी कोई टिप्पणी नहीं की और न ही किसी की आलोचना की। वह कभी उपदेश नहीं देते। उनका मानना था कि उनका कर्तव्य मामले के तथ्यों के प्रति था, न कि व्यक्तियों का न्याय करना।

जाँच समिति में शामिल आलोक जोशी 1976 बैच के हरियाणा कैडर के रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं। विदेशों में भारत की इंटेलिजेंस जुटाने वाली एजेंसी रॉ के चीफ रह चुके हैं। जोशी पेगासस मामले की जांच में जस्टिस रवींद्रन की मदद करेंगे। डॉ. संदीप ओबरॉय जाने-माने आईटी और साइबर एक्सपर्ट हैं। उन्होंने आईआईटी कानपुर से बी-टेक , आईआईटी दिल्ली से एम-टेक और आईआईटी बॉम्बे से पीएचडी किया है।ओबरॉय इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ स्टैंडर्डाइजेशन सब कमेटी के चेयरमैन हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए 3 सदस्यीय टेक्निकल कमेटी भी बनाई है। डॉ. नवीन कुमार चौधरी गांधीनगर स्थित नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के डीन हैं। चौधरी साइबर और डिजिटल फॉरेंसिक्स के एक्सपर्ट हैं, उन्हें इस क्षेत्र में 20 साल से ज्यादा का अनुभव है।

डॉ. प्रभाकरन पी केरल स्थित अमृत विश्व विद्यापीठ में प्रोफेसर हैं। वह कंप्यूटर साइंस और सिक्यॉरिटी के क्षेत्र में 20 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले हैं। वे मालवेयर डिटेक्शन, क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चरल सिक्योरिटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जानकार माने जाते हैं ।

डॉ. अश्विन अनिल गुमस्ते अमेरिकी की प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी से जुड़े वैज्ञानिक रह चुके हैं। उनके नाम पर अमेरिका में 20 से ज्यादा पेटेंट्स हैं। गुमस्ते के 150 से ज्यादा रिसर्च प्रकाशित हो चुके हैं। उन्होंने 3 किताबें भी लिखी हैं।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार

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