इंदौर की रंगपंचमी पर आयोजित होने वाली गैर का इतिहास अपने आप में निराला है। होली से अधिक उत्साह से मालवा में रंगपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इंदौर में रंगपंचमी का आयोजन होलकर रियासत काल से हो रहा है। पहले राजबाड़े के समीप भव्य आयोजन हुआ करते थे। इन आयोजनों में रेसीडेंसी कोठी से अंग्रेज अधिकारी भी शामिल होने आया करते थे।
विश्व धरोहर बनाने की तैयारी
इंदौर में होने वाले इस भव्य आयोजन को अब एक नई पहचान दिलाने के लिए विश्व धरोहर में शामिल किए जाने के प्रयास जारी हैं। होली से आरंभ होने वाले पांच दिवसीय रंगोत्सव की अब अनूठी पहचान देश भर में हो गई है।
इंदौर के महाराजा शिवजीराव होल्कर के कार्यकाल में रंगपंचमी पर भव्य संगीत का आयोजन हुआ करता था। इसमें महाराजा शिरकत करते थे। इस आयोजन में बनारस, लखनऊ, पंजाब, लाहौर, आगरा, पूना और कोल्हापुर से कलाकार आमंत्रित किए जाते थे और वे अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। रंगपंचमी के आयोजन में नृत्य का भी आयोजन होता था। हरिद्वारी बाई और गंगाबाई की नृत्य कला से महाराजा प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें राज्य नर्तकी की उपाधि से सम्मनित किया था। होली के अवसर पर बुंदू खां की सारंगी, बाबू खां बीनकार के साथ गायक वाहिद खां, उस्मान खां, विनायक पटवर्द्धन और नारायणराव व्यास भी अपनी कला की प्रस्तुति देते थे।
दमकलों से छोड़ा गया रंग
महाराजा यशवंत राव होल्कर के वयस्क न होने से राजकाज एक परिषद द्वारा संचालित होता था। महाराजा नाबालिग थे तब 1928-29 में इंदौर के लिए फायर ब्रिगेड वाहन खरीदे गए। महाराजा से पूछा तो उन्होंने फायर ब्रिगेड की दमकलों से होली खेलने का कहा। वन विभाग ने टेसू के फूलों का संग्रह किया और रंगपंचमी पर रंगों का भव्य का आयोजन किया जाता है। इसमें रंगों में टेसू के फूल के रंग और केसरिया रंगों का उपयोग किया जाता था।
चांदी की पिचकारियों से डालते थे रंग
रंगपंचमी के इस भव्य आयोजन में सुगंधित रंग गुलाल और इत्रों का प्रयोग होता है। महाराजा होलकर और सरदार चांदी की पिचकारियों से रंगों का छिड़काव करते थे। होली से रंगपंचमी तक के आयोजन मेल -मिलाप और खुशियों का पर्व माना जाता था।
आजादी के बाद भी परंपरा जारी
आजादी के बाद भी यह परंपरा जारी रही। अब रंगपंचमी के आयोजन का क्षेत्र राजबाड़ा से आरंभ होने के बजाय मल्हारगंज और टोरी कॉर्नर से हो गया। फिर राधाकृष्ण फाग यात्रा और अन्य गेरों के शामिल होने से इस रंगपंचमी के पर्व को नया आयाम मिल गया है। हंसी-ठिठोली के साथ बाने निकाले जाते हैं और रंगों की बौछार से हर कोई भीग जाता है। नगर के मध्य में गेरों में उमड़ने वाली भीड़ एक नई कहानी बयां करती है। बड़ी संख्या में बाहरी लोग भी गेरों को देखने आते हैं। किसी समय इंदौर की कपड़ा मिलों की गणेश विसर्जन झांकियों को देखने आने वालों के लिए रेलवे स्पेशल ट्रेनें चलाता था। दूर-दूर से लोग इस उत्सवी परंपरा को देखने आया करते थे।