~ पवन कुमार ‘ज्योतिषाचार्य’
मदिरा की खोज कब और कहाँ व कैसे हुई इसको लेकर संसार भर के विद्वान अभी भी विमर्श ही कर रहे हैं. कोई इसे मेसोपोटामिया की सभ्यता से मानता है तो कोई इसे मिस्र से. कुल मिलाकर इस पर एक सहमति है कि वाइन का जन्म मेडिटेरिनियन अर्थात् भूमध्य-सागरीय क्षेत्र में ही हुआ होगा. वाइन की खोज एक प्रकार से इन सभ्यताओं के लिए एक चमत्कार से कम नहीं थी.
मिस्र और ग्रीक में वाइन इतना दैवीय था कि इसे केवल देवताओं का प्रसाद और फेरो, किंग का अधिकार माना जाता था. और देवता “पानी नहीं वाइन” पीते थे. इस पर ध्यान दीजिएगा यूरोपियन और मध्य-पूर्वी संस्कृति का यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है.
ग्रीक से यह रोमनों के पास गई और रोमन ने वाइन को एक एलीटिस्ट पहचान बना दी. एक ग्लास वाइन उसी भाग्यवान को मिलता था जो एलीट हो या जिसे एलीट की कृपा मिली हो. पानी पीना या देना गरीबों का काम था. रोमन सीजर या एलीटी यदि किसी पेट्रन, लोअर लीडर, या पाइलट के पास जाते और पानी पी लेते तो यह बड़ी घटना होती थी.
इसके पीछे का कारण यह था कि मिस्र, ग्रीक, रोमन या यहूदी नगरों के बसावट में पानी को साफ करने का कोई उपाय नहीं था. जिससे गंदे पानी के कारण डायरिया, कॉलरा आदि गंदे पानी की बीमारी से बस्तियाँ समाप्त हो जाती थीं.
वाइन की खोज ने चमत्कार का काम किया और चूँकि वाइन अर्थात् अल्कॉहल कई प्रकार के बैक्टिरिया को मार देता था. इसीलिए बीमारी से होने वाली मृत्यु में कमी आती थी. पानी में वाइन मिलाकर पीना अमीरों की पहचान था.
वाइन ग्लास, चेलिस आदि बनाना इन सभ्यताओं में बहुत ही विशेष काम होता था. ग्रीक वाइन बॉटल के अवशेषी अंग आपको आज भी वाइन की बोतल पर दिखेंगे. इसी के चलते वाइन को विशेष माना गया. और चूँकि वाइन फैक्ट्री तो थी नहीं इसीलिए सीमित मात्रा में वाइन बनती थी. जो राजाओं, सामंतों और धनाढ्य, ऊँचे कुल वालों के लिए ही थी.
बाइबल में जीसस से जुड़ी दो सबसे चमत्कारी घटनाओं में से एक पानी को वाइन में बदलना ही था. यह इस बात का प्रतीक है कि जीसस ने वाइन को आम जनमानस का अधिकार दिया था. जीसस ने बताया ब्रेड एंड वाइन कोई दैवीय अधिकार नहीं हैं.
मिस्र, ग्रीक, रोमन और यहूदी से होते हुए जीसस के वाइन आंदोलन के कारण ईसाई धर्म में भी वाइन एक प्रमुख संस्कार बन गया. इसीलिए संडे मॉस अर्थात् ईसाई धर्म के अनुसार परमेश्वर की प्रार्थना के दिन वाइन पिलाई और ब्रेड खिलाई जाती है.
यहाँ एक बात और है कि संभवतः इसी वाइन के एलीटनेस के कराण इस्लाम में शराब प्रतिबंधित है. क्योंकि जैसा मिस्री और यहूदी मानते थे वैसा वाइन देवताओं की वस्तु है. इसीलिए जन्नत में खम्र अर्थात् शराब है लेकिन धरती पर नहीं. तो मध्य-पूर्वी और यूरोपियन सभ्यताएँ व चाहें यहूदी, ईसाई और इस्लाम की बाद की हों या पूर्व की सब वाइन के आस-पास घूमती मिलती हैं.
इसके अंग आपको हर मान्यता में मिल जाएंगे.इसीलिए अंग्रेज, यूरोपियन भारत आए तो उन्होंने यहाँ देवताओं के पेय सोमरस को वाइन समझा. और अपनी समझ के अनुसार सोमरस का अनुवाद शराब कर दिया. जबकि सोमरस आर्युवेदिक क्वाथ, रस, रसायन, सुरा, आसव है ना की वाइन.
इन सभ्यताओं से बहुत पहले ही भारत ने पानी को शुद्ध करने और नगर सभ्यताओं में अपशिष्ट निस्तारण की व्यवस्था कर ली थी. फर्मेंटेशन अर्थात् किण्वन की विभिन्न स्थितियों का ज्ञान यहाँ था. आयुर्वेद का पूरा आसव, सुरा प्रकरण और किण्वन ग्रंथ ही हैं.
लेकिन जैसा होता आया है, एक संस्कृति जब दूसरे पर आरोपित होती है. तो दूसरे को अपने समाहित करना चाहती है या उसे मिटाकर अपने को स्थापित करना चाहती है. (चेतना विकास मिशन).