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ईरान:धर्मगुरुओं के बहकावे में आकर कैसे एक प्रगतिशील देश का गला घोंट दिया

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ब्रह्मदीप अलूने

गणतंत्र का अर्थ यह संदेश देता है कि सत्ता सार्वजनिक है तथा यह किसी की निजी सम्पत्ति नहीं है। लेकिन जब गणतंत्र में धार्मिक होने की अनिवार्यता बता दी जाएं तो यह सुनिश्चित हो जाता है कि शासक वर्ग धर्मगुरु ही होंगे। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद ईरान को धार्मिक गणतंत्र घोषित कर दिया गया था। यह शब्द संभवतः इसलिए गढ़ा गया क्योंकि इसके पहले ईरान की सर्वोच्च सत्ता पर तानाशाह आसीन होते थे और साम्यवादी सरकार खुलेपन को स्वीकार करती थी। क्रांति के बाद ईरान के सर्वोच्च पद पर धर्मगुरु की ताजपोशी की गई और देश को शरिया नियमों पर चलाने का ऐलान कर दिया गया। इस्लामिक कानूनों को लेकर दुनिया में यह आम राय है कि इसका संचालन धर्मग्रंथों को परिभाषित करने वाले मौलवियों और उलेमाओं की समझ पर निर्भर करता है। यही कारण है कि अफगानिस्तान में तालिबान, सऊदी अरब के सुल्तान और ईरान के धर्मगुरु सभी इस्लामिक कानूनों पर आधारित व्यवस्था की बात तो कहते है, लेकिन इन तीनों देशों में अलग अलग कानून और उनको संचालित करने के तौर तरीके है।

यदि बात महिलाओं की करें तो इसमें गहरे विरोधाभास है। इस्लामिक दुनिया में सऊदी अरब का अलग रुतबा है लेकिन वहां महिलाएं अकेली यात्रा कर सकती हैं, कार चला सकती हैं। अब यहां सिनेमा हॉल भी खुल रहे है और चेहरा ढकने की सख्ती को भी शिथिल कर दिया गया है। महिला शिक्षा को लेकर सऊदी अरब में उदारता देखी जा रही है। वहीं ईरान में महिलाओं के हिजाब पहनने के तरीके के नाम पर ही नैतिक पुलिस के द्वारा महसा अमीनी को मार डाला गया। फुटबॉल के लिए जूनून से भरे इस देश में महिलाओं के स्टेडियम जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। ईरान में शादी से पहले कौमार्य कई लड़कियों और उनके परिवारों के लिए बेहद अहम है। ईरान में घरेलू हिंसा को पारिवारिक मामला समझा जाता है,लिहाजा अधिकांश महिलाएं घरेलू हिंसा को चुपचाप सहने को मजबूर है। ऑनर किलिंग को लेकर कोई पुलिस कार्रवाई नहीं की जाती। यहां तक की ईरान में धार्मिक पुलिस को व्यापक अधिकार दे दिए गए है,इसी का नतीजा है ईरान में महिलाओं और युवाओं का हालिया प्रदर्शन। ईरान से लगे अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी ने महिलाओं का जीवन नारकीय बना दिया है। यहां महिलाओं का भविष्य गर्भ धारण से ही तय हो जाता है और गर्भ से यदि बेटी हुई तो उसका विवाह के लिए उसे किसी भी उम्र के आदमी को बेच दिया जाता है। मतलब इस देश में 10 से 12 साल की उम्र लडकियों के यौन संबंध के लिए आदर्श मान ली गई है। अफगानिस्तान की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है,यहां गरीबी,अशिक्षा और पिछड़ापन है। शिक्षा और रोजगार से दूर करने के साथ ही तालिबान ने महिलाओं को कड़े नियमों में बांध कर रख दिया है। इनमें घर की दहलीज़ लांघने से पहले ख़ुद को हिजाब से ढंकना और पति या किसी महरम के साथ ही बाहर निकलना शामिल है। देश में सहशिक्षा यानी लड़के-लड़कियों को साथ पढ़ने की अनुमति नहीं है।

धार्मिक गणतंत्र ईरान में मौलवियों और धर्मगुरुओं का अतिवाद पूरी तरह से हावी है। यहां धर्मगुरुओं की सनक की सुरक्षा के लिए रिवोल्यूशनरी गार्ड और रिवोल्यूशनरी कोर्ट स्थापित कर दी गई है। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद मुल्क में रिवॉल्यूशनरी गार्ड का गठन किया गया था। ये ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खुमैनी का फैसला था। रिवॉल्यूशनरी गार्ड का मक़सद नई हुकूमत की हिफाज़त और आर्मी के साथ सत्ता संतुलन बनाना था। ईरान में शाह के पतन के बाद हुकूमत में आई सरकार को ये लगा कि उन्हें एक ऐसी फौज की जरूरत है जो नए निजाम और क्रांति के मक़सद की हिफाज़त कर सके। रिवॉल्यूशनरी गार्ड की कमान ईरान के सुप्रीम लीडर के हाथ में है। सुप्रीम लीडर देश के सशस्त्र बलों के सुप्रीम कमांडर भी हैं। वे इसके अहम पदों पर अपने पुराने सियासी साथियों की नियुक्ति करते हैं ताकि रिवॉल्यूशनरी गार्ड पर उनकी कमान मजबूत बनी रहे। रिवॉल्यूशनरी गार्ड में अच्छी सैलरी पर धार्मिक नौजवानों की नियुक्ति की जाती है। अर्थात् देश की आंतरिक सुरक्षा का सबसे बड़े पहरुआ ईरान के धार्मिक नेता के इशारों पर चलता है। वहीं 1979 में स्थापित रिवोल्यूशनरी कोर्ट में भी सर्वोच्च धार्मिक नेता के पसंद के ही जज होते है। रिवॉल्यूशनरी कोर्ट ईरान की ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसियों के दवाब में काम करता है और ये ख़ुफ़िया प्रक्रियाओं का पालन करते हुए सख़्त सज़ाएं सुनाता है। ईरान ने पिछले कुछ महीनों से सरकार विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के कारण एक प्रदर्शनकारी को मौत की सज़ा दे दी है। इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी कोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ अपराध,नशीले पदार्थों की तस्करी और इस्लामिक गणराज्य को कमजोर करने के लिए कहे जाने वाले कार्य के आरोप पर सजा तय करता है। दरअसल यह अदालत राजनीतिक विरोधियों को निपटाने का हथियार बना दी गई है। जहां हजारों राजनीतिक विरोधियों को नशीले पदार्थों की तस्करी,सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी या अन्य गंभीर किस्म के अपराधों का जिम्मेदार बताकर फांसी पर टांग दिया जाता है।

इस समय देश में सरकार के विरोध में जो बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे है उसे दबाने के लिए एक बार रिवोल्यूशनरी कोर्ट ने प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाते हुए मोहसिन शेकारी को फांसी पर चढ़ा दिया। कोर्ट ने उन्हें अल्लाह के ख़िलाफ़ दुश्मनी का दोषी पाया जबकि शेकारी का अपराध यह था की उन्होंने सरकार की महिला विरोधी नीतियों के विरोध में बढ़चढ़ हिस्सा लिया था। हालांकि सजा का दौर अभी थमा नहीं है और अभी और भी कई प्रदर्शनकारियों को फांसी की सजा दिए जाने का अंदेशा है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि मौत की सज़ाएं,प्रदर्शनों को दबाने और जनता में डर पैदा करने के लिए सुनाई गई हैं।

1979 की इस्लामिक क्रांति के पहले ईरान में महिलाओं के पास शिक्षा के साथ ही अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनने की आज़ादी थी। वो फ़ुटबॉल खेल सकती थीं और मैच देख सकती थीं। समाज में काफी खुलापन था और यह बिल्कुल यूरोपियन देश की तरह नजर आता था हालांकि वहां के शासक तानाशाह थे। ईरान के शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी 1941 से सत्ता में थे,उन्हें निरंतर धार्मिक नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ता था। शाह ने धार्मिक कट्टरता को रोकने और ईरान को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने के लिए कई क़दम उठाए जिससे मुल्ला चिढ गए और उन्होंने देश में अशांति पैदा कर दी। अंततः शाह को देश छोड़कर जाना पड़ा तथा धार्मिक नेता आयतुल्लाह रुहोल्लाह ख़ोमैनी ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। उस समय ईरान के प्रधानमंत्री डॉ. शापोर बख़्तियार देश में चुनाव करवाना चाहते थे लेकिन ख़ोमैनी ने उनकी एक न चलने दी और ख़ुद ही एक अंतरिम सरकार का गठन कर लिया। ख़ोमैनी ने जनता की सरकार को प्रचारित करके अपने अधीन एक लोकप्रिय धार्मिक गणतंत्र की स्थापना की कर दी और यहीं से इस देश में धार्मिक अतिवाद का एक नया किंतु बदतरीन दौर शुरू हो गया। बहरहाल आधुनिक दुनिया से दूर ईरान की शासन प्रणाली करोड़ों लोगों के अधिकारों को कुचल रही है, राजनीतिक विरोधियों को मार रही है तथा शासन तंत्र को हथियार बनाकर सुधारवादी आंदोलनों को दबा रही है। देश की युवा पीढ़ी मजबूर,बेबस और हताश है तथा हैरान भी है कि आखिर उनके बुजूर्गों ने धर्मगुरुओं के बहकावे में आकर कैसे एक प्रगतिशील देश का गला घोंट दिया।

(डॉ. ब्रह्मदीप अलूने उच्च शिक्षा, मध्य प्रदेश शासन के अंतर्गत राजनीति विज्ञान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्राध्यापक है और डेढ़ दशक से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं। राष्ट्रीय समाचार पत्र -पत्रिकाओं के नियमित कोलमनिस्ट है और राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर लगातार लिखते रहे हैं।)

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