राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लोगों से उनकी चर्चा का हवाला देते हुए ये बातें कहीं। अगर सरकार को ये आपत्तिजनक लग भी रही हैं, तब भी स्पष्टीकरण देने की उसकी जवाबदेही बनती है। अदानी समूह को निजी मामला बताकर सरकार अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती, क्योंकि निजीकरण की मुहिम के कारण कई सरकारी उपक्रमों में अब अदानी समूह की भागीदारी है।
मजबूर और मजबूत में केवल र और त का अंतर है। लेकिन इस एक अंतर से अर्थों में भारी फर्क आ जाता है। जैसे भाजपा बहुमत के लिहाज से मजबूत है, लेकिन फिलहाल कांग्रेस के आरोपों के आगे मजबूर है। र और त को मिलाकर रत भी बनता है, तर भी। चंदे से तर होकर भाजपा सबसे अमीर पार्टी है और प्रयास रत है कि चंदे की रकम में कभी कमी न आए। भाजपा के रत और तर वाले इसी रवैये पर मंगलवार को राहुल गांधी ने लोकसभा में अपने विचार रखे। संसद के इतिहास में कुछ भाषण अविस्मरणीय माने गए हैं, राहुल गांधी का पूरा भाषण अगर संसद के रिकार्ड में दर्ज हो, तो वह भी ऐतिहासिक भाषणों में ही शुमार होगा। हालांकि इसकी संभावनाएं कम हैं। क्योंकि मौजूदा सरकार के पैमाने में आलोचना के लिए स्थान है ही नहीं। कोई जरा सी मीन-मेख सरकार के कामकाज या मोदीजी के फैसलों पर निकाल कर दिखा दे, तो समूचा तंत्र बचाव के साथ-साथ पलटवार करने में जुट जाता है। गड़े मुर्दे निकालने का सिलसिला शुरु हो जाता है। अगर कोई बता दे कि सिंधु घाटी सभ्यता के दौर में भी कांग्रेस थी और उसने तब कोई गलती की थी, तो भाजपा के पुरातत्ववेत्ता उसे याद दिलाने से भी नहीं चूकेंगे। अच्छा है कि कबीर इस दौर में नहीं हुए, वर्ना निंदक नियरे राखिए जैसा दोहा लिखने पर उन्हें राष्ट्रद्रोह का आरोपी बना दिया जाता। साबुन, पानी, आंगन, कुटि जैसे शब्दों के आधार पर ईडी और आईटी पीछे लग जाती।
उनका हथकरघा किसी निजी कंपनी के हवाले हो जाता और इसे देशहित में लिया गया धर्मार्थ फैसला बता दिया जाता। वैसे ही जैसे पीएम केयर फंड सरकारी विभागों, निगमों, निजी प्रतिष्ठानों से चंदा लेकर, राष्ट्रीय चिह्न के साथ प्रचारित होकर भी धर्मार्थ फंड बता दिया गया है। धर्म के नाम पर सवाल पूछने की देश में अघोषित मनाही हो चुकी है, इसलिए कोई पीएम केयर फंड का हिसाब-किताब नहीं पूछ सकता। जहां सवाल-जवाब की गुंजाइश ही नहीं, वहां क्या बात की जाए। इसलिए इस मुद्दे को यहीं रहने देते हैं।
लेकिन अदानी मामले को ऐसे ही कैसे रहने दें। क्योंकि जैसा राहुल गांधी ने लोकसभा में कहा कि तमिलनाडु से लेकर केरल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, सब जगह एक नाम हमें सुनने मिला-अदानी। ये अदानी जी पहले एक-दो बिजनेस करते थे, अब एयरपोर्ट, डेटा सेंटर, सीमेंट, सोलर एनर्जी, विंड एनर्जी, एरो स्पेस एंड डिफेंड, कंज्यूमर फाइनेंस, रिन्यूबल एनर्जी, मीडिया, पोर्ट सब में अदानी का नाम है। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान लोगों से उनकी चर्चा का हवाला देते हुए ये बातें कहीं।
अगर सरकार को ये आपत्तिजनक लग भी रही हैं, तब भी स्पष्टीकरण देने की उसकी जवाबदेही बनती है। अदानी समूह को निजी मामला बताकर सरकार अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती, क्योंकि निजीकरण की मुहिम के कारण कई सरकारी उपक्रमों में अब अदानी समूह की भागीदारी है। जहां सरकार और निजी भागीदारी से काम हो रहा हो, वहां केवल एक पक्ष ही नहीं, दोनों पक्ष जवाबदेह होते हैं। अदानी समूह ने तो हिंडनबर्ग के आरोपों पर अपनी सफाई में कह दिया कि यह देश पर सुनियोजित हमला है। अगर वाकई ऐसा है, तो फिर देश खतरे में है और इस नाते ही सही मोदी सरकार को जवाब तो देना ही चाहिए। संसद में राहुल गांधी इसलिए तो सवाल उठा रहे थे, क्योंकि सवाल देशहित का है। भाजपा उसे अपने हित-अहित से जोड़कर क्यों देख रही है।
राहुल गांधी को आप पसंद कर सकते हैं, नापसंद कर सकते हैं, लेकिन लोकसभा में उनकी कही बातों को हवा में नहीं उड़ा सकते। वैसे भी मंगलवार के उनका भाषण इतना दमदार था कि उसे हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। आज की पीढ़ी की भाषा में कहें तो राहुल ने सदन में आग लगा दी थी। अब इस आग को अगर बुझाना है, अगर राहुल के भाषण को खारिज करना है तो फिर भाजपा को उतने ही मजबूत तर्क पेश करने होंगे। केवल कांग्रेस पर लगाए पुराने आरोप दोहराने से बात नहीं बनेगी।
राहुल गांधी ने लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी और गौतम अदानी की विमान में एक साथ बैठी हुई तस्वीर भी दिखाई। हालांकि इस पर लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें फौरन टोका। संसद कवरेज कर रहा कैमरे का फोकस भी फोटो से तत्काल हटा लिया गया। लेकिन उतनी देर में देश और दुनिया ने उस तस्वीर को देख ही लिया, जिसमें दोनों सज्जन काफी सहज, आरामदायक मुद्रा में नजर आ रहे हैं। ये आराम तभी महसूस होता है, जब कोई अपना साथ होता है। राहुल गांधी ने संसद में इसी रिश्ते को बताया और कुछ सवाल पूछे। अब भाजपा इस बात पर नाराज हो गई है। अगर उसकी नाराजगी इस बात पर है कि राहुल गांधी ने एक रिश्ते का जिक्र संसद में कर दिया है, तो उसे बता देना चाहिए कि रिश्ता है या नहीं। अगर नहीं है, तो फिर कोई बात ही नहीं है, तब राहुल से भाजपा माफी की मांग करे। और अगर रिश्ता है तो फिर नाराज होना छोड़ दे।
राहुल ने 6 एयरपोर्ट अदानी समूह को सौंपने, ड्रोन बनाने का काम सौंपने आदि का जिक्र करते हुए संसद में आरोप लगाया कि इन सारे कार्यों के लिए पूर्व अनुभव जरूरी होता है, लेकिन अदानी समूह को यह सब सौंपने के लिए मोदी सरकार ने नियमों में बदलाव किए हैं। राहुल ने संसद में साफ-साफ शब्दों में कहा कि प्रधानमंत्री जहां जाते हैं, उसी देश से अदानी को कांट्रैक्ट मिलने लगते हैं और इसी पर कुछ सवाल उन्होंने सरकार से पूछे हैं- जैसे विदेश यात्रा पर कितनी बार गौतम अदानी प्रधानमंत्री के साथ गए? गौतम अदानी ने कितनी यात्राओं में पीछे से प्रधानमंत्री को ज्वाइन किया? प्रधानमंत्री के किसी देश में पहुंचने के तुरंत बाद अदानी वहां पर कितने बार पहुंचे? कितने ऐसे देश हैं जिन्होंने पीएम की यात्रा के बाद गौतम अदानी को कॉन्ट्रैक्ट दिए हैं? अदानी ने बीजेपी को पिछले बीस साल में कितने पैसे दिए हैं? अदानी ने इलेक्टोरल बॉन्ड में कितना पैसा दिया है? भाजपा अगर पिछले रिकार्ड खंगाले तो इन सारे सवालों के जवाब फौरन दे सकती है।
मगर अपना लेखा-जोखा देखने की जगह एक बार फिर भाजपा ने कांग्रेस को उसके हिसाब याद दिलाने शुरु कर दिए हैं। कानून मंत्री किरेन रिजिजू मांग कर रहे हैं कि केवल आरोप लगाने से काम नहीं चलेगा, आपको दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे याद दिला रहे हैं कि अगस्त 2010 में कांग्रेस सरकार ने अदानी को ऑस्ट्रेलिया में कोयले की खदान का टेंडर दिया था। उन्होंने अशोक गहलोत, ओमान चांडी और कमलनाथ के साथ अदानी के संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस की हालत, 100 चूहे खाकर हज को चलने वाली बिल्ली की तरह है। इस तरह के पलटवार से भाजपा के लोग अपना पक्ष कमजोर कर रहे हैं, क्योंकि कहीं न कहीं वे भी मान रहे हैं कि किसी उद्योगपति के लिए सरकार का झुकाव गलत है। जो बातें कांग्रेस के लिए गलत हो सकती हैं, वो भाजपा के लिए सही कैसे हो सकती हैं। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद तो फिर से 2-जी स्पेक्ट्रम और बोफोर्स की बात याद दिलाने लगे, जबकि उनमें कांग्रेस पर कोई आरोप साबित नहीं हुआ है।
रविशंकर प्रसाद ने फिर से गांधी परिवार पर भ्रष्टाचार का आऱोप लगाया। ऐसी कमजोर दलीलों से भाजपा मजबूर नजर आ रही है, मजबूत नहीं। र और त के इस अंतर को मिटाना है, तो फिर कुछ और तरकीबों पर पार्टी नेता विचार मंथन करें। राहुल गांधी के भाषण पर जितनी अधिक प्रतिक्रियाएं देंगे, जनता के बीच सच्चाई जानने की उत्सुकता उतनी अधिक बढ़ेगी। चुनावी माहौल में ये उत्सुकता भाजपा की सेहत के लिए ठीक नहीं होगी। चित्तौड़गढ़ से भाजपा सांसद सीपी जोशी ने जैसे राष्ट्रपति मुर्मू को शबरी और मोदीजी को राम बताकर चर्चा का नया विषय खड़ा कर दिया है, फिलहाल भाजपा को ऐसी ही रणनीतियों पर विचार करना चाहिए। अगर बांस बना रहा तो बांसुरी बजती ही रहेगी।