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श्रद्धा मर्डर केस को मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक  कैसे सॉल्व करते?

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देश में इस वक्त श्रद्धा मर्डर केस की चर्चा हो रही है। श्रद्धा को आफताब ने किस बेरहमी से मारा और उसके कई टुकड़े कर दिए। वह दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में है। दिल्ली पुलिस इस मामले की जांच कर रही है लेकिन उसके पास कातिल के अलावा दूसरे कोई खास सबूत हाथ नहीं लगे हैं। दिल्ली पुलिस इस पूरी मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने में लगी है लेकिन उसके सामने ढेरों सवाल हैं। इसी केस से जुड़े कुछ सवाल जासूसी उपन्यासों के मशहूर लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक के भी सामने आए जो अब तक तीन सौ से अधिक उपन्यास लिख चुके हैं। एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में पहुंचे सुरेंद्र मोहन पाठक से श्रद्धा मर्डर केस से जुड़ा सवाल पूछा गया जिसका जवाब उन्होंने दिया।

क्राइम के कई केस सॉल्व किए हैं किताबों के जरिए। क्राइम पर लिखते हैं श्रद्धा क्राइम पर नजर पड़ी होगी। सबूत अब तक यह नहीं मिला कि श्रद्धा जिंदा है कि नहीं। इस केस को आपको दिया जाए तो इसे कैसे सुलझाएंगे। सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि किसी ने सच में ऐसा किया होगा सोचकर प्राण कांपते हैं। साथी के टुकड़े किए, फ्रिज स्पेशल ऑर्डर किए। यह क्राइम कोई नई बात नहीं है। 35 टुकड़े किए यह बात कैसे कही जा सकती है। समाज में पहली बार ऐसा नहीं हुआ है। पुलिस कुछ बातों पर मजबूर होती है। थाने में रोज केस आते हैं। पुलिस के पास कोई वैज्ञानिक तरीका नहीं है कि जिससे आरोपी को खोज ले। हर केस की अलग कहानी है।

हमारे यहां सभी बड़े छोटे केस पहले थाने में आते हैं लेकिन विदेशों में ऐसा नहीं है। हमारे यहां थाने में केस आने के बाद कई बार यह डिमांड की जाती है कि सीआईडी या सीबीआई सौंप दिया जाए। सत्येंद्र मोहन से पूछा गया कि क्या कभी ऐसा कोई मौका आया जब किसी एसएचओ ने कहा कि इस केस को सुलझाने में मदद करिए। उन्होंने कहा कि फेस टू फेस नहीं लेकिन राइटिंग में ऐसा किया। केस मेरे पास आया और पूछा गया कि क्या कुछ हो सकता है।

सुरेंद्र मोहन ने कहा कि बैंक में डकैती में कामयाबी के बाद आगे क्या होगा राइटर को यह सोचना है। क्राइम करने वाला क्या सोच रहा और उसकी जांच करने वाले के दिमाग में क्या चल रहा इसको भी सोचना होता है। निठारी, आरुषि, श्रद्धा केस मर्डर में मर्डर के बाद लाश छिपाने की सोच आती कैसे है। इसके जवाब सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि ऐसे अपराध जघन्य प्लान करके नहीं कोई करता। आपा खोने वाली बात है।और न ही रोज होने वाली बात है। पुलिस तो वैसे केस में भी कई बार कुछ नहीं कर पाती जिसे वह रोज दिखाई पड़ता है।

सुरेंद्र मोहन ने कहा कि जहां तक किताब और कहानी की बात है उसमें एंड पहले सोचना होता है। कहानी के आखिरी हिस्से को सोचकर शुरुआत से प्लानिंग करती होती है। सुरेंद्र मोहन पाठक ने कहा कि 300 से अधिक किताबें लिखीं लेकिन हिंसा और सेक्स दोनों से परहेज रखा।

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