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बैंकों को झाँसा दे कर मुनाफाखोरी कैसी की जाती है*

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अनिल भाटिया

कल्पना कीजिए कि आप हमारे देश के किसी तेजी से बढ़ते शहर में अपना एक छोटा-मोटा पारिवारिक व्यापार चलाते हैं। आपके यहाँ चुनाव जीत कर मंत्री बने एक नेता से आपके संबंध भी हैं। 
आपके प्रिय मंत्रीजी सरकार में कुछ अधिकारियों के साथ मिल कर एक बहुत बड़ी परियोजना का प्रस्ताव रखते हैं। आखिर बिजली के बिना आजकल कोई भी तरक्की और राष्ट्र निर्माण की कल्पना ही नहीं कर पाता। इसलिए मान लीजिए कि ये परियोजना बिजली उत्पादन के लिए है। इसकी लागत 2,000 करोड़ रुपये की है। 
आप अपने कुनबे को साथ बैठा कर सलाह करते हैं। सब कुछ मिला के आपके पास 100 करोड़ रुपये इकट्ठे हो सकते हैं। घर के एक बुजुर्ग हैं जो आपकी नजर में सठिया चुके हैं। वे आप पर हँसते हैं, उन जवान लोगों के मुगालतों फिकरा कसते हैं जो अपनी औकात से बीस गुना बड़ी परियोजना हाथ लेना चाहते हैं। आप तुरंत उनके लिए मथुरा-काशी-हरिद्वार की तीर्थ यात्रा का टिकट खरीद देते हैं। इसके बाद वो केवल आपके पारिवारिक समाज सेवा ट्रस्ट का काम ही देखेंगे, व्यापार का नहीं। सामाज सुधार का काम-काज भी उन्हीं के जिम्मे होगा। (नोटः ध्यान रखें कि उनकी जरूरत तब पड़ेगी जब आपको किसानों से जमीन खरीदनी होगी और सामाजिक कार्यकर्ता इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे होंगे। 
परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है, ‘आधारगत’ ढाँचा बनाने की बहुत बड़ी कोशिश है। सरकार ऐसी परियोजनाओं को बढ़ावा देती है। वह वायदा करती है कि आपसे सारी-की-सारी बिजली खरीद लेगी। यही नहीं, इस खरीद में आपको कम-से-कम 12 प्रतिशत का मुनाफा देगी यह भी तयशुदा है। इस वायदे के कई फायदे हैं। एक तो यही कि बैंक आपको बहुत आसानी से कर्जा देने तैयार हो जाएँगे। जो बैंक कल तक आपके एक रुपये के निवेश पर दो रुपये का कर्ज ही देते थे वे अब तीन रुपये देने को राजी हो जाएँगे। इसका मतलब हुआ कि 2,000 करोड़ की परियोजना के लिए आपको केवल 500 करोड़ रुपये का इंतजाम करना है – बाकी 1,500 करोड़ रुपये बैंक ऋण में दे देगा।
अब 500 करोड़ रुपये की कंपनी बनाने के लिए आपको केवल 250 करोड़ रुपये ही चाहिए क्योंकि उससे कंपनी पर आपकी 50 प्रतिशत भागीदारी बनी रहेगी। बचे 250 करोड़ रुपये का हिस्सा हजारों, लाखों निवेशकों को शेयर बाजार में बेचा जाएगा। 
फिर भी, याद रहे कि आपके पास केवल 100 करोड़ रुपये ही हैं। आपको आवश्यकता है 250 करोड़ रुपये की। बाकी 150 करोड़ रुपये कहाँ से लाइएगा? ऐसे समय के लिए ही होते हैं महाजनी निवेशक, जिन्हे अंग्रेजी में ‘इनवेस्टमेंट बैंकर’ कहा जाता है। इनका काम होता है व्यापार के लिए बाजार से कर्ज पर पूँजी उठाना। आपका ‘इनवेस्टमेंट बैंकर’ मित्र आपसे एक नई कंपनी बनवाएगा जिसमें आप और आपके परिवार के 100 करोड़ रुपये लगे हुए होंगे। यह कंपनी आपकी परियोजना के दम पर शेयर बाजार में एक सार्वजनिक प्रस्ताव रखेगी जिसे अंग्रेजी में ‘आई.पी.ओ.’ कहते हैं। यह 30 रुपये के नफे पर बेचा जाता है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी परियोजना अभी कागज पर ही है, आपके पास बिजली बनाने के लिए न तो मशीने हैं और न जमीन ही है। महाजनी निवेशक के पास एक पूरी जनसंपर्क सेना होगी जो अखबार और टी.वी. के माध्यम से लोगों को बताएगी कि यह परियोजना और इसको चलाने वाले कैसे राष्ट्र निर्माण में अमूल्य भूमिका निभा रहे हैं, कैसे आपकी कंपनी में काम करने वाले न केवल भारी मुनाफे के भागीदार होंगे बल्कि मुनाफा कमाते हुए राष्ट्र के सच्चे सपूत कहलाएँगे। शेयर बाजार में जो दलाल आपके पुराने साथी हैं वे ऐसी बात चलाना शुरु करेंगे कि काले बाजार में इस शेयर का दाम बहुत ऊपर जाएगा। 
ऐसे काबिल साथियों की मदद से आपकी कंपनी का एक शेयर बाजार में 40 रुपये पर खुलेगा, जिसमें 10 रुपये उसकी कीमत होगी और 30 रुपये का प्रीमियम (नफा) उसमें पहले ही जुड़ा हुआ होगा। आपके प्रस्ताव को खरीदने वालों की होड़ लगी हुई होगी और जितने शेयर हैं उससे कहीं ज्यादा का धन आपके पास आ जाएगा। अब आपकी कंपनी का मोल 500 करोड़ रुपये हो जाएगा। इसमें 200 करोड़ तो पूंजी है और 300 करोड़ उस पूंजी की शेयर बाजार में अतिरिक्त कीमत। समझ गये ना! 
कोई भी बड़ा बैंक 500 करोड़ रुपये के आदमी को 1,500 करोड़ रुपये का कर्ज दे देगा। इसमें उनका कोई एहसान नहीं है। कर्जा देने के लक्ष्य बैंक में पहले से निर्धारित हैं, आप तो उन लक्ष्यों को पूरा करने में बैंक की मदद भर कर रहे हैं। 
उन मंत्रीजी को आप कैसे भूल सकते हैं जिनकी नेक नजर से आपकी परियोजना का अंकुर फूटा था? मंत्रीजी का सरकार में काफी दबदबा है क्योंकि उनके साथ तीन विधानसभा सदस्य भी हैं जिनके बिना राज्य सरकार का चलना मुश्किल होगा। कंपनी में आपकी जो 50 प्रतिशत की भागीदारी है उसमें से 10 प्रतिशत आप उन्हें दे देंगे। किंतु सीधे नहीं दे सकते, इसलिए उनके दो मित्रों के मार्फत देंगे। उनमें से एक दोस्त जमीन की सौदेबाजी करने वाला दलाल है, जो अब एक बड़ी भू-विकास कंपनी चलाता है। दूसरा टेंट हाउस चलाता था और वह भी अब भू संपत्ति की खरीद-फरोख्त करता है। 
अब जेब में 2,000 करोड़ ले कर आप दुनिया घूमने निकलेंगे, टरबाइन जैसी बिजली बनाने की मशीनें खरीदने। आप यूरोप जाएँगे, अमरीका जाएँगे, चीन जाएँगे। सब भ्रमण कर आप 1,000 करोड़ की नई-से-नई मशीनें खरीदना तय करेंगे। यहाँ पर आपके महाजनी निवेशक मित्र आपसे एक और कंपनी बनवाएँगे। पर यह भारत में नहीं होगी, मॉरिशियस, दुबई या सिंगापुर जैसी कर-मुक्त जगह पर होगी। यह कंपनी 1,000 करोड़ खर्च कर मशीनें खरीदेगी और फिर 1,500 करोड़ में आपकी ही भारतीय कंपनी के बेच देगी। 
आपके 100 करोड़ रुपये के निवेश पर आपको 500 करोड़ का मुनाफा तो हो ही चुका है। फिर यह पूंजी किसी कर-मुक्त देश में है, पर इस बारे में बात जरा बाद में होगी।
*****
आपकी भारतीय कंपनी के पास जो 500 करोड़ रुपये बचे हैं उससे आप किसी अनुसूचित जनजाती के इलाके में जमीन खरीदेंगे, जहाँ कोयले की खदाने पास ही होंगी। वहाँ रहने वाले ‘आदिवासी’ कहे जाते हैं इसलिए आप उनके इलाके में ‘विकास’ लाएँगे। अगर जमीन खरीदने की जोर-जबरदस्ती का हल्ला हो गया, तो आपके परिवार की सामाजिक संस्था वहाँ एक घटिया स्कूल और एक सस्ता-सा अस्पताल बना देगी। वही संस्था जो तीर्थ यात्रा से लौटे आपके कुनबे के बुजुर्ग के नाम पर आपने बनायी थी। 
सरकारी स्कूल और अस्पताल तो चलते ही नहीं हैं इसलिए आपके सामाजिक योगदान का बोलबाला हो जाएगा, आप आदिवासीयों के हितैशीयों में शुमार होंगे। आपकी परियोजना के लिए जमीन तो औने-पौने दाम पर मिल ही जाएगी, इससे ‘कॉरपोरेट सोशल रिसपॉन्सीबिलीटी’ के अंतर्गत करों में फायदा भी होगा। 
दो साल में आपका बिजलीघर बन कर खड़ा हो जाएगा। सरकार ने आपके 2,000 करोड़ के निवेश पर 12 प्रतिशत मुनाफे की गारंटी दी है। तो आपकी सारी बिजली सरकार खरीदेगी और आपको कम-से-कम 240 करोड़ की आमदनी हर साल होगी। बैंक के कर्ज पर 150 करोड़ का ब्याज आप आसानी से लौटा देंगे और 90 करोड़ रुपये का मुनाफा आपका ही होगा। जबकी आपके निवेश की असली कीमत केवल 200 करोड़ रुपये है। 
आपके हर 10 रुपये के शेयर पर 4.5 रुपये का नफा होगा। इससे उस शेयर का दाम बाजार में 50-75 रुपये होगा, जो आपके शेयर बाजार के निवेशकों को प्रसन्नचित्त रखेगा। 
एक दिक्कत आएगी। आपका मॉरिशियस से आए 500 करोड़ रुपये का आधा ही बचेगा। आखिर मंत्रीजी, महाजनी निवेशक, सरकारी बाबू, पत्रकार, जनसंपर्क अधिकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं का भी आपको ध्यान रखना होगा, जिसमें रुपये खर्च होंगे। फिर भी, आपके पास 2,000 करोड़ की एक कंपनी है और 250 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा मॉरिशियस में है। वह भी कर-मुक्त! 
इस पूंजी से आप एक और परियोजना बनाएँगे, राष्ट्र के आधारभूत विकास के लिए। इसे आप विदेशी निवेश बताकर भारत में लाएँगे। विदेशी पूँजी लाने के लिए सरकार आपके साथ किसी दामाद जैसा बर्ताव करेगी। अखबार और टीवी में आपके बड़े-बड़े साक्षात्कार और विज्ञापन आएँगे। आप भारत के गौरवशाली सपूत कहे जाएँगे। 
व्यापार और वाणिज्य के अखबार और टीवी चैनल आपको साल के श्रेष्ठतम व्यापारी और उद्योगपति का पुरस्कार देंगे। इस सब प्रचार-प्रसार पर आपका काफी खर्च होगा। यह खर्चा एकदम जायज होगा। आखिर देश के विकास के लिए उद्योग, बिजली, विदेशी निवेश, स्कूल, अस्पताल सब कुछ तो आप से आ रहा है। 
आप होंगे हमारे देश के नए कर्णधार।”साभार Sopan Joshi जी[बैंकों को झाँसा दे कर मुनाफाखोरी कैसी की जाती है जानिए Anil Bhatia के अद्भुत लेख के इस अंश से, पूरे लेख की लिंक नीचे हैः]
“…कल्पना कीजिए कि आप हमारे देश के किसी तेजी से बढ़ते शहर में अपना एक छोटा-मोटा पारिवारिक व्यापार चलाते हैं। आपके यहाँ चुनाव जीत कर मंत्री बने एक नेता से आपके संबंध भी हैं। 
आपके प्रिय मंत्रीजी सरकार में कुछ अधिकारियों के साथ मिल कर एक बहुत बड़ी परियोजना का प्रस्ताव रखते हैं। आखिर बिजली के बिना आजकल कोई भी तरक्की और राष्ट्र निर्माण की कल्पना ही नहीं कर पाता। इसलिए मान लीजिए कि ये परियोजना बिजली उत्पादन के लिए है। इसकी लागत 2,000 करोड़ रुपये की है। 
आप अपने कुनबे को साथ बैठा कर सलाह करते हैं। सब कुछ मिला के आपके पास 100 करोड़ रुपये इकट्ठे हो सकते हैं। घर के एक बुजुर्ग हैं जो आपकी नजर में सठिया चुके हैं। वे आप पर हँसते हैं, उन जवान लोगों के मुगालतों फिकरा कसते हैं जो अपनी औकात से बीस गुना बड़ी परियोजना हाथ लेना चाहते हैं। आप तुरंत उनके लिए मथुरा-काशी-हरिद्वार की तीर्थ यात्रा का टिकट खरीद देते हैं। इसके बाद वो केवल आपके पारिवारिक समाज सेवा ट्रस्ट का काम ही देखेंगे, व्यापार का नहीं। सामाज सुधार का काम-काज भी उन्हीं के जिम्मे होगा। (नोटः ध्यान रखें कि उनकी जरूरत तब पड़ेगी जब आपको किसानों से जमीन खरीदनी होगी और सामाजिक कार्यकर्ता इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे होंगे। 
परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है, ‘आधारगत’ ढाँचा बनाने की बहुत बड़ी कोशिश है। सरकार ऐसी परियोजनाओं को बढ़ावा देती है। वह वायदा करती है कि आपसे सारी-की-सारी बिजली खरीद लेगी। यही नहीं, इस खरीद में आपको कम-से-कम 12 प्रतिशत का मुनाफा देगी यह भी तयशुदा है। इस वायदे के कई फायदे हैं। एक तो यही कि बैंक आपको बहुत आसानी से कर्जा देने तैयार हो जाएँगे। जो बैंक कल तक आपके एक रुपये के निवेश पर दो रुपये का कर्ज ही देते थे वे अब तीन रुपये देने को राजी हो जाएँगे। इसका मतलब हुआ कि 2,000 करोड़ की परियोजना के लिए आपको केवल 500 करोड़ रुपये का इंतजाम करना है – बाकी 1,500 करोड़ रुपये बैंक ऋण में दे देगा।
अब 500 करोड़ रुपये की कंपनी बनाने के लिए आपको केवल 250 करोड़ रुपये ही चाहिए क्योंकि उससे कंपनी पर आपकी 50 प्रतिशत भागीदारी बनी रहेगी। बचे 250 करोड़ रुपये का हिस्सा हजारों, लाखों निवेशकों को शेयर बाजार में बेचा जाएगा। 
फिर भी, याद रहे कि आपके पास केवल 100 करोड़ रुपये ही हैं। आपको आवश्यकता है 250 करोड़ रुपये की। बाकी 150 करोड़ रुपये कहाँ से लाइएगा? ऐसे समय के लिए ही होते हैं महाजनी निवेशक, जिन्हे अंग्रेजी में ‘इनवेस्टमेंट बैंकर’ कहा जाता है। इनका काम होता है व्यापार के लिए बाजार से कर्ज पर पूँजी उठाना। आपका ‘इनवेस्टमेंट बैंकर’ मित्र आपसे एक नई कंपनी बनवाएगा जिसमें आप और आपके परिवार के 100 करोड़ रुपये लगे हुए होंगे। यह कंपनी आपकी परियोजना के दम पर शेयर बाजार में एक सार्वजनिक प्रस्ताव रखेगी जिसे अंग्रेजी में ‘आई.पी.ओ.’ कहते हैं। यह 30 रुपये के नफे पर बेचा जाता है।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी परियोजना अभी कागज पर ही है, आपके पास बिजली बनाने के लिए न तो मशीने हैं और न जमीन ही है। महाजनी निवेशक के पास एक पूरी जनसंपर्क सेना होगी जो अखबार और टी.वी. के माध्यम से लोगों को बताएगी कि यह परियोजना और इसको चलाने वाले कैसे राष्ट्र निर्माण में अमूल्य भूमिका निभा रहे हैं, कैसे आपकी कंपनी में काम करने वाले न केवल भारी मुनाफे के भागीदार होंगे बल्कि मुनाफा कमाते हुए राष्ट्र के सच्चे सपूत कहलाएँगे। शेयर बाजार में जो दलाल आपके पुराने साथी हैं वे ऐसी बात चलाना शुरु करेंगे कि काले बाजार में इस शेयर का दाम बहुत ऊपर जाएगा। 
ऐसे काबिल साथियों की मदद से आपकी कंपनी का एक शेयर बाजार में 40 रुपये पर खुलेगा, जिसमें 10 रुपये उसकी कीमत होगी और 30 रुपये का प्रीमियम (नफा) उसमें पहले ही जुड़ा हुआ होगा। आपके प्रस्ताव को खरीदने वालों की होड़ लगी हुई होगी और जितने शेयर हैं उससे कहीं ज्यादा का धन आपके पास आ जाएगा। अब आपकी कंपनी का मोल 500 करोड़ रुपये हो जाएगा। इसमें 200 करोड़ तो पूंजी है और 300 करोड़ उस पूंजी की शेयर बाजार में अतिरिक्त कीमत। समझ गये ना! 
कोई भी बड़ा बैंक 500 करोड़ रुपये के आदमी को 1,500 करोड़ रुपये का कर्ज दे देगा। इसमें उनका कोई एहसान नहीं है। कर्जा देने के लक्ष्य बैंक में पहले से निर्धारित हैं, आप तो उन लक्ष्यों को पूरा करने में बैंक की मदद भर कर रहे हैं। 
उन मंत्रीजी को आप कैसे भूल सकते हैं जिनकी नेक नजर से आपकी परियोजना का अंकुर फूटा था? मंत्रीजी का सरकार में काफी दबदबा है क्योंकि उनके साथ तीन विधानसभा सदस्य भी हैं जिनके बिना राज्य सरकार का चलना मुश्किल होगा। कंपनी में आपकी जो 50 प्रतिशत की भागीदारी है उसमें से 10 प्रतिशत आप उन्हें दे देंगे। किंतु सीधे नहीं दे सकते, इसलिए उनके दो मित्रों के मार्फत देंगे। उनमें से एक दोस्त जमीन की सौदेबाजी करने वाला दलाल है, जो अब एक बड़ी भू-विकास कंपनी चलाता है। दूसरा टेंट हाउस चलाता था और वह भी अब भू संपत्ति की खरीद-फरोख्त करता है। 
अब जेब में 2,000 करोड़ ले कर आप दुनिया घूमने निकलेंगे, टरबाइन जैसी बिजली बनाने की मशीनें खरीदने। आप यूरोप जाएँगे, अमरीका जाएँगे, चीन जाएँगे। सब भ्रमण कर आप 1,000 करोड़ की नई-से-नई मशीनें खरीदना तय करेंगे। यहाँ पर आपके महाजनी निवेशक मित्र आपसे एक और कंपनी बनवाएँगे। पर यह भारत में नहीं होगी, मॉरिशियस, दुबई या सिंगापुर जैसी कर-मुक्त जगह पर होगी। यह कंपनी 1,000 करोड़ खर्च कर मशीनें खरीदेगी और फिर 1,500 करोड़ में आपकी ही भारतीय कंपनी के बेच देगी। 
आपके 100 करोड़ रुपये के निवेश पर आपको 500 करोड़ का मुनाफा तो हो ही चुका है। फिर यह पूंजी किसी कर-मुक्त देश में है, पर इस बारे में बात जरा बाद में होगी।
*****
आपकी भारतीय कंपनी के पास जो 500 करोड़ रुपये बचे हैं उससे आप किसी अनुसूचित जनजाती के इलाके में जमीन खरीदेंगे, जहाँ कोयले की खदाने पास ही होंगी। वहाँ रहने वाले ‘आदिवासी’ कहे जाते हैं इसलिए आप उनके इलाके में ‘विकास’ लाएँगे। अगर जमीन खरीदने की जोर-जबरदस्ती का हल्ला हो गया, तो आपके परिवार की सामाजिक संस्था वहाँ एक घटिया स्कूल और एक सस्ता-सा अस्पताल बना देगी। वही संस्था जो तीर्थ यात्रा से लौटे आपके कुनबे के बुजुर्ग के नाम पर आपने बनायी थी। 
सरकारी स्कूल और अस्पताल तो चलते ही नहीं हैं इसलिए आपके सामाजिक योगदान का बोलबाला हो जाएगा, आप आदिवासीयों के हितैशीयों में शुमार होंगे। आपकी परियोजना के लिए जमीन तो औने-पौने दाम पर मिल ही जाएगी, इससे ‘कॉरपोरेट सोशल रिसपॉन्सीबिलीटी’ के अंतर्गत करों में फायदा भी होगा। 
दो साल में आपका बिजलीघर बन कर खड़ा हो जाएगा। सरकार ने आपके 2,000 करोड़ के निवेश पर 12 प्रतिशत मुनाफे की गारंटी दी है। तो आपकी सारी बिजली सरकार खरीदेगी और आपको कम-से-कम 240 करोड़ की आमदनी हर साल होगी। बैंक के कर्ज पर 150 करोड़ का ब्याज आप आसानी से लौटा देंगे और 90 करोड़ रुपये का मुनाफा आपका ही होगा। जबकी आपके निवेश की असली कीमत केवल 200 करोड़ रुपये है। 
आपके हर 10 रुपये के शेयर पर 4.5 रुपये का नफा होगा। इससे उस शेयर का दाम बाजार में 50-75 रुपये होगा, जो आपके शेयर बाजार के निवेशकों को प्रसन्नचित्त रखेगा। 
एक दिक्कत आएगी। आपका मॉरिशियस से आए 500 करोड़ रुपये का आधा ही बचेगा। आखिर मंत्रीजी, महाजनी निवेशक, सरकारी बाबू, पत्रकार, जनसंपर्क अधिकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं का भी आपको ध्यान रखना होगा, जिसमें रुपये खर्च होंगे। फिर भी, आपके पास 2,000 करोड़ की एक कंपनी है और 250 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा मॉरिशियस में है। वह भी कर-मुक्त! 
इस पूंजी से आप एक और परियोजना बनाएँगे, राष्ट्र के आधारभूत विकास के लिए। इसे आप विदेशी निवेश बताकर भारत में लाएँगे। विदेशी पूँजी लाने के लिए सरकार आपके साथ किसी दामाद जैसा बर्ताव करेगी। अखबार और टीवी में आपके बड़े-बड़े साक्षात्कार और विज्ञापन आएँगे। आप भारत के गौरवशाली सपूत कहे जाएँगे। 
व्यापार और वाणिज्य के अखबार और टीवी चैनल आपको साल के श्रेष्ठतम व्यापारी और उद्योगपति का पुरस्कार देंगे। इस सब प्रचार-प्रसार पर आपका काफी खर्च होगा। यह खर्चा एकदम जायज होगा। आखिर देश के विकास के लिए उद्योग, बिजली, विदेशी निवेश, स्कूल, अस्पताल सब कुछ तो आप से आ रहा है। 
*आप होंगे हमारे देश के नए कर्णधार*
*अनिल भाटिया

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