प्रस्तुति : पुष्पा गुप्ता
पूॅंजीवाद की सड़ाँध में लिपटा फ़ासीवादी मोदी सरकार का स्त्री विरोधी चेहरा एक बार फ़िर से बेनक़ाब हो गया है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई घटना पर जो भाजपा नेता घड़ियाली ऑंसू बहा रहे थे, अब राम रहीम और आसाराम जैसे बलात्कारियों को पैरोल मिलने पर चुप्पी साधकर बैठे हुए हैं।
आज़ाद भारत में शायद यह पहली बार है जब एक बलात्कारी को आठवीं बार पैरोल दी गयी हो।
एक बार फिर गुरमीत राम रहीम को 21 दिन की पैरोल और आसाराम को 7 दिन की फरलो मिली है। एक तरफ़ आरजी कर मेडिकल कॉलेज की पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए अभी लोग सड़कों पर संघर्ष कर ही रहे हैं ठीक उसी समय आसाराम और राम रहीम को पैरोल पर छोड़ना किसी भद्दे मज़ाक से कम नहीं है । यह न सिर्फ़ बीजेपी के स्त्री विरोधी चेहरे को बेनक़ाब करता है बल्कि ये भी दिखाता है कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराध इनके लिए महज़ राजनीति करने का एक ज़रिया मात्र है।
इन बलात्कारियों को मिलने वाली पैरोल को भाजपा की फ़ासीवादी राजनीति से अलग करके नहीं देखा जा सकता। राम रहीम को मिलने वाले पैरोल के समय को देखने से पता चलता है कि जब-जब हरियाणा में चुनाव होते हैं तब-तब इसे पैरोल पर बाहर लाया जाता है। जैसे-
●फरवरी 2022 – 21 दिन पैरोल (पंजाब वि. चुनाव)
●अक्टूबर 2022 – 40 दिन पैरोल (आदमपुर उपचुनाव)
●नवम्बर 2023- 21 दिन पैरोल (राजस्थान वि. चुनाव)
●जनवरी 2024 – 50 दिन पैरोल (लोकसभा चुनाव)
●अगस्त 2024- 21 दिन पेरोल (हरियाणा वि. चुनाव)
क्या यह महज़ संयोग है?
इसका सीधा जवाब यही है कि यह कोई संयोग नहीं बल्कि भाजपा के इलेक्शन स्ट्रेटेजी का हिस्सा है। आने वाले विधानसभा चुनाव में राम रहीम ने भाजपा को समर्थन देने का ऐलान किया हुआ है। इन भाजपाइयों को महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों से कोई लेना-देना नहीं है। इनके लिए प्राथमिकता चुनाव जीतना है चाहे उसके लिए किसी बलात्कारी का ही समर्थन क्यों ना लेना पड़े।
फ़ासीवादी मोदी सरकार ने बलात्कारियों की सेवा सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ी है। चिन्मयानन्द, कुलदीप सिंह सेंगर, बृजभूषण शरण सिंह, को बचाने से लेकर कठुआ के बलात्कारियों के पक्ष में तिरंगा यात्रा निकालने और बिलकिस बानो के बलात्कारियों के छूट जाने पर उनका फूल मालाओं से स्वागत करने का उदाहरण हम सबके सामने है।
असल में भाजपा सरकार ने जेल क़ानून में बदलाव कर बाबा राम रहीम और आसाराम जैसे बलात्कारियों को ऐश करने की पूरी छूट दी है।
पैरोल पर छूट कर बाहर आने के बाद बलात्कारी बाबा गुरमीत राम रहीम तरह-तरह के कार्यक्रम करता है जिसमें सत्तासीन भाजपा के नेता-मन्त्री शिरकत करते हैं। उसके द्वारा शुरू किये गये “स्वच्छता अभियान” में भाजपा के राज्यसभा सांसद कृष्ण लाल पंवार तथा पूर्व मंत्री कृष्ण कुमार बेदी शामिल हुए थे। एक बलात्कारी व हत्यारा सत्ता के संरक्षण में तलवार से केक काटकर हथियारों की नुमाइश करता है, जबकि शस्त्र अधिनियम के तहत हथियारों का सार्वजनिक प्रदर्शन प्रतिबन्धित है। भाजपा के शासनकाल में इन बलात्कारियों को फलने-फूलने का ख़ूब मौक़ा मिला है।
दूसरी तरफ़ इन बलात्कारियों को बार-बार बेल या पैरोल मिलना हमारी न्याय व्यवस्था के चरित्र को भी उजागर करता है। आज देशभर में जनवादी अधिकारों के लिए लड़ रहे हज़ारों छात्र ,पत्रकार, प्रोफ़ेसर और इन्साफ़पसन्द लोगों को यूएपीए और तमाम झूठे मुक़दमों में फॅंसाकर उन्हें जेलों में रखा गया है। बेल तो दूर की बात है कई लोगों के मामले में तो उन्हें तारीख़ तक नहीं मिल पाती है। फादर स्टेन स्वामी को जेल में मार दिया जाता है। आज हमें यह भी समझना होगा कि हम जिस मानवद्रोही व्यवस्था में जी रहे हैं उसमें सरकार और न्यायपालिका किसके लिए काम कर रही है और किसकी सेवा कर रही है।
जब भी कोई फ़ासीवादी, प्रतिक्रियावादी सरकार सत्ता में होती है तो समाज के बर्बर, बीमार और आपराधिक तत्वों को ऐसी वारदातों को अंजाम देने की खुली छूट मिल जाती है। आज फ़ासीवादी मोदी सरकार के शासनकाल में जिस तरीके से स्त्री विरोधी अपराधों में बढ़ोतरी हुई है वह अभूतपूर्व है। ख़ुद बीजेपी में बलात्कारियों और स्त्री विरोधी अपराधों में लिप्त नेताओं की भरमार है। भाजपाइयों के नस-नस में स्त्री विरोधी मानसिकता भरी हुई है। उनके लिए स्त्रियाॅं महज़ उपभोग की वस्तु और बच्चा पैदा करने की मशीन है।
आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुए रेप की घटना पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच ‘तू नंगा- तू नंगा’ का सियासी खेल अपने ज़ोरों पर है। ऐसे में इन तमाम चुनावबाज़ पार्टियों से महिला सुरक्षा की उम्मीद करना अपने आप को धोखा देने जैसा ही है।
सच्चाई तो यह है कि जब-जब आसाराम, राम रहीम जैसे बलात्कारियों को पैरोल मिलती है समाज के अन्य घृणित और स्त्री विरोधी मानसिकता वाले अमानवीय तत्वों का हौसला बढ़ाता है नतीजतन वो बिना किसी डर के स्त्री विरोधी अपराधों को अंजाम देते है।