गांधीवादी लोग तो भारत में बहुत से लोग हुए हैं. कई ने तो आदर्शों के नई मिसाल तक दी है लेकिन क्या कोई ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है जो गांधी जी की विचारधारा से ओतप्रोत तो रहा हो, लेकिन उसने अपने जीवन में एक अलग ही तरह का रास्ता अपनाया हो अपनी अलग ही राजनैतिक हस्ती बना दी हो. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ऐसे ही शख्स थे जो कभी गांधीवादी तो नहीं कहलाए लेकिन उनकी विचारधारा और आचरण पर गांधी जी के आदर्शों का प्रभाव जरूर था. हमें गांधीवाद, नेहरूवाद तो सुनने को मिलता है लेकिन जेपी के नाम पर केवल जेपी आंदोलन ही सुनने को मिलता है. 8 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथिपर जानते हैं कि जेपी पर गांधी जी का कितना प्रभाव था.
आत्मनिर्भरता की लालसा
जयप्रकाश नारायण का जन्म बंगाल प्रेसिडेंसी (आज के बिहार राज्य) के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में 11 अक्टूबर 19011 को हुआ था. बचपन से ही उनमें आत्मनिर्भर होने की गहरी लालसा थी. 9 साल की उम्र में ही उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए अपना घर और गांव दोनों छोड़ दिए और पटना आकर कॉलेजियट स्कूल में 7वीं क्लास में उन्होंने दाखिला लिया. इस स्कूल के जिस होस्टल में वे रहते थे वहां से बिहार के कई राजनेता निकले थे.
पढ़ाई के लिए
असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए जेपी ने बिहार नेशनल कॉलेज छोड़ दिया जब उनके इम्तिहान में 20 दिन ही बाकी थे. फिर भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी. पैसे ना होने पर भी वे 20 साल की उम्र में ही एक कार्गो जहाज पर अमेरिका पढ़ाई के लिए चले गए. अपने पत्नी को साबरमती आश्रम छोड़ कैलिफोर्निया पहुंच कर दो साल बाद उन्होंने बर्केले में दाखिला लिया और पढ़ाई एवं अन्य खर्चों के लिए बर्तन धोने, गैराज में मैकेनिक, लोशन बेचने और शिक्षण जैसे कई काम किए.
मार्कवादी समाजवाद
बेशक जेपी महात्मा गांदी के सर्वोदय, अहिंसा आदि विचारों का से प्रभावित थे. लेकिन अमेरिका में पढ़ाई के दौरान उन्हें कामगारों और मजदूर की समस्याओं का करीब से जानने का मौका मिला. वहीं पर वे कार्ल मार्क के समाजवाद और रूसी क्रांति से बहुत ज्यादा प्रभावित लेकिन गांधी जी का उन पर प्रभाव कायम था. 1929 में भारत आने के बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए.
लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर शुरु में गांधी जी के विचारों के साथ मार्क्सवाद का ज्यादा प्रभाव था.
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी
1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में जेल गए और उसके बाद कांग्रेस में ही समाजवादी सोच रखने वाले कई कांग्रेसी साथियों को जोड़ कर उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बनाई, लेकिन स्वतंत्रता सेनानी के रूप में वे गांधीवादी ही रहे. फिर भी वे गांधी जी के खिलाफ भी कभी नहीं गए. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी बहुत योगदान दिया. कहा जाता है की जेपी का गांधीवादी आजादी के बाद ही खुल कर सामने आया.
बेहतर होती रही जेपी की सोच
जेपी की विचारधारा समय के साथ साकारत्मक तौर पर बदलती रही, लेकिन यह कहना ज्यादा सही होगा कि समय केसाथ परीष्कृत ही होती रही. उनकी सोच के बदलाव समय की हर कसौटी पर खरे ही उतरे. आजादी के बाद ही उन्हें गांधी जी के लोकसेवक संघ के लक्ष्य को पूरा करने के प्रयास शुरू कर दिए.
सर्वोदय के लिए समर्पण
सर्वोदय का अर्थ होता है कि सभी का विकास. इस शब्द को गांधी जी ने ही गढ़ा था. जो उनकी विचारधारा का प्रमुख हिस्सा हो गया था. जेपी ने आजादी के बाद सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए गांधी जी के सर्वोदय की अवधारणा को ही अपनाया था. आजादी से पहले जेपी समाजवादी होते हुए भी भले ही गांधीवाद की जगह मार्कवाद को तरजीह देते रहे, लेकिन बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि समाजवाद के लिए सही सोच और विचारधारा सर्वोदय में ही मिल सकती है.
भूदान और ग्रामदान जैसे आंदोलन के जरिए समाजिक पुनर्निर्माण के प्रयासों में जेपी ने अहिंसा को बहुत महत्व दिया. 1975 से 1977 के बीच आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में भी जेपी ने अहिंसा पर गहरा जोर दिया था. जेपी ने भी इस बात का उल्लेख किया है कि उनमें अहिंसा की भावना का पनपने में गांधी जी का ही योगदान है. वे कहा करते थे कि गांधी की शांति के जरिए किसी भी समस्या का हल खोजा जा सकता है. 8 अक्टूबर 1979 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था.