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कितना सफल होगा कश्मीर में आरक्षण का प्रयोग

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राकेश गोस्वामी
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राजौरी में एक जनसभा में कहा कि आरक्षण के लिए गठित जस्टिस जीडी शर्मा कमिशन ने पहाड़ी और गुज्जर-बकरवाल के लिए आरक्षण की सिफारिश की है। प्रधानमंत्री मोदी का मन है कि प्रशासनिक कार्य पूरा कर इस सिफारिश को जल्द लागू किया जाए। अगर जम्मू-कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनाव से ऐसा होता है तो तो बीजेपी को इसका राजनीतिक लाभ मिलना तय है। परिसीमन में बीजेपी ने पहले ही अनुसूचित जातियों के लिए नौ सीटें आरक्षित कर रखी हैं।

खुल रही है राह
गुज्जर-बकरवाल समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा तो 1991 में ही मिल गया था, लेकिन अनुच्छेद 370 की वजह से पूरे अधिकार नहीं मिले थे। फिलहाल जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जातियों को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण मिलता है। कश्मीर प्रशासन ने अप्रैल 2020 में जम्मू और कश्मीर आरक्षण नियम, 2005 में संशोधन कर पहाड़ी भाषी लोगों को नौकरी और शिक्षा में चार फीसदी आरक्षण दिया है। लेकिन पहाड़ी समुदाय अनुसूचित जनजाति में शामिल होना चाहता है।

यह कहना मुश्किल है कि यह प्रस्ताव अभी किस स्तर पर है। गृहमंत्री ने जिस प्रशासनिक प्रक्रिया का उल्लेख किया, उसे और अब तक इस मसले पर हुई प्रगति को इस तरह समझा जा सकता है-

  • किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में लाने के प्रस्ताव को भारत सरकार का जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत के महापंजीयक को उनकी टिप्पणियों/विचारों के लिए भेजता है।
  • महापंजीयक की सिफारिश के बाद प्रस्ताव राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पास भेजा जाता है।
  • अगर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भी मामले की सिफारिश करता है तो मामला संबंधित प्रशासनिक मंत्रालयों के परामर्श के बाद मंत्रिमंडल के निर्णय के लिए भेजा जाता है। वहां मामले को एक विधेयक के रूप में संसद में रखा जाता है।
  • 1989 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने पहाड़ी और गुज्जर-बकरवाल समेत सात जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन महापंजीयक ने पहाड़ी समेत तीन समुदायों के प्रस्ताव लौटा दिए।
  • बाकी की चार जातियों को प्रक्रिया पूरी होने के बाद 1991 में केंद्र सरकार ने एसटी सूची में शामिल कर लिया था। इनमें गुज्जर-बकरवाल शामिल थे। पहाड़ी समुदाय की आरक्षण की मांग 1991 के बाद तेज हो गई।
  • अनुच्छेद 370 के हटने के बाद 24 अक्टूबर 2021 को गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू की एक जनसभा में कहा था कि पहाड़ी समुदाय के चुने हुए प्रतिनिधि भी अब मंत्री और मुख्यमंत्री बन सकेंगे।
  • उसी वर्ष दिसंबर में पुंछ के मेंढर की रैली में प्रदेश बीजेपी प्रमुख रवींद्र रैना ने भी कहा था कि अब प्रधानमंत्री मोदी पहाड़ी समुदाय की मांग की ओर ध्यान देंगे। रैना स्वयं भी पहाड़ी समुदाय से हैं और उनका मानना है कि गुज्जर, बकरवाल और पहाड़ी एक ही मां के तीन पुत्र हैं।

घुमंतू समुदाय
दरअसल ये जम्मू-कश्मीर के घुमंतू समुदाय हैं। मार्च से नवंबर तक ये उच्च पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। नवंबर में जब बर्फबारी शुरू होती है तो ये मवेशियों और परिवार के साथ मैदानी इलाकों में आ जाते हैं। साल के लगभग तीन महीने ये सड़कों पर बिताते हैं। लगभग 45 दिन मैदानों में आने में और इतने ही दिन पहाड़ी इलाकों में लौटने में लगते हैं। ये समुदाय प्रमुख रूप से जम्मू के पुंछ, राजौरी, रियासी, उधमपुर, किश्वाड़ में, और कश्मीर के अनंतनाग, बांदीपोरा, गांदरबल, कुपवाड़ा और बारामूला में रहते हैं। वहीं पहाड़ी लोग पुंछ, राजौरी और बारामुला में रहते हैं।

आसान नहीं राह
बीजेपी एसटी आरक्षण से इन दो बड़े समुदायों को साधने की कवायद कर रही है जिसका कि वह राजनीतिक लाभ भी लेना चाहेगी। लेकिन गुज्जर-बकरवाल समुदाय पहाड़ी भाषी लोगों को अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने का विरोध करता है। उसका कहना है कि पहाड़ी समुदाय उच्च जातियों का एक सशक्त समूह है। गृह मंत्री ने इस आशंका का समाधान करते हुए साफ किया है कि पहाड़ी भी आएंगे और गुज्जर-बकरवाल का हिस्सा भी कम नहीं होगा। गृह मंत्री के इस आश्वासन से गुज्जर-बकरवाल समुदाय को राहत तो मिली है, लेकिन इनके नेताओं की चिंता है कि आरक्षण के भीतर आरक्षण कैसे दिया जाएगा?

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