तपस्वी संत नेता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और राज्यसभा सदस्य मामा बालेश्वर दयाल की 22वीं पुण्यतिथि पर बहुजन संवाद पर मामा जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर आनलाइन परिचर्चा का आयोजन हुआ। परिचर्चा में गांधीवादी समाजवादी चिंतक अनिल त्रिवेदी, समाजवादी नेता रामबाबू अग्रवाल, सोशलिस्ट पार्टी मध्य प्रदेश के अध्यक्ष रामस्वरूप मंत्री, बामनिया के वरिष्ठ पत्रकार सत्यनारायण शर्मा, कुशलगढ़ की विचारक निधि जैन, झाबुआ के समाजवादी नेता राजेश बैरागी सहित कई वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए प्रारंभिक उद्बोधन समाजवादी समागम के राष्ट्रीय संयोजक और किसान संघर्ष समिति मध्य प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने किया तथा कार्यक्रम का संचालन किया।
डॉ सुनीलम ने कहा कि 1952 में जब पहली बार आम चुनाव में मामा जी ने घोषणा की कि, “आदिवासी लड़की का राज नहीं तो, हमारा नाम भी बालेश्वर दयाल नहीं” । उन्होंने यशोदा बेन को बांसवाड़ा राजस्थान अमझेरा निवासी जमुना देवी को झाबुआ से चुनाव जीताया। महिलाओं को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर मामाजी से तमाम सवाल पूछे गए। विपक्षियों ने पर्चे छापे कि मामा जी ने आदिवासियों की मूंछ उखाड़ ली है। मर्दों के रहते औरतों को खड़ा कर दिया,औरतें राजकाज चलाना क्या जाने। यह उस समय की धारणा थी जब मामा जी कहा करते थे कि महिला ही मुल्क की मूल संस्कृति है।
मामाजी ने महिला शिक्षा, महिलाओं को समान अधिकार, शराबबंदी, दहेज ऐसे मुद्दों को बहुत प्रभावशाली ढंग से उठाया। मामा जी महिलाओं को लेकर सभाओं में कहते थे कि ‘धरती की कोख से निकली मातृत्व शक्ति को पहचानो। ताकत, बल, श्रम की देवी कालका आपके खेतों में हल चलाकर हृदय की देवी मां अंबे धन धान्या उपजाकर, मन मस्तिष्क की देवी मां लक्ष्मी ही घर का संचालन करती है जिससे परिवार समृद्ध और राष्ट्र मजबूत होता है इसलिए महिलाओं का सम्मान करो।
गांधीवादी समाजवादी विचारक अनिल त्रिवेदी ने कहा कि मामा जी का जीवन जितना सादगी भरा था उतना ही उनका उनकी राजनीति क्रांतिकारी थी उन्होंने बगैर साधनों के राजनीति किस तरह की जाती है और जन आंदोलन किस तरह खड़ा किया जा सकता है यह आदर्श प्रतिस्थापित किया ।उनका पूरा जीवन भीलांचल के लिए त्याग और बलिदान का जीवन रहा है और उन्होंने आदिवासियों का ना केवल उत्थान बल्कि राजनीतिक प्रशिक्षण का काम भी किया ।
वरिष्ठ समाजवादी नेता और लोहिया विचार मंच के अध्यक्ष रामबाबू अग्रवाल ने कहा कि मामा जी की कर्मभूमि पहले ही झाबुआ रही लेकिन वह इंदौर से भी लगातार जुड़े रहे और यहां से उन्होंने चुनाव लड़कर सोशलिस्ट पार्टी को बनाने का काम किया ।उन्होंने कई कार्यकर्ताओं को तैयार किया और उन्हें कम साधनों में किस तरह से गरीबगुररुबो की राजनीति की जा सकती है यह बतलाया ।
सोशलिस्ट पार्टी मध्य प्रदेश के अध्यक्ष तथा किसान संघर्ष समिति मालवा निमाड़ के संयोजक रामस्वरूप मंत्री ने मामा जी के जीवन और राजनीति की चर्चा करते हुए कहा कि मामा जी जैसा व्यक्तित्व सैकड़ों सालों में कभी-कभी ही होता है और यही कारण है कि आज भी मामा जी के नाम पर हजारों हजार आदिवासी बामनीया आते हैं । उनके जीवन कर्म से राजनीतिक कार्यकर्ता बहुत कुछ सीख सकता है । अभावों के बावजूद जन आंदोलन किस तरह खड़ा किया जा सकता है और आम आदमी की लड़ाई कैसे लड़ी जा सकती है यह मामा जी ने अपने सभी कार्यकर्ताओं को सिखाया भी और उनसे इस तरह के आंदोलन करवाए भी।
कुशलगढ़ से समाजसेवी निधि जैन ने कहा कि मामा बालेश्वर दयाल जी को वे अपना आदर्श मानती है । उन्होंने बताया कि बचपन में स्कूल आते जाते वे मामा बालेश्वरदयाल जी की सभाओं को देखती सुनती थी, जिसमें शरद यादव जैसे दिग्गज नेता होते थे। उन्होंने बताया कि बचपन से ही आदिवासियों का शोषण होते हुए देखा है । मामाजी की प्रेरणा से उन्होंने आदिवासियों के उत्थान के लिए समाज सेवा को चुना। उन्होंने बताया कि वहां गांधी आश्रम चलता था। आश्रम के रचनात्मक कार्य को आगे बढ़ाने के लिए 2016 में उन्होंने कार्य शुरू किया था जिसमें 3500 महिलाएं सिलाई, कढ़ाई, बुनाई का प्रशिक्षण लेकर प्रशिक्षित हो चुकी है ।
उन्होंने कहा कि झाबुआ में वर्तमान में चाहे किसी भी दल के विधायक या सांसद हो वह मुलतः समाजवादी विचारधारा के ही है। उन्होंने यह भी कहा कि मामा जी के विचारों का प्रभाव क्षेत्र में पूरी तरह था, है, और अगले 100 सालों तक रहेगा। उन्होंने फिर खेद प्रकट करते हुए कहा कि मामा जी के विचारों पर राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही है। आने वाली पीढ़ी को समझाना जरूरी है कि समाजवादी विचारधारा से अपने जीवन शैली को कैसे प्रभावित किया जा सकता है।
समाजवादी विचारक राजेश वैरागी ने कहा कि मामा जी की पुण्यतिथि पर प्रति वर्ष 50,000 से अधिक संख्या में उनके अनुयायियों पूजा करने, मन्नत मांगने आते हैं लेकिन इस वर्ष प्रशासन द्वारा उन्हें कोरोना का भय दिखाकर रोक दिया गया। मामा जी ने आदिवासियों की हक, अधिकार और जल जंगल की लड़ाई लड़ी । उन्होंने बताया कि मामाजी झाबुआ के ग्रामीण क्षेत्रों में पैदल, साइकिल मोटरसाइकिल से गांव गांव पहुंचकर नुक्कड़ सभाएं लेते थे तथा उन्हें जागृत करते थे।
परिचर्चा में बोलते हुए झाबुआ जिले के वरिष्ठ पत्रकार एवं मामा जी के अनुयाई सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि मामा जी जैसा आदर्श राजनेता ना भूतो ना भविष्यति उन्होंने जिस तरह से आदिवासियों में राजनीतिक चेतना जागृत की उसी के चलते उनके निधन के पूर्व तक अन्य किसी जल का जनप्रतिनिधि भीलांचल से नहीं जीत पाया । वह आदर्श थे और आज भी उनके मानने वाले लाखों की संख्या में है वर्तमान में राज ने सिंह दलों को मामा जी के कृतित्व से सीख लेना चाहिए और गांधी जी के अंतिम व्यक्ति के उदय के लिए मामा जी द्वारा चलाई गई मुहिम को आगे भी चलाना चाहिए ।परिचर्चा में पत्रकार क्रांति कुमार वैद्य तथा एस के यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।