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कैसे होता था डीबीआर में लड़कियों का शारीरिक और मानसिक शोषण

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बसंत कुमार

पुलिस की मिलीभगत से डीबीआर कंपनी मामले को दबा देती थी. मुजफ्फरपुर में जहां युवाओं की शिकायत के बाद सेंटर को बंद करा दिया गया था, कुछ अंतराल के बाद फिर यहां कंपनी ने कारोबार शुरू कर दिया. कंपनी के मालिकान के दुस्साहस और पैसों से खरीद लेने के इरादे का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि ओमकारनाथ पांडेय की शिकायत के बाद यहां के एक स्थानीय युवक (जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते हैं) जब कंपनी के खिलाफ सबूत जुटाकर युवाओं और पुलिस को देने लगे तो उनके अकाउंट में तीन लाख रुपये सीधे कंपनी के खाते से डाल दिए गए

अब तक कंपनी पर ठगी, धोखाधड़ी और नाबालिग से रेप के आरोप लगे थे. मई, 2024 में बिहार के छपरा जिले के मशरख की रहने वाली कंचन (बदला नाम) सामने आई. जो डीबीआर से अक्टूबर, 2022 में जुड़ी थीं. कंचन थाने में केस दर्ज कराने गईं लेकिन अहियारपुर थाने के अधिकारियों ने दर्ज़ नहीं किया. जिसके बाद अदालत के रास्ते से कंचन ने कंपनी के प्रमुख मनीष सिन्हा, एनामुल हक़, तिलक कुमार सिंह, अहमद राजा, विजय कुशवाहा, कन्हैया कुशवाहा, हृदयनाद सिंह, हरेराम कुमार राम और इरफ़ान पर शिकायत दर्ज कराई.

इस शिकायत में ठगी, धोखाधड़ी के साथ-साथ जबरन संबंध बनाने, गर्भवती होने पर बच्चा गिराने और शादी का झांसा देने समेत कई गंभीर आरोप लगाए गए. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम कंचन से मुजफ्फरपुर कोर्ट में मिली. यहां वो वकील की तलाश में भटक रही थीं.

एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली कंचन के पिता दिल्ली में सिक्योरिटी गार्ड का काम करते हैं. जिससे घर ठीक से नहीं चल पाता है. चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी कंचन ने 12वीं पास की थी. वो आगे पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन साथ ही कुछ कमाने का भी इरादा था. इसी बीच सिवान जिला के मैरवा थाने के रहने वाले तिलक सिंह से फेसबुक पर उनकी बातचीत हुई. 

पुलिस हिरासत में तिलक सिंह.

तिलक ने कंचन से कुछ दिनों तक बात की. कंचन बताती हैं, ‘‘सामान्य बातचीत हो रही थी तभी उसने पूछा कि क्या करती हो. तब मैं 12 वीं कर रही थी और साथ ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. ऐसे में तिलक ने कहा कि तुम यहां आ जाओ. काम के साथ-साथ पढ़ाई भी कर सकती हो. कुछ महीनों बाद मैं अक्टूबर, 2022 में मुजफ्फरपुर डीबीआर कंपनी में काम करने आ गई. यहां आने के बाद मेरी पढ़ाई बंद हो गई क्योंकि मुझे बाहर नहीं जाने देते थे. दो महीने काम करने के बाद जब सैलरी की मांग की तो कहा गया कि 50 से 52 लोगों को बुलाओ तो कंपनी में शेयर होल्डर बन जाओगी और उसके बाद तुम्हें पचास हज़ार रुपये महीने के मिलेंगे. उसके बाद लोगों को जोड़ने का टारगेट बढ़ता गया लेकिन अकाउंट में सैलरी नहीं आई. जिस दिन किसी को नहीं जोड़ पाते थे उस दिन खाना नहीं मिलता था, मारते थे. कुछ भी हो लोगों को जोड़ना है. मैंने 52 लोगों को जोड़ा था. यहां तक कि मैंने अपने छोटे भाई को भी कंपनी से जोड़ दिया था. मैंने एक साल तक वहां काम किया लेकिन एक भी रुपया नहीं मिला.’’

कंचन के मुताबिक, उन्होंने 52 लोगों को जोड़ा है. हरेक से 20 हज़ार 500 रुपये लिए गए यानि कुल मिलाकर 10 लाख 66 हज़ार रुपये एक साल में कंचन के जरिए कंपनी तक आए. इन 52 लोगों ने भी इस बीच और लोगों को जोड़ा होगा.

जब आपको सैलरी नहीं मिल रही थी तो आप काम क्यों कर रही थी? इस सवाल के जवाब में कंचन कहती हैं, ‘‘वो लोग न जाने क्या ऐसा करते हैं कि मानसिक रूप से इंसान उनके बस में चला जाता है. वो जो कहते हैं वही सही लगता है. उसके इतर सब झूठ लगता है. ऐसे मोटीवेट करते हैं कि उसमें काम करने के बाद बाहरी इंसान को कोई सुनता ही नहीं है. यहां तक कि अपने परिवार के सदस्य भी आपको गलत लगेंगे. वो एक अलग दुनिया में लेकर चले जाते हैं. जिसमें आप खुद को बहुत जल्द करोड़पति या ऑडी से घूमते हुए सोचने लगते हैं.’’

अब कंचन जो बताती हैं वो डीबीआर की भयावहता की तरफ इशारा करता हैं. कंचन कहती हैं, ‘‘कुछ जो टॉप लेवल पर लोग हैं, अगर उनको यहां काम करने वाली कोई लड़की पसंद आ गई तो वो किसी भी हाल में उन्हें चाहिए ही चाहिए. किसी भी हाल में. ऐसा ही मेरे भी साथ हुआ. मैंने इसका विरोध किया तो मुझे शादी का झांसा दिया गया. यह वहां का पैटर्न है. कई लोगों के साथ ऐसा ही हुआ है. तिलक ने मेरे साथ तीन बार जबरन संबंध बनाए. इस दौरान मैं गर्भवती हो गई. वो खुद दवाई लाकर देता था, कभी अस्पताल ले नहीं गया.’’

कंचन आगे बताती हैं, ‘‘जब मुजफ्फरपुर में मई 2023 में पुलिस का छापा पड़ा तो मुझे और कई लड़के-लड़कियों को यहां से हाजीपुर ले जाया गया. तिलक वहीं रहता था. उस वक़्त कंपनी पर काफी प्रेशर था. उन्हें लगा कि मैं मुंह न खोल दूं. इसलिए हाजीपुर में दो-तीन दिन गुजरे होंगे कि तिलक मुझे दफ्तर ले गया, जहां पर मनीष सिन्हा, विजय कुशवाहा और कन्हैया कुशवाहा आदि लोग थे. इन्होंने बिना किसी तैयारी के मेरी शादी तिलक से करा दी. शादी का कोई प्रोसेस नहीं हुआ सिर्फ सिंदूरदान हुआ. शादी और गर्भवती होने की बात मैंने किसी को नहीं बताई. मनीष सिन्हा से जरूर इसकी शिकायत की थी. हालात ने मुझे मज़बूर कर दिया था. हम तिलक के साथ ही रहने लगे. तीन महीने तक मैं उसके साथ पत्नी के रूप में रही इसी बीच वो मुझपर लोगों को जोड़ने के लिए दबाव बनाने लगा. कहता था कि या तो तुम जोड़ो या जिनको बुलाई हो उनसे कहो और लोगों को जोड़ने के लिए. अब तक मैं थक गई थी. मुझे पता चल चुका था कि कंपनी फ्रॉड हैं. एक दिन मौका देखकर उसके घर से निकल गई.’’ 

कंचन अक्टूबर, 2023 में अपने घर चली गई और वहीं रह रही थी. वो इस दलदल से निकलने का रास्ता ढूंढ रही थी और दलदल उसे खुद में फंसाये रखना चाह रहा था. कंचन बताती हैं, ‘‘मेरे फोन में शादी की तस्वीरें थीं. गर्भवती होने के कुछ सबूत थे. कंपनी के खिलाफ भी कुछ सबूत थे. यह बात मनीष सिन्हा जानता था. दिसंबर, 2023 में उसने मुझे पटना के डीबीआर दफ्तर में बुलाया. यहां पहले से इनामुल मौजूद था, थोड़ी देर बाद तिलक भी पहुंचा. वहां चार से पांच घंटे तक उनसे मेरी बहस हुई. वहां फिर मेरा फोन छीनकर फॉर्मेट कर दिया. उन्होंने सिम और मेमोरी कार्ड तोड़ दिया. मुझपर हाथ भी उठाये गए. उसके बाद तिलक के साथ एक होटल में छोड़ दिया गया. होटल में तिलक ने कहा कि आगे चलकर किसी को कुछ बताना मत क्योंकि अगर बताओगी तो भी तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है. वहां से मुझे मुजफ्फरपुर के बैरिया लाकर छोड़ दिए. वहां से जैसे-तैसे मैं अपने घर गई. इतना सब झेल रही थी कि डिप्रेशन में चली गई. फरवरी 2024 में जैसे-तैसे हिम्मत कर मामला दर्ज कराई.’’

केस दर्ज करने के बाद तिलक और मनीष सिन्हा को जब इसकी जानकारी मिली तो वो मशरख स्थित कंचन के घर आए. यहां उन्होंने केस वापस लेने का दबाव बनवाया. वो कहती हैं कि मैंने इनसे कहा कि सोचकर बताउंगी. तीन दिन तक मैंने जब कोई जवाब नहीं दिया तो विजय कुशवाहा, कन्हैया कुशवाहा और तिलक जबरदस्ती मुझे गोरखपुर लेकर गए और वहां से मुजफ्फरपुर कोर्ट में केस वापस कराने के लिए लेकर आए. मौका देखकर मैं यहां से निकल गई और अपनी एक दोस्त के पास गई. वहां से वकील के पास पहुंची.’’ 

लापरवाह बिहार पुलिस! 

पहले तो मुजफ्फपुर पुलिस ने कंचन की शिकायत दर्ज नहीं की लेकिन कोर्ट के जरिए जब केस दर्ज हुआ तो भी निष्क्रिय ही रही. पुलिस की निष्कियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि कंचन के मामले में 6 लड़की और 2 लड़कों ने गवाही दी है. यह गवाही एक बार नहीं कई-कई बार की गई. लड़कियां बिहार के अलग-अलग हिस्सों से यहां आकर बयान देती थीं.  इसी बीच डीबीआर के कर्मचारी कथित रूप से उनके परिजनों को धमकी दे रहे होते थे. गवाहों के बयान कंचन के मामले के जांच अधिकारी जितेंद्र महतो ने अपने फोन में रिकॉर्ड किए थे. 

जब हम महतो से थाने में मिले तो वो कहते हैं, ‘‘8-9 के करीब लकड़ी-लड़कियों का बयान मैंने दर्ज किया था लेकिन फोन ही फॉर्मेट हो गया है. कोशिश कर रहा हूं जो डॉक्यूमेंट डिलीट हुए हैं वो रिकवर हो जाएं. अगर नहीं होता तो गवाहों का फिर से बयान लेना पड़ेगा.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने डीबीआर से पूर्व में जुड़े और वर्तमान में काम कर रहे तक़रीबन 50 से ज़्यादा नौजवानों से बात की. जहां इन्हें रखा जाता था. जहां ट्रेनिंग दी जाती थी. हर जगह के लोगों से बात की. किसी ने भी यह नहीं बताया कि कभी वो दवाई की मार्केटिंग के लिए बाहर जाते हैं. हालांकि, कंचन के मामले की जांच करने वाले अधिकारी महतो इस बात पर जोर देते हैं कि वहां काम करने वाले युवाओं ने बताया कि वो दवाई की मार्केटिंग करते हैं. उसी मार्केटिंग से उनका शेयर मिलता है.  

यह घटना मुजफ्फरपुर पुलिस की लापरवाही की गवाही देती है. 

यही नहीं ओमकार पांडेय ने अपनी एफआईआर में कंपनी के मालिक मनीष सिन्हा समेत तमाम लोगों को आरोपित किया था. महतो बताते हैं कि इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. 10 लोगों पर चार्जशीट हुई. केस ख़त्म हो गया है. मनीष तब भी गिरफ्तार नहीं हुआ था.  पुलिस चुप बैठी थी. कंचन ने उन्हें तिलक का गोरखपुर का पता दिया और अपने साथ लेकर उन्हें गई. तब जाकर उसकी गिरफ्तारी हुई. 

कंचन बताती हैं, ‘‘पुलिस वाले तो हाथ पर हाथ धरे बैठे थे. मैंने उन्हें तिलक के गोरखपुर के घर का पता दिया. यही नहीं गिरफ्तार करवाने के लिए पुलिस के साथ वहां गई. उसकी गाड़ी और घर दोनों की पहचान की. तब उसे और उसके साथी अजय कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार किया. उसके बाद से कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.’’

एसएसपी कार्यालय की फोटो

कंचन के मामले में मुजफ्फरपुर के एसपी सिटी अवधेश सरोज दीक्षित ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “जांच के दौरान सामने आया कि आरोपी और पीड़िता लिव इन रिलेशनशिप में रहे हैं. दोनों में मतभेद हुआ, उसके बाद लड़की ने मामला दर्ज कराया है. हमने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है. जांच जारी है. जैसे-जैसे सबूत मिलेंगे, हम जांच आगे बढ़ाएंगे. जहां तक यह कहना कि सौ-डेढ़ सौ लड़कियों के साथ यौन शोषण हुआ तो यह बात सही नहीं है.’’ 

हालांकि, न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए ओमकारनाथ पांडेय और सिवान की लड़की, जिसे थप्पड़ों से मारा गया था, वो दोनों बताते हैं कि यहां जो भी लड़की उनके सीनियर लोगों को पसंद आ जाती थी, वो बस उन्हें चाहिए. पॉक्सो एक्ट के तहत भी मामला दर्ज हुआ है. 

दीक्षित से हमने लड़कियों को पीटते हुए वायरल वीडियो को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि हम उसकी भी जांच कर रहे हैं. जो भी एंगल इसमें आएगा उसपर जांच की जाएगी. जितेंद्र महतो की तरह दीक्षित को भी लगता है कि यह कंपनी दवाई बेचने का काम करती है.

हमने मुजफ्फरपुर के अन्य वरिष्ठ अधिकारी से बात की उन्होंने बताया कि दवाई बेचना इस कंपनी का बस चेहरा था. वास्तव में यह कंपनी कम पढ़े लिखे और गरीब तबके के लड़के/लड़कियों को जोड़ती थी और उनसे लोगों को जुड़वाती थी. हालांकि, हम अभी इस एंगल से जांच नहीं कर रहे हैं. 

टारगेट पूरा नहीं करने पर बेल्ट से पिटाई 

अब तक हमने अपनी स्टोरी में जिन युवाओं से बात की उन्हें डीबीआर वाले दूर किसी और शहर में काम करने के लिए भेजते थे. उनके गृह जनपद में नहीं रखा जाता था. यह जानबूझकर किया जाता था ताकि युवा विरोध न कर पाए. इसके अलावा एक और चीज़ का ध्यान रखा जाता है कि जिनको काम के लिए बुलाया जाए वो दलित और गरीब तबके से हों. हमने जितने लोगों से बात की उसमें से आधे से ज़्यादा दलित और महादलित समुदाय से जुड़े थे. जिनकी आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है.  

बेल्ट से पिटाई वाले वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट

अपनी इन्वेस्टीगेशन के दौरान न्यूज़लॉन्ड्री को तीन वीडियो मिले. इसमें एक वीडियो में एक लड़की को तिलक सिंह (कंचन के मामले में आरोपी) बेल्ट से बेरहमी से पीट रहा है. एक अन्य वीडियो में एक लड़के और लड़की को पीटा जा रहा है. पीटने वाला राकेश कुमार यादव है. वहीं एक तीसरे वीडियो में एक लड़के को बेल्ट से पीटा जा रहा है. हमने इसमें से दो लड़कियों की पहचान की. जिसमें से एक लड़की सिवान के गोरेयाकोठी ब्लॉक की रहने वाली हैं और दूसरी छपरा जिले के भगवानपुर बाजार के पास के एक गांव की रहने वाली है. 

जिस लड़की तृप्ति (बदला नाम)  को तिलक सिंह बेल्ट से मार रहा था वो महादलित समुदाय मांझी से ताल्लुक रखती हैं. हम उनके घर पहुंचे तो वो एक कमरे में बैठी हुई थी. उनकी मां मुन्नी देवी पास में खड़ी थीं. 2018 में 10वीं के बाद आगे की पढ़ाई कर रही थी. तभी पास के ही गांव के रहने वाले श्रवण यादव ने डीबीआर के बारे में इन्हें बताया. 

मुन्नी देवी कहती हैं, ‘‘तीन भाई बहनों में यह सबसे बड़ी हैं. जब श्रवण कुमार और कुछ लोगों ने डीबीआर के बारे में बताया तो मैंने इसे भेज दिया. पहले हमने पांच हज़ार रुपये दिए उसके बाद 12 हज़ार पांच सौ यानी कुल मिलाकर 17 हज़ार 500 रुपये हमने दिए. वहां गई तो इसे काम अच्छा नहीं लगा तो छोड़ आई.’’

तृप्ति तो बात करने से मना कर देती हैं. वो हमें वापस जाने के लिए कहती हैं. जब हमने उनसे मारपीट वाला वीडियो के बारे में पूछा तो कहती हैं कि काम नहीं करने के कारण उन्होंने मारा था. इसी बीच तड़ाक से मुन्नी देवी कहती हैं, ‘‘वो गार्जियन के रूप में मारे हैं.’’ 

इसके बाद तृप्ति और उनकी मां अपने घर से जाने के लिए कहने लगी. बता दें कि तृप्ति ने कंचन के मामले में मुजफ्फपुर में जाकर गवाही दी है. हालांकि, वहां से वापस लौटने के बाद वो कंचन के संपर्क में नहीं है. जब न्यूज़लॉन्ड्री ने पड़ताल की तो सामने आया कि तृप्ति और उनके परिवार को डीबीआर के कर्मचारियों के द्वारा धमकाया गया और साथ ही पैसे देकर चुप रहने के लिए कहा गया है. 

दोनों मां-बेटी चुप हैं. सवाल यह उठता है कि जांच अधिकारी जितेंद्र महतो के पास से गवाही का वीडियो डिलीट हो गया है तो अब तृप्ति क्या दोबारा गवाही देंगी? कहीं महतो ने जानबूझकर यह वीडियो तो नहीं डिलीट किया है?

अब हम गोरेयाकोठी वाली लड़की रंजीता (बदला नाम) के यहां पहुंचे. 18 वर्षीय रंजीता भी महादलित समुदाय, महतो से ताल्लुक रखती हैं. जब हम इनके घर पहुंचे तो हमारी मुलाकात उनकी दादी, सौतेली मां और पिता से हुई. रंजीता की मां का निधन सांप काटने से हो गया था. 

इनके पिता, पंजाब में मज़दूरी करते हैं. इन दिनों धान की बुआई के लिए गांव आए हैं. उन्हें रंजीता के साथ क्या हुआ और वो किस हाल में हैं इसकी जानकारी नहीं है. वहीं उनकी दादी कहती हैं, ‘‘अमीर होने का सपना दिखाकर ले गए लेकिन वो क्या करती हैं? क्या कमा रही है? कोई जानकारी ही नहीं है.’’

रंजीता से हमारी फोन पर बात हुई. इन्होंने बताया कि डीबीआर में लड़कियों के साथ शारीरिक शोषण होता है. जो लड़की इनके झांसे में आ जाए उसकी ज़िन्दगी खराब कर देते हैं. वह कहती हैं, “उन्होंने मेरा भी डेढ़ साल बर्बाद कर दिया. 12वीं का पेपर तक नहीं देने दिया.” 

रंजीता से मई, 2022 में गोपलंगज जिले के रहने वाले हरेराम राम ने फेसबुक के जरिए संपर्क किया. तब उसने 10वीं ही पास की थी. हरेराम ने बताया कि नौकरी करनी है तो हाजीपुर आ जाओ, कम्प्यूटर और ऑफिस का कुछ काम करना है. उससे हुई बातचीत और गांव में नेटवर्क मार्केटिंग से जुड़े लोगों की ‘मोटिवेशनल और अमीर’ होने की बातें सुनकर रंजीता डीबीआर के हाजीपुर सेंटर पर पहुंचीं. उसने 12वीं का फॉर्म भर दिया था लेकिन उसे डीबीआर के लोगों ने पेपर देने नहीं आने दिया. 

हरेराम की तस्वीर.

रंजीता बताती हैं, ‘‘मुझे 12वीं के पेपर देने के लिए नहीं आने दिया. वो रूम से बाहर नहीं जाने देते थे. परिवार के लोगों से भी उनके सामने ही बात करनी पड़ती थी. कुछ इधर-उधर की बात करते थे तो मारते-पीटते थे. बहुत बुरा हाल था. खाना तो ऐसा मिलता था, जो कुत्ता भी न खाये. दाल तो जैसे चिकन-मटन हो. कभी-कभार मिलती थी. वहां कोई कम्प्यूटर का कोर्स नहीं कराया गया. जाने के कुछ दिनों बाद ही कहने लगे कि और लोगों को जोड़ो. उसके लिए फोन कराते थे. नकली फेसबुक और इंस्टाग्राम की आईडी बनाकर देते थे. करीब डेढ़ साल वहां काम किया और इस दौरान 31 लोगों को जोड़ा था. कहते थे कि लोगों को जोड़ने पर पैसे मिलेंगे लेकिन मुझे एक रुपया नहीं दिया. खर्च के लिए घर से ही मांगना पड़ता था. फंस गए थे हम.’’

रंजीता ने 31 लोगों को जोड़ा था. सबसे 20 हज़ार 500 रुपये लिए गए यानी रंजीता के जरिए इस कंपनी ने करीब साढ़े छह लाख रुपये कमाए. वहीं, इन 31 लोगों ने आगे भी लोगों को जोड़ा होगा. 

रंजीता को मारते हुए जो वीडियो हमें मिला. उसमें एक कमरे में सात-आठ लोग हैं. तिलक सिंह पहले एक लड़के को मारता है. फिर रंजीता को बाल घसीटकर मारते हुए गाली देता है. कुछ बोलने पर फिर मारता है. आखिर वो क्यों मारपीट कर रहे थे? इस सवाल पर रंजीता कहती हैं, ‘‘लोगों को जोड़ने का टारगेट देते थे. वो पूरा नहीं हुआ तो उन्होंने मारा था. मुझे ही नहीं सबको मारते थे. वहां जानवरों जैसा व्यवहार होता था.’’

मारपीट का वायरल वीडियो

रंजीता, कंचन के मामले में गवाह है. इनपर दबाव है कि वो मीडिया के सामने आकर बोले कि कंपनी में सब ठीक चल रहा है. वो कहती हैं, ‘‘हरेराम ने मेरा फोन ले लिया है. उसमें कई सबूत हैं. उसने मुझसे कहा कि गोरखपुर आकर कंपनी के पक्ष में बयान दो. मैं ऐसा नहीं कर सकती हूं. जो गलत है उसे सही कैसे कह दूं.’’ 

डीबीआर- एक साल में 1 करोड़ से 11 करोड़ की बनी कंपनी 

डीबीआर कंपनी मई, 2021 में बनी थी. यह एक प्राइवेट कंपनी है, इसमें केवल एक ही व्यक्ति डायरेक्टर होगा. इस कंपनी के डायरेक्टर मनीष कुमार सिन्हा हैं. 

अब तक आपने देखा कि यह कंपनी युवाओं के साथ धोखाधड़ी कर रही थी लेकिन इसने कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय में भी गलत और अधूरी जानकारी दी है. यह बात तब सामने आई जब न्यूज़लॉन्ड्री ने साल 2021-22 और 2022-23 में कंपनी द्वारा जमा कराए गए दस्तावेज खंगाले.

साल 2021-22 की बैलेंस शीट में कंपनी की तरफ से बताया गया है कि इसने 1 करोड़ 71 लाख रुपये की सेल की. इसमें से 6 लाख रुपये सैलरी के रूप में दिए गए. वहीं, 80 लाख रुपये 71 हज़ार सात सौ रुपये कंपनी ने खरीद पर खर्च किए. एक्स्ट्रा खर्च 83 लाख बताया गया है. जिसमें से 72 लाख 59 हजार सेल कमीशन पर खर्च हुआ. बाकी विज्ञापन पर खर्च किया गया. इसे 31 हज़ार 200 रुपये का मुनाफा हुआ.

अगले साल यानि 2022-23 में कंपनी का टर्नओवर 11 करोड़ 37 लाख रुपये हो गया. जबकि उसी दस्तावेज में डीबीआर की तरफ से लिखा गया है कि इसका वार्षिक कारोबार 10 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है. 

कंपनी का टर्नओवर 10 गुना बढ़ा लेकिन सैलरी पिछले वर्ष की तुलना में 6 लाख से बढ़कर 9 लाख 40 हज़ार पांच सौ रुपये हुई. वहीं खरीद पर 3 करोड़ 81 हज़ार रुपये खर्च किए. कंपनी ने बताया कि उसे चार लाख रुपये का मुनाफा हुआ है.

वित्त वर्ष 2022-23 की डायरेक्टर रिपोर्ट और बैलेंस शीट में अलग-अलग जानकारी दी गई. वहीं बैलेंस सीट के मुताबिक, इन्होंने इनकम टैक्स जमा नहीं कराया है जबकि कंपनी को लाभ हुआ. 2021 में जहां कंपनी सेल कमीशन का जिक्र किया था. वहीं इस बार नहीं दिया गया. हालांकि, एक्स्ट्रा खर्च बताया है लेकिन वो खर्च कहां हुआ. यह जानकारी कंपनी की तरफ से नहीं दी गई है.

कंपनी के दस्तावेज पर इसके सीए संदीप भाई धीरूभाई ने 12 सितंबर 2023 को हस्ताक्षर किए हैं. वहीं मनीष सिन्हा ने 3 सितंबर 2023 को लेकिन प्रिंट एक ही साथ हुआ है. नीचे की तस्वीर में आप देख सकते हैं.

कंपनी की ओर से प्रस्तुत दस्तावेज.

कंपनी यह खर्च कहां कर रही रही है, यह भी सवाल है? क्योंकि न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब डीबीआर के नोएडा स्थित दफ्तर पहुंची तो हमारी मुलाकात आशीष चौहान से हुई. उसने हमें बताया कि कभी-कभार सप्ताह में एकाध लोग दवाई लेने आते हैं. दवाई की ज़्यादा बिक्री नहीं होती है. 

हमने आशीष से कुछ दवाइयों की मांग की. उसने कहा कि मैं दफ्तर से लेकर आता हूं. दफ्तर के अंदर जाने के बाद आधे घंटे तो वो बाहर नहीं आया. जब हम दोबारा उसके दफ्तर गए तो कई मिनट तक खड़े होने के बाद उसने दरवाजा खोला. आशीष के पीछे एक लड़की खड़ी थी. जिसने मुंह बांध रखा था और हमारा ही वीडियो बनाने लगी. हमने दवाई की मांग की तो आशीष हमसे कई तरह के सवाल करने लगा जैसे आपको किसने भेजा? किसने कहने पर आप यहां आए हैं, आदि. उसने दवाई देने से इनकार कर दिया.

मनीष सिन्हा से हमने कंपनी पर लगे आरोपों पर जवाब जानने के लिए फोन किया. कई बार कोशिश करने के बाद भी बात नहीं हो पाई. फोन बंद है. ऐसे में हमने उनकी ई-मेल आईडी पर सवाल मेल किए हैं. जिसका जवाब खबर प्रकाशित करने तक नहीं आया है. 

जहां बिहार में कंपनी के कुछ सेंटर बंद हुए हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश गोरखपुर और वाराणसी में यह चल रहा है. यहां ज़्यादातर बिहार के युवाओं को रखा गया है. लगातार नए युवा इससे जुड़ रहे हैं. देश को रोजगार मुक्त करने के वादे से शुरू हुई कंपनी युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है. वहीं गिरिराज सिंह जैसे नेता इसके प्रचार में व्यस्त हैं. बिहार पुलिस आंख बंद किए हुए है. इस कंपनी के निशाने पर ज़्यादतर दलित और गरीब बच्चे हैं, जो कुछ कमाकर अपने परिजनों का जीवन बेहतर करना चाहते हैं लेकिन इस जाल में फंसकर वो कई और लोगों को फंसा रहे हैं.

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