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गुफाओं से प्रारम्भ हुई मानव सभ्यता अपनी विकास यात्रा में विश्व एकता कीमंजिल से अब मात्र एक कदम दूर

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डा0 जगदीश गाँधी,

शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) 24 अक्टूबर, 1945 को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना:
द्वितीय विष्व युद्ध की विभीषिका से व्यथित होकर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने 1945 में विष्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई जिसकी वजह से 24 अक्टूबर, 1945 को विश्व की शान्ति की सबसे बड़ी संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई। प्रारम्भ में केवल 51 देषों ने ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। आज 193 देष इसके पूर्ण सदस्य हैं व 2 देष संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.) के अवलोकन देष (आॅबजर्बर) हैं। फ्रैंकलिन रूजवेल्ट की इस पहल के कारण पिछले 76 वर्षों से संसार में कोई और विश्व युद्ध नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति स्थापित करना, मानवाधिकारों की रक्षा व सभी देशों का समान रूप से आर्थिक विकास करना है। इसके साथ विभिन्न देशों के मध्य युद्धों को रोकना, एकता व शांति को बढ़ावा देना, पड़ोसी देशों के बीच अच्छे संबंध स्थापित करना भी इसके मुख्य उद्देश्य है। आज पूरे विश्व में गरीबी, भुखमरी, बीमारी एवं निरक्षरता से जूझते देशों की मदद करने का महत्वपूर्ण दायित्व संयुक्त राष्ट्र संघ सदस्य देशों के सहयोग से निभा रहा है। आज अनेक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर पैदा हुई नाजुक स्थितियों को संभालने में संयुक्त राष्ट्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
(2) संयुक्त राष्ट्र संघ की वजह से ही विश्व के कई हिस्सों में आज शांति और एकता का वातावरण स्थापित है:-
मनुष्य को उसकी बढ़ती हुई लालसा तथा अधिकार क्षेत्र को बढ़ाने के जुनून ने हमेशा उसे एक-दूसरे का शत्रु ही बनाया है। भविष्य में दो देशों के बीच युद्ध न हो इसे रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी जो आज विश्व की सबसे शक्तिशाली शक्ति है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ कई मामलों में विवश रहा है लेकिन यह कहना भी गलत न होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की वजह से ही विश्व के कई हिस्सों में आज शांति और एकता का वातावरण स्थापित है। संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों का एक ऐसा संगठन है, जो अंतर्राष्ट्रीय शान्ति, सुरक्षा, राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों को बनाये रखने के लिए वचनबद्ध है। इसके प्रमुख उद्देश्यों को संगठन के घोषणा पत्र में उल्लिखित किया गया है। यह घोषणा पत्र संगठन को किसी भी देश के घरेलू मामले में दखल देने की अनुमति प्रदान नहीं करता है।
(3) संयुक्त राष्ट्र की शान्ति सेना:-
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्र संघ अर्थात लीग आॅफ नेशन्स का गठन किया गया था। राष्ट्र संघ काफी हद तक प्रभावहीन था और संयुक्त राष्ट्र का उसकी जगह होने का यह बहुत बड़ा फायदा है कि संयुक्त राष्ट्र अपने सदस्य देशों की सेनाओं को शांति के लिए तैनात कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ से पूर्व, पहले विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) की स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य किसी संभावित दूसरे विश्व युद्ध को रोकना था, लेकिन राष्ट्र संघ 1930 के दशक में दुनिया के युद्ध की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने में विफल रहा और कुछ वर्षों के पश्चात इसे भंग कर दिया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ ने राष्ट्र संघ के ढांचे और उद्देश्यों को अपनाया। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में इस बात का उल्लेख है कि किसी आपातकालीन स्थिति या गम्भीर समस्या के समाधान के लिये संयुक्त राष्ट्र की सेना गठित की जायेगी। पहली बार शान्ति सेना कोरिया (1950) में स्थापित की गयी। चूंकि संयुक्त राष्ट्र की कोई संयुक्त स्थायी सेना नहीं हैं, इसलिये सेना मंे विभिन्न राष्ट्रों के सैनिक शामिल किये जाते हैं, जिनका वित्तीय भार संयुक्त रूप से सदस्य राष्ट्रों द्वारा वहन किया जाता है। किसी भी राष्ट्र को शान्ति सेना में अपने सैनिकों को भेजने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
(4) संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य कार्यकारी पांच अंग हैं:-
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयार्क, अमेरिका में है। विश्व की 6 भाषाओं अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी एवं स्पेनिश को उसके कार्य हेतु मान्यता प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र संघ हमेशा से विश्व शान्ति और मानव सेवा में समर्पित रहा है। लेकिन वर्तमान समय में उसके कार्यों के सहज सम्पादन में आर्थिक समस्याएँ बहुत अवरोध प्रस्तुत कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य कार्यकारी पांच अंग हैं – 1. सामान्य महासभा, सुरक्षा परिषद्, 3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, 4. न्याय परिषद् तथा 5. महासभा सचिवालय। इन सबके अतिरिक्त – अन्य कुछ ऐसे विषयों को चुना गया है जिनके लिए 9 क्रियात्मक आयोग एवं अनेक समितियाँ एवं विशिष्ट निकायों का निर्माण किया गया है। वे इस प्रकार हंै – 1. अपराध निरोधक एवं अपराधिक न्याय, 2. सामाजिक विकास, 3. मानवाधिकार, 4. मादक पदार्थ, 5. विकास हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, 6. महिलाओं की स्थिति, 7. जनसंख्या 8. संाख्यिकी एवं 9. समर्थनीय विकास।
(5) संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का स्वरूप:-
विकासशील देशों में आर्थिक एवं सामाजिक विकास के कार्य संयुक्त राष्ट्र अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों एवं कोषों के माध्यम से करती है। जो कि इस प्रकार हैं – संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू0एन0डी0पी0), यूनीसेफ-संयुक्त राष्ट्र शिशु निधि, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या सहायता कोष (यू0एन0डी0पी0ए0), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.), अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.), यूएन औद्योगिक विकास संगठन (यूनिडो), विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (आई.डी.ए.), संयुक्त राष्ट्र से संबंधित अंतर्शासकीय अभिकरण, विश्व व्यापार संगठन (डब्लू0टी0ओ0), अतर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा अभिकरण (आई0ए0ई0ए0), संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट अभिकरण (स्पेशलाइज्ड एजेन्सीज), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई0एल0ओ0), खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ0ए0ओ0), अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आई0एफ0सी0), अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन (आई0सी0ए0ओ0), सार्वदेशीय डाक संघ (यू0पी0यू0), अंतर्राष्ट्रीय दूर संचार संघ (आई0टी0यू0), विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लू0एम0ओ0), अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आई0एम0ओ0), विश्व बौद्धिक सम्पदा संगठन (डब्लू0आई0पी0ओ0) तथा अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आई0एफ0ए0डी0)।
(6) संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रजातांत्रिक एवं शक्तिशाली बनाकर विश्व संसद का स्वरूप प्रदान करना चाहिए:-
विश्व में एकता व शांति कायम करने के लिए विश्व के कुछ भटके हुए युवाओं को विस्फोटक विचारधारा को त्याग कर शांति व आपसी भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना होगा। एकता व शांति के रास्ते को अपनाकर ही विश्व के सभी देश सही मायनों में समान स्तर पर विकास कर सकते हैं। पिछले कुछ समय से कई देश आधुनिक हथियारों का निर्माण एवं भंडारण कर रहे हैं। इससे विश्व में अशांति फैलाने की कोशिश हो रही है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जान टिम्बरजेन ने कहा है कि राष्ट्रीय सरकारें विश्व के समक्ष उपस्थित संकटों और समस्याओं का हल अधिक समय तक नहीं कर पायेंगी। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्व संसद आवश्यक है, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ को मजबूती प्रदान करके प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए प्रभावशाली वैश्विक प्रशासन के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रजातांत्रिक एवं शक्तिशाली बनाकर विश्व संसद का स्वरूप प्रदान करना चाहिए। महान विचारक विक्टर ह्नयूगो ने कहा है कि ‘‘इस दुनियाँ में जितनी भी सैन्यशक्ति है उससे कहीं अधिक शक्तिशाली वह एक विचार होता है, जिसका कि समय अब आ गया हो।’’ वह विचार जिसका कि समय आ गया है। वह विचार है भारतीय संस्कृति की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान विचारधारा और भारतीय संविधान का ‘अनुच्छेद 51’ जिसके द्वारा विश्व को तीसरे विश्व युद्ध एवं परमाणु बमों की विभीषिका से बचाया जा सकता है।
(7) विष्व के 3 बड़े नेताओं ने विष्व में एकता व शांति की स्थापना के लिए प्रयास किया जिसके तहत:
(अ) प्रथम विष्व युद्ध के समय 1919 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वुडरो विल्सन ने विष्व के नेताओं की एक बैठक आयोजित की, जिसके फलस्वरूप ‘लीग आॅफ नेषन्स’ की स्थापना हुई और सन् 1919 से 1939 तक विश्व में कोई अन्य युद्ध नहीं हुआ। (ब) द्वितीय विष्व युद्ध के समय अमेरिका के ही तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने 1945 में विष्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई जिसकी वजह से 24 अक्टूबर, 1945 को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई। जिसके बाद विश्व में पिछले 76 वर्षों में कोई विश्व युद्ध नहीं हुआ। (स) फ्रांस के प्रधानमंत्री श्री राबर्ट शूमेन ने यूरोपीय देषों के नेताओं की एक बैठक बुलाने की पहल की। इस पहली बैठक में 76 यूरोपीय संसद सदस्यों ने प्रतिभाग किया जिसके परिणामस्वरूप यूरोपीय यूनियन व 28 यूरोपीय देषों की एक ‘यूरोपीय संसद’ गठित की गई। इस यूरोपीय संसद की वजह से आज पूरे यूरोप में स्थायी एकता व शांति स्थापित है। आज यूरोपीय यूनियन में वर्तमान में 27 यूरोपीय देष पूर्ण सदस्य राज्यों की तरह से हैं। यूरोपीययूनियन के 18 देषों ने अपनी राष्ट्रीय मुद्रा को समाप्त कर ‘यूरो’ मुद्रा को अपनी राष्ट्रीय मुद्रा केरूप में अपनाया है। इस बैठक को आयोजित करने की पहल करना यूरोप में स्थायी शांति व सभी देषों में एकता स्थापित करने के लिए श्री राबर्ट शूमेन का एक महत्वपूर्ण कदम था।
(8) मानव सभ्यता गुफाओं से प्रारम्भ हुई अपनी विकास यात्रा की विश्व एकता की मंजिल से एक कदम दूर है:
हमने इतिहास में देखा है कि केवल तीन अवसरों पर (1) लीग आॅफ नेषन्स के गठन में (2) संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन में व (3) यूरोपियन यूनियन के गठन में विष्व के देषों ने मिलकर एकता अपनायी है। और प्रत्येक बार वे इसलिए सफल रहे क्योंकि ‘एक व्यक्ति’, जो अपने आप पर विष्वास रखता था, जिसके हृदय में पवित्र इच्छा थी, ने आगे बढ़कर सभी विष्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई। हमारा मानना है कि विष्व के नेताओं की बैठक बुलाना आज के युग की सबसे बड़ी आवष्यकता है, जिसका कि अब समय आ गया है। भारत को विश्व शान्ति के लिए पहल करनी चाहिए। सी.एम.एस. के लगभग 55,000 से अधिक छात्रों की शुभकामनाएँ व बधाइयाँ भारत सरकार के साथ हैं। हमारा मानना है कि न केवल भारत के बल्कि विष्व भर के बच्चे अपने सुन्दर एवं सुरक्षित भविष्य के लिए भारत सरकार की तरफ बड़ी आषाओं के साथ देख रहे हैं। इस प्रकार गुफाओं से प्रारम्भ हुई मानव सभ्यता अपनी विकास यात्रा में विश्व एकता की मंजिल से मात्र एक कदम दूर है। आज जरूरत सिर्फ इस बात की है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान कर विश्व संसद के रूप में परिवर्तित किया जायें। इसके लिए भारत को ‘जगत् गुरू’ के रूप में अपनी प्रभावशाली भूमिका को निभाते हुए बस एक सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है।
(9) अन्तिम लक्ष्य सारी धरती पर वसुधैव कुटुम्बकम् के अन्तर्गत आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना
मुझे पूरा विश्वास है कि विश्व के लगभग दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों तथा आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के प्रयास में सारा विश्व समुदाय विश्व एकता के प्रबल समर्थक भारत के साथ खड़ा होगा। विश्व संसद के गठन से देशों के बीच होने वाले युद्धों की समाप्ति हो जायेगी। जिसके फलस्वरूप में एक नई वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन समय रहते होगा। साथ ही उसके पश्चात मानव सभ्यता की गुफाओं से शुरू हुई विकास यात्रा का अन्तिम लक्ष्य सारी धरती पर वसुधैव कुटुम्बकम् के अन्तर्गत आध्यात्मिक सभ्यता की स्थापना से पूरा होगा।

  • वसुधैव कुटुम्बकम् – जय जगत –
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