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विचारों में तोतारटंत नरपशु जीते हैं, अनुभव में इंसान

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डॉ. प्रिया मानवी

साधना की दृष्टि से न योग को स्वीकार किया और न तो तन्त्र को ही मैंने। डॉ. मानवश्री की ऊँगली पकड़कर दोनों के मार्ग पर मैं चली अवश्य लेकिन सत्य की खोज में, वास्तविकता की खोज में, तथ्य की खोज में और परिणाम की खोज में।
मेरे लिए किसी भी देवी-देवता का न मूल्य है और न तो है महत्व ही। मेरे लिए कोई मूल्यवान और महत्वपूर्ण है तो वह है–मेरा इष्ट और मेरा सद्गुरु।
अन्वेषण- मार्ग में इष्ट ने मेरी रक्षा की और मानवश्री ने मेरा प्रतिदानमुक्त मार्गदर्शन।
खोजी जीवन में अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएं आयीं, कई झंझावातों का सामना करना पड़ा, पारिवारिक आघात सहने पड़े, अपने ही लोगों ने कई प्रकार की चोट भी पहुंचाई, सामाजिक प्रताड़ना भी सहनी पड़ी, लेकिन बन्धु ! मैं आगे बढ़ता रही, बढ़ता ही रही और आज भी बढ़ ही रही हूँ।

जहां खोज की वृत्ति है, वहां अनुभव का प्राप्त होना निश्चित है। जो अनुभव कई जन्मों में प्राप्त होने वाला नहीं है, वह अनुभव प्राप्त हुआ है मुझे अपनी खोज-वृत्ति से जिसकी सफलता की पृष्ठभूमि में श्रद्धा, विश्वास, आस्था, तनमनधन के समर्पण का कतई रोल नहीं रहा. चेतना मिशन इन सबकी मांग नहीं करता.

 यहाँ ज़रूरी होता है दृढ़ संकल्प और प्रयोग।

      प्रायः लोग उत्सुकुतावश पूछते हैं–आप को पढ़ने से ऐसा लगता है कि आपकी आयु बहुत अधिक होगी, सिद्धियां भी होंगी आपके पास.

       _काल का प्रवाह अनन्त है। मैं हर युग में रही हूँ। मेरा अस्तित्व किसी-न-किसी रूप में हर समय में, हर अवस्था में रहा है, इसलिए आयु का लेखा-जोखा मेरे लिए नगण्य रहा है।_

      मृत्यु मेरे लिए एक प्राकृतिक घटना है। वह शरीर को बदल देगी, मुझे और मेरे अस्तित्व को नहीं।

     _मैं ‘शब्द’ नहीं लिखती हूँ, अपना स्वयं का ‘अनुभव’ लिखती हूँ। मेरे जीवन का एक-एक क्षण अनुभव है। हर क्षण मूल्यवान है। हर क्षण के ज्ञान को कर्म में नियोजित करती हूँ। मेरी खोज अस्तित्ववादी खोज है।_

      मेरी खोज-दृष्टि में :

      ‘मृत्यु’ क्या है ? ‘जीवन’ क्या है ? ‘आत्मा’ क्या है ? ‘परमात्मा’ क्या है ? ‘मुक्ति’ क्या है ? ‘मोक्ष’ क्या है ? ‘पाप-पुण्य’ क्या है ?

      ये सब दार्शनिक चिन्तन-मनन के विषय नहीं हैं, बल्कि अनुभव के विषय हैं। जो लोग इन विषयों पर विचार करते हैं, चिन्तन-मनन करते हैं, उन पर पुस्तकें लिखते हैं और देते हैं लम्बे-लम्बे प्रवचन–वे सब व्यर्थ और निरर्थक हैं।

     _उनका कोई मूल्य नहीं है, उनका फल भी कोई नहीं है, लाभ और परिणाम भी कोई नहीं है। जो लोग इन विषयों पर विचार करते हैं तो करते रहें, जन्म-जन्मान्तर तक करते रहें। कोई भी और कुछ भी ज्ञान प्राप्त होने वाला नहीं।_

     जन्म-मृत्यु-पुनर्जन्म, मोक्ष-मुक्ति आदि सब ‘शब्द’ ही बने रहेंगे सदैव, ‘अनुभव’ कभी न बन सकेंगे। फिर विचार करके भला करेंगे क्या ?

     _विचार तो उसके विषय में किया जाता जिसे हम जानते हों। लेकिन जो अज्ञात है, उसके विषय में कोई विचार नहीं हो सकता।_

      इसीलिए आरम्भ से लेकर अब तक धार्मिकों ने, दार्शनिकों ने इन सब विषयों के सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, कहा है, वह सब सोच-सोच कर और अनुमान लगा कर  लिखा है और बोला है जिसका कोई मूल्य नहीं है।

      _इन समस्त विषयों पर योग ने जो कुछ लिखा है, वह सब अनुभव पर आधारित है। इसके अलावा जो कुछ है, वह सब शब्दों का मायाजाल है, विचारों का हेर-फेर है और है कोरी कल्पना, क्योंकि जो योग कहता, वह जीवन का अनुभव है, जीवन की सच्चाई का अनुभव है।_

        तोता रटंत नरपशु लोग विचारों में जीते हैं, अनुभव में नहीं। अनुभव में जीता है इंसान, योगी इंसान।

    (चेतना विकास मिशन)

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