आज एक दरख़्त से मुलाक़ात हुई
जिसकी एक शाख़ कट कर कागज़ बनी
दरख़्त की तकलीफ़ कुल्हाड़ी नहीं
क़लम है जान कर हैरत हुई।।
मैने पूछ ही लिया दर्द तो तुम्हें कुल्हाड़ी ने दिया
फिर शिकवा क़लम से कैसा
दरख़्त सुन कर थोड़ा हंसा फिर रो दिया
बोला यही तो अलमिया है दर्द तो अपने ने दिया है
जिस कागज़ पर मुझे ज़ख्म देने का हाकिम ने फरमान लिखा
मेरा ही भाई था मेरे बाज़ू में पला बढ़ा और एक दिन
उसे कुछ लोगों ने काटा वह भी कागज़ बना
और फिर उसपर ही ज़ुल्म की काली स्याही से
ज़ालिम ने झूठा फरमान लिखा जिसमें था
हुक्म मेरी शाखों को काटे जाने का
सिर्फ इतना ही नहीं काटने से सिर्फ एक ज़ख्म लगता है
लेकिन कागज़ पर जब झूठ लिखा जाता है तो
हर हर नुक्ते पर छलनी जिगर होता है
उस लिखे गए झूठ से बर्बाद जिंदगियां होती हैं
और तबाही मुकद्दर बनती है
कुल्हाड़ी से खौफ नहीं मुझको
लेकिन क़लम बहुत दर्द देती है
सिर्फ कलम से दर्द ही हो ऐसा नहीं है
कई बार यह रश्क का मौका भी फराहम कराती है
जब लिखती है सना रब की , मिदहत महबूबे रब की
और लिखा जाता है हक जब इससे
परवाना किसी की रिहाई का या खुशी की बात कोई
पर हर बार कागज़ खुशकिस्मत नहीं होता
उसे झेलनी पड़ती है कड़वे अल्फाजों की चुभन
दर्द झूठे वादों का झूठी इबारत का उठाना पड़ता है बोझ
एक दरख़्त जब कागज़ बनता है तो
समझता है फरेब क्या है ,और क्या है जुमला
और यही दर्द सबसे बड़ा दर्द है
अफसोस दरख़्त का दर्द बड़ा है
सुप्रसिद्ध जनवादी शायर और कवि यूनुस मोहानी , संपर्क – 93058 29207
संकलन और संपादन -निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद उप्र संपर्क – 9910629632