-निर्मल कुमार शर्मा,
इस लेख का शीर्षक उस पर्यावरणसंरक्षक,भौतिक विज्ञानी का उद्गार है,जिसे इस साल नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! इस धरती के पर्यावरणक्षरण से चिंतित पूरी विश्वमानवता,वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस धरती,इसके पर्यावरण,इसके समस्त जैवमण्डल पर ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे भयावहतम् नुकसान से कितने व्यथित,चिंतित और आशंकित तथा सशंकित हैं,इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष भौतिक विज्ञान वर्ग में दिया गया सुप्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार उन तीन पर्यावरणसचेतक वैज्ञानिकों को प्रदान किया गया है,जिन्होंने पर्यावरणसंरक्षण के लिए अपना अभूतपूर्व,महती व उल्लेखनीय योगदान दिया है,नोबेल पुरस्कार प्रदान करने वाली विश्वविख्यात सुप्रतिष्ठित संस्था रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ सांइसेज ने इसी चिंता को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष 90 वर्षीय जापानी वैज्ञानिक स्यूकुरो मानेबे ( Syukuro Manabe ), 89वर्षीय जर्मन वैज्ञानिक क्लाउस हासेलमैन और 73 वर्षीय इटैलियन वैज्ञानिक जियोर्जियो पारिसी ( Giorgio Parisi ) को उनके पर्यावरणसंरक्षण में किए गए उल्लेखनीय शोध कार्य के लिए संयुक्त रूप से विश्व के सबसे सुप्रतिष्ठित व सर्वोच्च पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से नवाजा है। इस पूरे ब्रह्मांड में जीवन के स्पंदन से युक्त इस एकमात्र व इकलौती धरती के समस्त प्राणियों और जैवमण्डल के लिए ग्लोबल वार्मिंग इतना घातक है कि इन पर्यावरणसचेतक वैज्ञानिकों में से एक ने नोबेल पुरस्कार की घोषणा होने के बाद इसकी गंभीरता को उकेरित करते हुए कहा कि ‘मुझे नोबेल पुरस्कार न मिले परन्तु इस धरती पर ग्लोबल वार्मिंग न बढ़े ‘पुरष्कृत इटली के दूसरे वैज्ञानिक ने बहुत दृढता और स्पष्टता से कहा कि ‘ इस बात की बहुत जरूरत है कि हम जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए बहुत कठोरतम् फैसले लें और तेज गति से बढ़ें,अपनी भावी पीढ़ियों के लिए हमारे लिए यह कठोर संदेश है कि हमें अब इस पर गंभीरतापूर्वक काम करना ही चाहिए । ‘
जापानी वैज्ञानिक स्यूकुरो मानेबे और जर्मन वैज्ञानिक क्लाउस हासेलमैन ने संयुक्त रूप से धरती की जलवायु का फिजिकल मॉडल तैयार किया है,जिससे जलवायु में सूक्ष्म से सूक्ष्म परिवर्तन पर भी बिल्कुल सटीकता से नजर रखी जा सकती है। जापानी वैज्ञानिक स्यूकुरो मानेबे ने सन् 1960 में ही इस बात की खोज कर लिया था कि कैसे वातावरण में कार्बनडाइ-ऑक्साइड के बढ़े स्तर से पृथ्वी की सतह के तापमान में तुरंत वृद्धि हो जाती है ! जर्मन वैज्ञानिक क्लाउस हासेलमैन ने एक ऐसा मॉडल भी बनाया है,जो मौसम और जलवायु को एकसाथ जोड़ता है,जिससे यह पता चलता है कि धरती का मौसम परिवर्तनशील,विध्वंसक,उग्र व अराजक होने के बावजूद जलवायु मॉडल विश्वसनीय क्यों हो सकते हैं ! जबकि इटैलियन वैज्ञानिक जियोर्जियो पारिसी ने अणुओं से लेकर सूदूरवर्ती विशाल ग्रहों तक के फिजीकल सिस्टम में होनेवाले तेज बदलाव और विकारों के बीच की गतिविधियों को दर्शाने के सिस्टम को अविष्कृत किया है ! मतलब इन तीनों पर्यावरणसचेतक वैज्ञानिकों ने इस धरती पर ग्लोबल वार्मिंग के आसन्न और भयावहतम् ख़तरे से निबटने के लिए रास्ते सुझाए हैं। इन वैज्ञानिकों में से एक ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि मानवीय गतिविधियों से इस धरती और इसके पर्यावरण पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है,लेकिन चूँकि ये दुष्प्रभाव तात्कालिक न होकर बहुत दूरगामी होते हैं,इसलिए पिछले 60 वर्षों से मनुष्यप्रजाति इसे नजंरदाज व उपेक्षित करता आया है,लेकिन हाल में उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों,हिमालय,एंडीज,आल्प्स आदि पर्वतों के शिखरों पर करोड़ों वर्षों से जमें व बर्फ और गलेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं,इस धरती की रक्षक छतरी ओजोन की परत में हजारों-लाखों किलोमीटर के घेरे में सुराख हो रहा है,कुँए,बावड़ी,झीलें,नदियाँ,आदि मानवनिर्मित व प्राकृतिक जलश्रोत तेजी से सूख रहे हैं,मर रहे हैं।
इसी संबंध में सन् 2007 में अमेरिका के उपराष्ट्रपति और सुप्रसिद्ध पर्यावरणसंरक्षणविद् अलगोर को जब विश्व शांतिवाले वर्ग में यही नोबेल पुरस्कार मिला था तो उन्होंने भी एक कालजयी वक्तव्य दिया था कि ‘आनेवाली पीढ़ियाँ अपने पूर्वजों से दो में से एक सवाल अवश्य पूछेंगी,जब उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के करोड़ों साल पूर्व जमे ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेजी से पिघल रहे थे,तब आपकी संवेदना कहाँ चली गई थी ? या वे यह भी पूछ सकतीं हैं कि आपने इतना साहस कहाँ से हासिल किया कि आप इतने बड़े संकट से लड़कर,उससे जीतकर अपनी भावी पीढ़ियों के लिए उसे सुरक्षित कर सके ! ‘ अगर अब भी मनुष्यप्रजाति इस धरती के पर्यावरण को क्षरित करनेवाले कारकों से बाज नहीं आयेगा,तो निश्चित रूप से यह इस धरती के समस्त जैवमण्डल के साथ उसके स्वयं के लिए भी भयावह खतरे वाली बात है,क्योंकि उसके कुकृत्यों से प्रकृति कभी अतिवृष्टि,कभी अनावृष्टि, कभी जानलेवा बाढ़,कभी चक्रवात,कभी सूखा,कभी भूस्खलन,कभी हिमस्खलन, अनवरतरूप से हर साल दुनियाभर के जंगलों में लगनेवाली भीषण आग आदि के रूप में अपनी बात को संकेत रूप में उक्त क्रियाकलापों को करके मनुष्यप्रजाति को बार-बार चेतावनी दे रही है। अब समय आ गया है कि हम कथित रूप से सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क वाले मानव प्रकृति द्वारा दिए जा रहे इन स्पष्ट संकेतों को समझें और इस धरती को और अधिक प्रदूषित और अति दोहन से बचाएं। इसी में इस धरती के समस्त जैवमण्डल के अरबों जीव-जन्तुओं-वनस्पतियों सहित मानव मात्र की भलाई भी अंतर्निहित है ।
-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उप्र