अग्नि आलोक
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जुल्मों से लड़ता हुआ हर इंसान मुझे अच्छा लगता है

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मुनेश त्यागी

गुलामी की बेड़ियां तोड़ता,
अपने हकों की खातिर लड़ता,
हर नर, हर नारी,
हर मजदूर, हर किसान,
हर मेहनतकश, हर जवान,
हर औरत, हर नौजवान,
मुझे अच्छा लगता है।

मादरे वतन की आजादी की खातिर
दर-दर भटकता,
फांसी को चूमता,
ऐशो आराम छोड़ने वाला,
सब कुछ कुर्बान करने वाला,
हर जफर, हर लक्ष्मी,
हर नाना, हर तात्या
हर बिस्मिल, हर अशफाक
हर शहीद-ए-आजम,
हर आजाद,
हर “मारो फिरंगी को”,
हर “दिल्ली चलो”,
हर “करो या मरो”
हर “इंकलाब जिंदाबाद”
मुझे अच्छा लगता है।

अपने भाई से, बाप से,
परिवार से, समाज से,
पगपग पर अपने हकों के लिए
सवाल दर सवाल करती,
जुल्मों के पंजों से लड़ती,,,,
हर मां, हर बहन,
हर बेटी, हर पत्नी,
हर औरत का लड़ना,
मुझे अच्छा लगता है।

दहेज के दानवों के खिलाफ f.i.r. करती,
बेमेल विवाह से इंकार करती,
दहेजी भेडियों-भेडिनों से
संग्राम करती,जद्दोजहद करती,,,
हर निशा, हर फरजाना,
हर सरिता, हर रिहाना और
दुल्हन का दूल्हे के घर
बारात लेकर जाने का मंजर
मुझे अच्छा लगता है।

सदियों पुराने झूठ से, मक्कारी से
जुल्म से, अन्याय से, मेहकूमी से,
जूझता हुआ, जद्दोजहद करता हुआ,,,,,
हर फंदा, हर मकतल
हर जुनून, हर ख्वाहिश
हर शपथ, हर सौगंध
हर कसम, हर वचन
मुझे अच्छा लगता है।

फिरकापरस्ती से, जातिवाद से
न्याय को लीलते भ्रष्टाचार से,
दुनिया को गुलाम बनाते
आतंकवादी साम्राज्यवाद से लड़ता,,,,
हर स्वर, हर प्रण
हर आवाज, हर कोशिश
हर बज्म, हर मंच
हर रंग, हर परचम
मुझे अच्छा लगता है।

मानव की मुक्ति का,
बराबरी का, भाईचारे का,
इसरार का, इकरार का,
इंसाफ का, इंकलाब का,
उद्घोष करने वाला,,,,
हर गीत, हर गाना,
हर गजल, हर तराना,
हर झंडा, हर नारा,
हर हुजूम, हर धरना,
हर सोच, हर सपना,
मुझे अच्छा लगता है।

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