मंजुल भारद्वाज
साम,दाम,दंड,भेद से प्राप्त
सत्ता पर बैठने वाला
हरेक सत्ताधीश
सत्ता पर बैठने से पहले
ईश्वर की शपथ लेता है
विधि,विधान,संविधान के अनुसार
जनकल्याण का उदघोष करता है
ईश्वर का अर्थ है
ई ईमान
स सत्य
व विवेक
र रहम
सत्ता पर बैठते ही सत्ताधीश
ईमान को दरबार के
बाहर टांग देते हैं
सत्य और विवेक को
वनवास भेज देते हैं
रहम को अपनी सत्ता से
हर पल रौंदकर
जनता को भयाक्रांत करते हैं
ईश्वर के नाम पर
यह पाखंड सदियों से
आज तक चलता आया है
ना ईश्वर अपने होने को
सिद्ध करता है
बार बार डंका बजता है
पाखंडी सत्ताधीश का
ना जनता मनुष्य होने का
अधिकार सुनिश्चित करती है
पाखंडी सत्ता के नगाड़ों के शोर से
अंधे गह्वर में
वनवास काट रहे
सत्य और विवेक को
ढूंढ रहा हूँ मैं
अपने अंतर्मन में!
मैं ईश्वर की शपथ लेता हूँ!
