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काश पैरंट्स लड़कों को बचपन से नियम कायदे सिखाना शुरू कर दें

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नमिता जोशी

पिछले दिनों एक जानकार के घर में एक ऐसा नजारा देखा तो फौरन अपनी नानी याद आ गई। जानकार की बेटी बैडमिंटन खेलकर आई और हमारे साथ चेयर में धम्म से बैठ गई। थक कर आई थी तो पैर फैलाकर बैठ गई और मम्मी को गुस्सा आ गया। कैसे शोर करके बैठती हो? ठीक से बैठो, जेंडर अप्रोप्रिएट (अपने जेंडर के हिसाब से) बिहेव करो। यानी लड़कियों की तरह व्यवहार करो। बच्ची के चेहरे पर गुस्से का भाव था क्योंकि एक तो उसे यह पसंद नहीं आया कि उठने-बैठने से जेंडर का क्या लेना-देना और दूसरा मेहमानों के सामने ये ताना झेलना पड़ा।

हम में से अधिकतर महिलाएं जानती होंगी लेकिन एक बार जरा समझें कि आखिर ये जेंडर अप्रोप्रिएट बिहेवियर से क्या मतलब है बच्ची की मम्मी का। तो अगर आपका जेंडर फीमेल है यानी अगर आप लड़की के रूप में पैदा हो ही चुकी हैं तो आपके लिए जन्म से लेकर मरने तक के नियम कायदे तय किए गए हैं। सबसे पहले तो इसी बात की खुशी मना लीजिए अगर आपके पैदा होने पर आपका परिवार खुश हुआ था। ये उनकी ऊंची सोच थी कि आपके जन्म पर जश्न मनाया गया था तो इस बात का अहसान मनाइए। लेकिन चूंकि आप हैं तो लड़की ही, तो आपको बचपन से लक्ष्मी आई है लक्ष्मी आई है बोल कर देवी का दर्जा दिया जाएगा। वैसे तो इंसान गलतियों का पुतला है कहा जाता है, लेकिन वह आपके लिए लागू नहीं है। आप देवी हैं तो आपसे उम्मीद है कि आप बिल्कुल देवियों जैसा व्यवहार करेंगी। आप पर पूरे खानदान की इज्जत को संभालने का बोझ है तो उस खानदान की नाक की खातिर न तो आप ऊंचा बोलेंगी, ना किसी से बहस करेंगी। अरे ऐसे कैसे जोर जोर से हंसने लगी? हर बात का जवाब क्यों देने लगती हो? लड़कियां ऐसे नहीं बोलतीं। और ये क्या, पूरे कपड़े पहन कर आओ। बड़ी हो गई हो ये फ्रॉक या स्कर्ट पहनने के दिन गए अब तुम्हारे। स्कूल आते जाते कोई लड़का देखेगा तो क्या सोचेगा? फिर शिकायत करोगी कि छेड़ दिया। लड़कों की नजर में पड़ना ही क्यों है। चुपचाप स्कूल जाओ और आओ। और हां, रोड में चलते वक्त शरीफ लड़कियां पीछे मुड़कर नहीं देखतीं। पढ़ने भेजा है, लेकिन शादी के बाद पढ़ाई या नौकरी करनी है या नहीं ये तुम डिसाइड नहीं करोगी, समझी ना? हमने पढ़ा लिखा दिया है, बाकी ससुराल वाले जानें कि तुम्हें क्या करना है। और खाना पकाना तो सीख लो, वरना हमारी नाक कटवा दोगी ससुराल में कि लड़की को ये तक नहीं सिखाया।

हैरानी की बात ये है कि लड़कियों के लिए बनाए गए दादी और नानी के जमाने के नियम कायदे आज भी घरों में कायम है। हालांकि अधिकतर घरों में लड़का या लड़की के बीच भेदभाव की खाई भर चुकी है लेकिन अब भी इनमें से कई कायदे सिर्फ लड़कियों के लिए हैं। घर का काम सीखने में कोई बुराई नहीं, अपने आसपास के लोगों से तमीज से बात करना भी सामान्य सामाजिक व्यवहार है, लेकिन फिर ये सब जेंडर अप्रोप्रिएट कैसे हुआ? लड़कियों के लिए बने सारे नियम लड़कों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए बनाए गए लगते हैं। अगर ये सब नियम जरूरी हैं तो फिर लड़कों के लिए क्या बस यही नियम है कि लड़के रोते नहीं, मर्द को दर्द नहीं होता वगैरह। लड़कों को बचपन से ये नियम कौन सिखाएगा कि बेटा घर से बाहर निकलकर दोस्तों के बीच मां बहन की गालियां मत देना, दूसरी लड़कियों से इज्जत से बात करना, उन्हें छेड़ना मत, उनकी मर्जी का खयाल रखना, कभी किसी लड़की से बदतमीजी या ज्यादती मत करना। घर का काम करना सीखना ताकि अपनी जिंदगी आसान हो सके। काश पैरंट्स लड़कों को बचपन से नियम कायदे सिखाना शुरू कर दें तो लड़कियों का जीवन आसान और खुशहाल हो सकता है।

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