भोपाल। प्रदेश में कई ऐसे विभाग हैं, जिनमें विभागीय अफसरों के हाथों में ही संचालक पद की कमान होती थी। इनमें इंजीनियरिंग, शिक्षा और उद्यानिकी जैसेे संस्थान प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। सरकारों ने धीरे -धीरे इन पदों पर अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों का पदस्थ करना शुरु कर दिया जिससे विभागीय अफसरों का हक तो मार ही जा रही है, साथ ही कामकाज भी प्रभावित होने लगा है। इसकी वजह है इन अफसरों को विभाग की पूरी जानकारी ही नहीं होती है। ऐसे में वे विभाग को अपने अनुसार चलाते हैं। इस परंपरा की शुरुआत शिव सरकार में की गई थी , जिसे अब भी आगे बढ़ाया जा रहा है। हालत यह है कि आईएएस के साथ ही आईएफएस अफसरों तक को दूसरे विभागों की कमान सौंपी जाने लगी है। इसकी वजह से अब हालत यह हो गई है कि अधिकांश विभागीय संचालक के पदों पर आईएएस अफसरों ने कुंडली मार ली है।
यहां तक जल संसाधन में ईएनसी के पद पर भी आईएएस अफसर को बिठा दिया गया है। इसकी वजह से अब व्यवस्था लडख़ड़ाने की आशंका बन चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में मप्र के दौरे पर 25 दिसंबर को खजुराहो आए थे। खजुराहो में मोदी ने केन-बेतवा लिंक परियोजना की आधारशिला रखी। हाईकोर्ट के आदेश के चलते जल संसाधन विभाग के प्रभारी ईएनसी शिरीष मिश्रा को हटाकर आईएएस अधिकारी एवं जल संसाधन विभाग के सचिव जॉन किग्सली को प्रधानमंत्री की यात्रा के चलते एक दिन के लिए विभाग का ईएनसी बनाया था, लेकिन अब उन्हें परमानेंट ईएनसी की जिम्मेदारी सौंप दी गई है। इसके पहले वे एनवीडीए के सचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जल संसाधन विभाग में तत्कालीन समय में प्रमुख सचिव और एसीएस रहे राधेश्याम जुलानिया के समय विभागीय स्तर पर आखिरी सचिव तिलकराज कपूर हुआ करते थे। इसके बाद से इस पद पर आईएएस अधिकारी अपर सचिव और उप सचिव के रूप में काम करने लगे हैं। यानि संवर्ग में स्वीकृत ईएनसी के पदों में से एक अधिकारी को विभाग का सचिव बनाया जाता रहा है। लेकिन अब इस पद पर आईएएस का कब्जा हो गया है। मप्र में कृषि संचालक का पद विभागीय अधिकारों के पास सालों से रहा है। विभाग में आखिरी संचालक डॉ. जीएस कौशल थे। इसके बाद सरकार ने संचालक की जिम्मेदारी आईएएस अधिकारियों को देना प्रारंभ कर दी। पहले संचालक आईएएस मोहन मौना रहे, इसके बाद प्रीती मैथिल और अब अजय गुप्ता संचालक बने हुए हैं।
सीटीई में भी इंजीनियर नहीं… नाम भी बदला
राज्य सरकार ने निर्माण कार्यों में होने वाली गड़बडिय़ों की जांच के लिए 1980 में मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) का गठन किया था। इसमें ईएनसी अथवा चीफ इंजीनियर स्तर का अधिकारी सीटीई हुआ करता था। आखिरी सीटीई सीपी अग्रवाल थे। उसके पहले एनके कश्यप रहे। लेकिन सरकार ने इसका नाम बदलकर गुणवत्ता परिषद कर दिया और पूर्व आईएएस अशोक शाह को इसकी कमान सौंप दी। इसके बाद सीटीई पूरी तरह बर्बाद हो गया। अब निर्माण कार्यों की जांच के लिए इंजीनियर तक नहीं हैं। यहीं स्थित मप्र प्रदूषण मंडल की है। यहां सदस्य सचिव और चेयरमैन का पद वैज्ञानिक अथवा विशेषज्ञ के लिए निर्धारित है, लेकिन 9 साल से चेयरमैन सहित सदस्य सचिव के पद पर आईएएस अफसरों का कब्जा है। जिसके चलते प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई के नाम केवल खानापूर्ति की जा पर रही है।
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