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हड्डी टूटी तो क्या, संविधान दधीचि के लिए बोलूंगा

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उजड्ड भाषा में बाबा साहब के लिए संसद में बदतमीजी की गई

कनक तिवारी 

सोचना, लिखना, पढ़ना, बोलना हाथ की चोट की वजह से बंद है। लेकिन उजड्ड भाषा में बाबा साहब के लिए संसद में बदतमीजी की गई। उससे विद्रोह होना लाज़िमी है। संविधान निर्माण में अम्बेडकर को अपना हीरो मानता रहा हूं। वे नहीं होते तो तीन बरस में करीब तीन सौ सदस्यों को लेकर नब्बे हज़ार शब्दों का दुनिया का सबसे बड़ा आईन बन ही नहीं सकता था। गांधी की भविष्य दृष्टि ने अम्बेडकर को ऐतिहासिक भूमिका सौंपने की पेशकश की। अम्बेडकर ने भारतीय अवाम और इतिहास का चेहरा उजला किया। 

गृह मंत्री अमित शाह बहुत पढ़े लिखे बौद्धिक हैं ऐसा कहने का मैं अपराध नहीं कर सकता। राजनीति के शिखर और शिखर की राजनीति में कई हुए जिनसे बौद्धिकता का छत्तीस का रिश्ता रहा है। गांधी को चतुर बनिया कहना, कभी बाबा साहब के नाम को चिढ़ाने की शैली में रटकर अवाम के जख्मों पर नमक छिड़कना ओछी हरकतें हैं। थोड़ी सी बातें ही बता रहा हूं जिन्हें गृह मंत्री को जानना चाहिए और उनके समर्थकों को भी। ज्यादा विस्तार से फिर कभी। 

13 दिसम्बर 1946 को नेहरू ने संविधान सभा में उद्देशिका संबंधी असाधारण भाषण दिया। सभा में बाबा साहब पहले और अकेले मुखर थे जिन्होंने कहा मैं पंडित नेहरू को समाजवादी मानता था। उनके भाषण में समाजवाद नाम का शब्द तक नहीं आया। नेहरू ने अपने भाषण में देश में रिपब्लिक लाने की बात कही है लेकिन डेमोक्रेसी शब्द कहां है? नेहरू ने समझाया हालात ऐसे हैं कि मुझे कुछ शब्दों को लिखने से परहेज़ करना होगा। आप जान लें। यह इशारा धन्नासेठों, काॅरपोरेटियों, उद्योगपतियों और रजवाड़ों की तरफ था। वे या तो कांग्रेस के सदस्य थे या कांग्रेस की पीठ पर सवार थे। विवशताएं भी कभी कभार इतिहास निर्माण में खलनायकी अदा करती हैं। यह जानकर भी सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने 9 जजों की बेंच के फैसले में जानबूझकर अम्बेडकर के कई उद्धरणों को नहीं लिखा। उनके बिना वे अम्बेडकर को समाजवाद विरोधी बताने की घिनौनी कोशिशों में निजी उद्योगपतियों और भूमिपतियों की संपत्तियों को पाने के लिए गोल मोल भाषा में खारिज करने लायक फैसला कर तो गए। असहमति के फैसले जस्टिस नागरत्नमा और सुधांशु धूलिया ने देकर संविधान को जिन्दा रखा। 

कई अम्बेडकर समर्थक नहीं जानते बाबा साहब ने निजी राय को लोकमत के प्रहरी होने के कारण बहुमत के सामने जज़्ब कर लिया। बाबा साहब ने प्रेस की आजादी को मूल अधिकारों में शामिल करना चाहा था। बहुमत ने नहीं माना। कद्दावर काठी का प्रज्ञापुरुष उनसे भी मन मारकर सहमत हुआ। बाबा साहब ने कहा था सरकार जुल्म करे तो अमेरिका वगैरह के ‘ड्यू प्रोसेस आॅफ लाॅ‘ के आधार पर ही आदेशों का परीक्षण हो। संविधान सलाहकार बी. एन. राव ने भांजी मारी और आखिर अनुच्छेद 19 में ‘प्रोसीजर प्रिस्क्राइब्ड बाई लाॅ‘ लिखा गया। इससे भारत के नागरिकों की आज़ादी संविधान में खंडित हो ही रही है। हर नागरिक की हर टीस अम्बेडकर को याद कर रही है। समान नागरिक संहिता को लेकर नेहरू, मौलाना आज़ाद, पंत, पटेल चुप रहे थे। बाबा साहब ने कहा नागरिक संहिता होनी चाहिए लेकिन उनकी सलाह लेकर जो इससे प्रभावित होकर नुकसान उठा सकते हैं। उन्होंने मुस्लिम कठमुल्लापन को भी कभी माफ नहीं किया। संविधान का प्राथमिक प्रारूप रखते 4 नवम्बर 1948 को बाबा साहब ने जो कहा था। हिन्दू मुस्लिम के सवाल पर भारतीय जनता पार्टी बाबा साहब को समर्थन देगी? उन्होंने कहा था अल्पसंख्यकों ने बहुसंख्यकों के हाथ में अपनी किस्मत सौंप दी है। यह बहुमत राजनीतिक नहीं है। यह सांप्रदायिक बहुमत है। अल्पसंख्यक अवाम पर अत्याचार होता रहा तो एक दिन ये विस्फोट भी कर सकते हैं। 

अपने अंतिम भाषण में 25 नवम्बर 1949 को अम्बेडकर ने दो टूक कहा था मैं तथाकथित राष्ट्रवाद की थ्योरी के खिलाफ हूं। जो लोग अपने को ‘भारत के लोग‘ कहने के बदले ‘भारतीय राष्ट्र‘ कहते हैं। यह एक वहम है। जिस देश में हजारों तरह की जातियां हैं। वह एक राष्ट्र कैसे हो सकता है? याद रहे अम्बेडकर अकेले थे जिन्होंने देश की भाषा के सवाल पर भी कहा था कि हमें तुरंत हिन्दुस्तानी को एक बारगी केन्द्र और राज्यों की दोनों की भाषा बना देना चाहिए। यह उन्होंने अपने प्रसिद्ध नोट 19 अप्रैल 1947 में कहा था। साफ कहा था अम्बेडकर ने काले कोट में लकदक पांच छह जज बंद कमरे में बैठकर सरकारी फैसला बदल दें या मंत्रिमंडल अवाम जो जनता के खिलाफ गैर मुनासिब फैसला करे। लोकतंत्र को प्रमुख बताते हुए उन्होंने कहा था एक तरफ कुआं है दूसरी तरफ खाई। 

अम्बेडकर को संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाना उन पर अहसान नहीं था। वह एक तरह की ऐतिहासिक निर्विकल्प अनिवार्यता थी। असहमत सदस्यों हरिविष्णु कामथ, पंजाबराव देशमुख, ए. के. सिधवा, ठाकुर दास भार्गव, के. टी. शाह, हृदयनाथ कुंजरू और बाकी के लिए भी कहा था बाबा साहब ने कि वे नहीं होते तो संविधान सभा जी हुजूरी का अड्डा बन जाता। आज जिस तरह भाजपाई कांग्रेस को कोस रहे हैं। उस लिहाज़ से पढ़ें कि बाबा साहब ने क्या कहा था कि संविधान बना। इसमें मुझे कांग्रेस पार्टी की पूरी मदद मिली। उनके कारण संविधान सभा में अनुशासन था और इस कारण ही संविधान बनाना मुमकिन हो सका। उन्होंने कोई लाग लपेट नहीं की लेकिन किसी की पीठ पर छुरा नहीं मारा। अम्बेडकर के लिखे शब्द इतिहास की रोशनी हैं। ऐसा नहीं कि उनसे गलतियां नहीं हुईं। हिमालय पर्वत जैसे वजनदार काम को उठाने के लिए मर्द कद काठी की ज़रूरत होती है। गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में वे तिफ्ल क्या गिरें जो घुटनों के बल चलें। आदिवासियों की समस्याओं और गांधी की आलोचना को लेकर गलतियां हुईं। 

अमित शाह को कुछ तो पढ़ लेना चाहिए था। भले ही एंटायर पाॅलिटिकल साइंस की डिग्री नहीं ली। आसमान की ऊंचाई में सितारों की तरह टंके बाबा साहब की ओर देखकर थूकने की हर कोशिश याद करे गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत होता ही है। अम्बेडकर के नाम की तोतारटंत भाजपा सबसे ज़्यादा करती है। अंदर ही अंदर उनकी आत्मा कचोटती होगी क्या करें वोट बैंक का सवाल है। अम्बेडकर ने अपनी निजी राय में संविधान सभा में जो कहा था अगर उस वक्त के कांग्रेसी बहुमत ने मान लिया होता तो आज भारत दुनिया में बहुत जागरूक लोकतंत्र होता। यही वजह है कि कुछ बरस बाद अम्बेडकर ने तल्ख होकर कहा था कि मेरा बस चले तो इस संविधान को जला दूं। वे अपनी विवशता की भूमिका से भी परिचित थे। प्रज्ञापुरुष ऐसे ही होते हैं। यह उनका प्रस्ताव था कि भारत किसी एक धर्म का संघ नहीं होगा। लेकिन इसे उपसमिति ने नहीं लिखा। 

तुम आधुनिक बुद्ध हो बाबा साहब! तुम 21वीं शताब्दी का धु्वतारा हो! संविधान की तुम्हारी अवामपरस्त रोशनी में मैंने अपनी बौद्धिक हैसियत निछावर कर दी है बाबा साहब। जब-जब जम्हूरियत को सांप्रदायिकता का अंधेरा ओढ़ेगा तुम साथ आओगे किसी समुद्र के लाइट हाउस की तरह। याद रहे इतिहास को जिस दिन बाबा साहब के समर्थक और अनुयाई कुचले हुए लोग दलित गरीब आदिवासी और वंचित 5 किलो अनाज का मोह छोड़कर उठ खड़े होंगे। उस दिन लोकतंत्र में भारत के इतिहास में एक जलजला आएगा। वही लोग डरकर आज संसद में बाबा साहब को कोस रहे हैं। साम्प्रदायिकता संविधान और बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाओं को सुरसा की तरह लीलना चाहती है। 

बहरहाल बिस्तर पर पड़े पड़े मैं बाबा साहब की अभ्यर्थना कर रहा हूं। वीर पूजा की भाषा में नहीं। एक महान अकादेमिक संविधानविज्ञ, भविष्यद्रष्टा ऐतिहासिक भारतीय की नम आंखों से याद करते हुए।

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