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अगर कोई किसी फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ आवाज उठाएगा तो सरकार उसे जेल में डाल देगी

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अगर कोई भी किसी फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ आवाज उठाएगा तो सरकार उसे जेल में डाल देगी. अब पुलिस जितने मुसलमानों को चाहे गोली से उड़ा सकती है. सिर्फ मुसलमान ही नहीं दलितों, आदिवासियों, आंदोलन करने वाले किसानों-मजदूरों पर गोलीबारी करके सरकार उनकी हत्या कर सकती है. अब आप आवाज नहीं उठा पाएंगे. ऐसा मैं किसी कल्पना से नहीं कह रहा हूं. बल्कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने ऐसी एक अर्जी दी है.

इस अर्जी में सरकार की तरफ से की गई मांग इतनी खतरनाक है, अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सरकार को अपनी सहमति दे दी तो भविष्य में कभी भी सरकार द्वारा किये गये किसी भी फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ कभी कोई अदालत में शिकायत नहीं कर पाएगा.

इस अर्जी में भारत के जितने भी हाईकोर्ट हैं, उनमें जिन लोगों ने भी सरकार द्वारा किए गए फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ याचिका दायर की हैं, उन सभी आवेदकों के खिलाफ एफआईआर करने यानी गिरफ्तार करने और जांच करने की इजाजत मांगी गई है. यह मांग मेरे द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ दायर की गई एक याचिका के संदर्भ में की गई है.

असल में हुआ क्या था ?

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के गांव गोमपाड़ में सिपाहियों ने 16 आदिवासियों की हत्या कर दी थी. आदिवासी मेरे साथ दिल्ली आए थे और हमने घटना की जांच की मांग करते हुए यह याचिका दायर की थी. जवाब में सरकार का कहना है कि इस तरह की याचिकाएं सिपाहियों का मनोबल तोड़ने और सरकारी कार्यवाही को रोकने के लिए आतंकवादियों की तरफ से की जाती है. सरकार झूठ बोल रही है

हमारे द्वारा उठाया गया एक भी मामला आज तक झूठा नहीं पाया गया. हमारे द्वारा जितनी भी याचिका डाली गई उनमें से कई में जांच के नतीजे सामने आ चुके हैं. सरकार ने कहा ‘सारकेगुड़ा में हमने 17 माओवादियों को मुठभेड़ में मारा है.’ न्यायिक आयोग ने अपनी जांच में फैसला दिया कि मारे गए सभी लोग निर्दोष नागरिक थे, जिसमें 9 बच्चे भी थे.

एड्समेट्टा में भी सरकार ने कहा हमने माओवादियों को मुठभेड़ में मारा है. जबकि न्यायिक आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि ‘मारे गए लोग पुलिस की गलती से मारे गए थे.’ माटवाड़ा में पुलिस ने कहा ‘माओवादियों ने शिविर के भीतर आकर तीन आदिवासियों की हत्या कर दी है.’ हमने मामला अदालत में दायर किया बाद में उस मामले में तीन पुलिसवाले जेल गए. पुलिस ने ही हत्या की थी.

सिंगारम में सिपाहियों ने 19 आदिवासियों की हत्या कर दी थी. उस मामले को हमने कोर्ट में उठाया. सरकार ने सजा के तौर पर हमारे आश्रम पर बुलडोजर चला दिया था.  राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह मुठभेड़ फर्जी थी. सिपाहियों द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ की गई बलात्कार की शिकायतों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट आई कि ’16 महिलाओं के साथ बलात्कार प्राथमिक साक्ष्यों से साबित हो रहा है.’ हम कभी झूठ नहीं बोलते सरकार हर बार झूठ बोलती है.

मतलब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

2010 में भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मुझे माओवादी कहा. तब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई थी. 2016 में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मुझ पर और सोनी सोनी पर झूठा मुकदमा करने की सजा के तौर पर जुर्माना लगाने की मांग की थी. कोर्ट ने तब भी सरकार की बात नहीं मानी थी. अब सरकार तीसरी बार कोर्ट में हमारे खिलाफ एफआईआर करने और जांच करने की मांग लेकर गई है.

लेकिन इस मामले पर कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है, यह बहुत चिंताजनक हालत है. क्योंकि सरकार सुप्रीम कोर्ट से जो मांग कर रही है वह सिर्फ मेरे खिलाफ नहीं है बल्कि यह भविष्य में किसी भी फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ उठने वाली हर एक आवाज को दबाने के बारे में सरकार को अधिकार दे देने के बारे में है.

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