अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

अमेरिका में अगर वो नहीं जीते, तो देश का भविष्य अंधकारमय 

Share

सत्येंद्र रंजन

अमेरिका में कल, मंगलवार- पांच नवंबर- को अगला राष्ट्रपति चुनने के लिए मतदान होगा। वैसे वोट हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव (कांग्रेस यानी संसद के निचले सदन) और सीनेट (ऊपरी सदन) के एक तिहाई सदस्य, तथा कई राज्यों में गवर्नर एवं विधायिकाएं चुनने के लिए भी डाले जाएंगे।

मगर दुनिया की निगाहें स्वाभाविक रूप से राष्ट्रपति चुनाव पर टिकी हुई हैं, जिसको लेकर अब तक धुंध नहीं छंटी है। 

अगर दर्जनों सर्वे एजेंसियां चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षण में जुटी हुई हों और सब अलग-अलग (संभवतः अपने राजनीतिक रुझान से प्रभावित होकर भी) अनुमान जता रही हों, तो जाहिर है, उनसे कोई संकेत मिलने के बजाय स्थिति और भ्रामक बन जाती है।

वैसे भी इन एजेंसियों का हालिया रिकॉर्ड भी ऐसा है, जिसकी वजह से उनके अनुमानों को लेकर अविश्वास बने रहना लाजिमी है। फिर अपने को ‘चुनाव गुरु’ बताने वाले अनेक विश्लेषक हैं, जिनके अनुमानों में भी मेल नहीं है। ऊपर से सट्टा बाजार है, जहां सुबह से शाम के बदलते तापमान की तरह अनुमान बदलते रहे हैं। 

फिर भी हमारे पास ये ओपिनियन पोल और विश्लेषकों के अनुमान ही वो उपलब्ध स्रोत हैं, जिनसे हम (भारतीय समय के अनुसार) बुधवार सुबह सामने आने वाले चुनाव परिणाम के बारे में कुछ अंदाजा लगा सकते हैं।

(वैसे चुनाव परिणाम जाहिर होने में इस बार देर भी हो सकती है। वजह यह है कि सात करोड़ से अधिक मतदाता डाक से अथवा ड्रॉप-इन बॉक्सों में मतपत्र गिरा कर मतदान कर चुके हैं। उनकी गणना में अधिक समय लग सकता है। उधर कानूनी चुनौतियां दी गईं, तो परिणाम की घोषणा में देर होगी। अनुमान है कि नौ से दस करोड़ और मतदाता मंगलवार को वोट डालेंगे।) 

realclearpolitic.com एक ऐसी वेबसाइट है, जो सभी सर्वेक्षणों को विस्तार से और फिर उनके निष्कर्षों का औसत पेश करती है। औसत के आधार पर वह दोनों दलों को इलेक्ट्रॉल कॉलेज में मिल सकने वाली सदस्य संख्या का अनुमान लगाती है। उसके मुताबिक, 

  • सात बैटल ग्राउंड राज्यों में से पांच में डॉनल्ड ट्रंप आगे हैं। ये राज्य हैः एरिजोना, नेवाडा, पेनसिल्वेनिया, नॉर्थ केरोलीना और जॉर्जिया। दो बैटल ग्राउंड राज्यों- विस्कोंसिन और मिशिगन में कमला हैरिस को बढ़त मिली हुई है। लेकिन सातों राज्यों में से कहीं भी ये बढ़त मार्जिन ऑफ एरर (गलत अनुमान के दायरे) से ऊपर नहीं है। यानी हर जगह अनुमान गलत होने की संभावना बनी हुई है।

(बैटल ग्राउंड या टॉस अप या स्विंग स्टेट उन राज्यों को कहा जाता है, जहां हाल के चुनावों में रुझान बदलता रहा है। बाकी राज्यों में एक ट्रेंड स्थापित है, जहां से डेमोक्रेट या रिपब्लिकन की जीत तय मानी जाती है।)

  • realclearpolitic.com के मुताबिक नतीजे उपरोक्त अनुमानों के मुताबिक ही आए, तो 538 सदस्यों वाले इलेक्ट्रॉल कॉलेज में ट्रंप के समर्थक 287 सदस्य आ जाएंगे और इस तरह वे राष्ट्रपति चुन लिए जाएंगे। उस अवस्था में हैरिस समर्थक 251 सदस्य ही जीत पाएंगे।
  • वैसे realclearpolitic.com ने अपना अनुमान टॉस अप राज्यों को छोड़ कर लगाया है। उसके मुताबिक ट्रंप समर्थक 219 और हैरिस समर्थक 211 सदस्यों का जीतना तय है। 108 सदस्य टॉस अप राज्यों के हैं। अमेरिकी चुनाव प्रणाली के मुताबिक किसी राज्य में जिस पार्टी को सबसे ज्यादा वोट मिलें, इलेक्ट्रॉल कॉलेज के लिए वहां की सभी सीटें उस पार्टी को मिल जाती हैं। बाकी उम्मीदवारों को शून्य सदस्य मिलते हैं। (सिर्फ दो राज्य- माइन और नेब्रास्का इसका अपवाद हैं, जहां मिले वोट के अनुपात में दलों को सदस्य आवंटित किए जाते हैं) 
  • सर्वे रिपोर्टों के आधार पर अनुमान लगाने वाली एक अन्य वेबसाइट fivethirtyeight.com है। उसके अनुसार ट्रंप के जीतने की संभावना 53 प्रतिशत है। जाहिर है, इस वेबसाइट के मुताबिक हैरिस की जीत की संभावना 47 फीसदी ही है। 
  • नेट सिल्वर को अमेरिका में चुनाव गुरु कहा जाता है। 2016 के पहले तक उनका सही भविष्यवाणी करने का अटूट रिकॉर्ड था। लेकिन 2016 वे गलत साबित हो गए, जब उनके अनुमान के विपरीत हिलेरी क्लिंटन को हराते हुए डॉनल्ड ट्रंप विजयी हुए। अब सिल्वर का अनुमान है कि राष्ट्रीय मतदान प्रतिशत में संभवतः हैरिस आगे रहेंगी, लेकिन इलेक्ट्रॉल कॉलेज में ट्रंप को जीत मिलने की संभावना अधिक है। 
  • नेट सिल्वर की गणना में कुल 11 राज्यों का परिणाम अनिश्चित है। सिल्वर के अनुमान के मुताबिक उन 11 में से आठ में ट्रंप आगे हैं। realclearpolitic.com ने जिन सात राज्यों को टॉस अप माना है, वे सिल्वर की सूची में भी हैं। उनके अलावा, टेक्सस, फ्लोरिडा, न्यू मेक्सिको और आयोवा राज्यों के परिणाम को भी उन्होंने अनिश्चित माना है, लेकिन उनका अनुमान है कि उनमें से न्यू मेक्सिको को छोड़ कर बाकी तीन राज्यों में ट्रंप को बढ़त मिली हुई है।
  • सट्टा बाजार में पूरे अक्टूबर को ट्रंप के जीत की संभावना 60 फीसदी से ज्यादा मानी गई। लेकिन चुनाव से चार दिन पहले वहां अचानक बदलाव आया। फिलहाल, सट्टा बाजारों में दोनों उम्मीदवारों की जीत पर लगभग बराबर का दांव लग रहा है।      

इस तरह इस बार दोनों पक्षों के पास अपनी जीत के दावे करने के लिए अपने माफिक चुनावी ‘भविष्यवाणियां’ मौजूद हैं। नतीजतन, तीखे ध्रुवीकरण एवं कड़वाहट भरे सियासी माहौल का शिकार इस देश में (भारतीय समय के अनुसार) छह नवंबर की सुबह जो चुनाव नतीजे आएंगे, उन्हें दोनों पक्ष सहज स्वीकार कर लें, इसकी संभावना लगातार घटती चली गई है।

गौरतलब है कि दोनों प्रमुख दलों, डेमोक्रेटिक एवं रिपब्लिकन, ने काउंटी (जिला) से लेकर राज्य स्तरों तक चुनावी नतीजों को चुनौती देने की व्यापक कानूनी तैयारियां की हैं।  

यह गौर करने की बात है कि अभूतपूर्व कड़वाहट भरे माहौल में चले चुनाव अभियान के बीच दोनों उम्मीदवारों, उप राष्ट्रपतिअगर वो नहीं जीते, तो देश का भविष्य अंधकारमय के बीच सिर्फ एक बात पर सहमति रही। वो यह कि अगर वो नहीं जीते, तो देश का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।

दोनों के प्रचार अभियान का सार है, ‘अमेरिका एक मोड़ पर है, और मेरी हार हुई, तो देश अभी जैसा नहीं रह जाएगा।’ इसी भावना से प्रेरित होकर दोनों पक्षों से बार-बार कहा गया है कि ‘पांच नवंबर हमारे देश के इतिहास का सबसे अहम दिन है।’ संदेश यह है कि ‘अगर मेरी जीत नहीं हुई, तो देश बर्बाद हो जाएगा।’

डेमोक्रेटिक पार्टी ने यह डर फैलाते हुए चुनाव अभियान चलाया है कि ट्रंप जीते, तो देश में लोकतंत्र का खात्मा हो जाएगा। इस पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस ने ट्रंप की तुलना हिटलर से की है और उनकी जीत के साथ फासीवाद के आगमन की चेतावनी दी है।

उधर ट्रंप ने बार-बार कहा है कि जो बाइडेन, कमला हैरिस ने अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है, अवैध आव्रजकों को बुलाकर अमेरिकियों की सुरक्षा एवं भविष्य को खतरे में डाल दिया है, विदेशों में अमेरिका की प्रतिष्ठा नष्ट कर दी है। ऐसे में हैरिस जीतीं, तो अमेरिका निश्चित रूप से तीसरी दुनिया का देश बन जाएगा।

ट्रंप और उनके समर्थक आज भी मानते हैं कि 2020 में उनकी जीत को डेमोक्रेट्स ने चुरा लिया था। अब उन्होंने चेतावनी दी है कि हैरिस जीतीं, तो उसके बाद देश में कभी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पाएगा।  

इन कथानकों ने देश में अविश्वास, टकराव और ध्रुवीकरण को अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा दिया है। वैसे तो 2016 के बाद से देश ऐसे ही राजनीतिक वातावरण में है, लेकिन इस बार दोनों दलों, डेमोक्रेटिक और रिपब्लकिन की तरफ से जैसा नकारात्मक चुनाव अभियान चलाया गया, उससे माना जा रहा है कि ये माहौल अब खतरनाक सीमा तक पहुंच गया है।

यह आशंका गहरी है कि पराजित पक्ष ना सिर्फ कानूनी स्तर पर, बल्कि सड़कों पर उतर कर भी चुनाव नतीजों को चुनौती दे सकता है। 

दरअसल, दूसरे पक्ष को देश के लिए खतरा और देश का दुश्मन बताते हुए अगर चुनाव अभियान चलाया जाए, तो में फिर किसी सकारात्मक बहस की गुंजाइश नहीं बचती। 20वीं सदी के मध्य दशकों में अमेरिका में राष्ट्रपति उम्मीदवारों के बीच टेलीविजन पर होने वाली सार्वजनिक बहस से देश और विदेश के लिए उनका एजेंडा सामने आता था।

मगर ताजा ट्रेंड यह है कि अब या तो बहस होती ही नहीं है, या फिर बहस तू तू-मैं मैं, बल्कि सियासी गाली-गलौच में तब्दील हो जाती है। इस बार की पहले बाइडेन-ट्रंप और फिर हैरिस-ट्रंप के बीच हुई बहसें इस बात की मिसाल हैं। 

ताजा माहौल का परिणाम है कि दोनों उम्मीदवारों को करोड़ों समर्थक प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार को देश का दुश्मन मानते हैं। उसकी जीत उनकी राय में देश के दुश्मन की जीत होगी। ऐसे में चाहे जो जीते, उसे करोड़ों लोग देश का दुश्मन समझेंगे। 

वैसे हकीकत यह है कि यह माहौल दोनों दलों के लिए सुविधाजनक है, क्योंकि दोनों ही प्रमुख पार्टियों के पास आज के गहराते आर्थिक संकट से अमेरिका को निकालने का कोई व्यावहारिक कार्यक्रम नहीं है। जब ऐसी स्थिति विमर्श का स्तर गिरना और आशंकाएं फैलाना उनकी सियासी रणनीति बन गई है। बढ़ता सामाजिक टकराव उसकी स्वाभाविक परिणति है। 

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें