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बुलडोजर पुराण : वो बोले, तो सब बोलेंगे कि बोलते हैं

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व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

भई ये विपक्ष वाले पीएम जी को समझते क्या हैं? लीजिए, अब नयी शिकायत लेकर आ गए। कह रहे हैं कि पहले हिंदू नव वर्ष, फिर राम नवमी, फिर हनूमान जयंती, जगह-जगह तलवारों के साथ जुलूस निकल रहे हैं, दंगे हो रहे हैं। अब तो दंगों का सिलसिला राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच गया। अब किस बात का इंतजार है? मुंह में दही जमाए क्यों बैठे हैं? पीएम जी कुछ बोलते क्यों नहीं हैं! अब भी नहीं, तो कब बोलेंगे, वगैरह-वगैरह। पर हम एक बात पूछते हैं। पीएम जी क्यों बोलें? नहीं हम यह नहीं कह रहे हैं कि बोलना पीएम जी का काम ही नहीं है। बोलना पीएम जी का काम है और बखूबी पीएम जी का काम है। गूंगा पीएम किस काम का? करना-धरना तो किसने देखा है, बोलना ही पीएम का असली काम है। हर उदघाटन में, हर सभा में, हर चर्चा में बोलना ही नहीं, हर महीने अपने मन की बात बोलना भी पीएम का काम है। बल्कि यही विरोधी तो आए दिन शिकायत करते आए हैं कि पीएम जी तो बस बोलने का ही काम जानते हैं। सवाल बोलने का नहीं है। सवाल है दूसरों के कहने से बोलने का। किसी और के और उस पर विपक्ष वालों के कहने से, पीएम जी क्यों बोलें? आखिर, डैमोक्रेसी के राजा हैं। मन करेगा, बोलेंगे। मन नहीं करेगा, नहीं बोलेंगे। डैमोक्रेसी में राजा जी को भी अगर मजबूरी में बोलना पड़ जाए, तो डैमोक्रसी ही कहां रह जाएगी!

और सिर्फ राजा जी के बोलने का मन करने, न करने की बात थोड़े ही है। कुछ बोलने के लिए भी तो होना चाहिए। बेचारे ने दिन में अठारह-अठारह घंटे काम कर के, आठ साल में इतनी मुश्किल में ऐसा बनाया है, ऐसा नया इंडिया जैसा सत्तर साल में पहले किसी ने नहीं बनाया था। बेचारों ने दिन-रात एक कर के ऐसा नया हिंदू धर्म बनाया है, जिसके लिए खतरा बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों छाती फुलाई उन्होंने। बेचारे ने देश-विदेश के लाखों ताने झेल-झेलकर, बनाया है ऐसा नया हिंदू, जिसे अपना हर त्यौहार किसी मस्जिद, किसी मुस्लिम मुहल्ले में जुलूस निकालकर, तलवार डांस कर के मनाना होता है। अब जब उनके प्रयत्नों से नया इंडिया बन गया है, तो पीएम जी को पागल कुत्ते ने तो काटा नहीं है कि विपक्ष वालों के कहने से, नये इंडिया के खिलाफ बोलने लग जाएंगे! वैसे भी जो नया इंडिया बनाने निकले हैं, छोटे-मोटे झगड़ों से डरकर कदम पीछे हटाने वाले नहीं हैं। विरोधी करते रहें कांय-कांय, वे तो इंडिया को नये से नया बनाते जाएंगे, इतना नया कि 2014 से पहले के इंडिया वाले तो पहचान भी नहीं पाएंगे। ये तो इब्तिदा ए इश्क है, विपक्ष रोता है, आगे-आगे देखिए होता क्या है!

पीएम जी कुछ सोच कर ही नहीं बोल रहे हैं। अपने नये इंडिया के खिलाफ बोलें, तो बोलें क्यों? पर बेचारे उसकी पीठ भी तो नहीं ठोक सकते। जो विपक्ष वाले नहीं बोलने पर इतना शोर मचा रहे हैं, पीएम जी के तलवार डांस की तारीफ के दो बोल बोलने पर तो आसमान ही सिर पर उठा लेंगे। और अमरीका-फमरीका वाले भी उनकी हां में हां मिलाने आ जाएंगे, सो ऊपर से। सो फिलहाल चुप ही भली। एक चुप, सौ बोलतों को हराए। वर्ना वो बोलेंगे तो विपक्ष वाले बोलेंगे कि बोलता है। फिर, यूपी से लेकर मप्र, गुजरात तक, नागपुरिया बुलडोजर तो बोल ही रहा है। जो काम बुलडोजर से हो जाए, उसके लिए पीएम अपना मुंह क्यों दुखाए!

बुलड़ोजर तो चलाने दो यारों!

सर्वोच्च अदालत की ये बात हमें बिल्कुल सही नहीं लगी। उसकी तरह जहांगीरपुरी भी दिल्ली में है‚ तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि जहांगीरपुरी में बुलडोजर नहीं चल सकता। अच्छा–खासा चलता हुआ बुलडोजर रुकवा दिया। उस पर इसकी धमकी और कि अगर अदालत के हुकुम के बाद भी‚ जान–बूझकर दो घंटे बुलडोजर चलाया होगा‚ तो देख लेना। अदालत की हुकुम उदूली बर्दाश्त नहीं की जाएगी!॥ सबसे बड़ी अदालत हुई तो क्या हुआ‚ इस तरह बुलडोजर की बेइज्जती नहीं करनी चाहिए थी। बोरिस जॉनसन साहब तो लंदन से दौड़े–दौड़े अहमदाबाद पहुंचे हैं‚ खुद बुलडोजर पर चढ़कर तस्वीर खिंचाने के लिए। पहले गांधी वाला चरखा चलाते हुए तस्वीर। उसके फौरन बाद‚ बुलडोजर उर्फ जेसीबी चलाते हुए तस्वीर। अब प्लीज ये मत कहिएगा कि जॉनसन साहब ने भी बुलडोजर चलाया कहां था‚ उन्होंने तो बस उस पर सवार होकर तस्वीर खिंचाई थी। चलाने को तो उन्होंने गांधी वाला चरखा ही कौन सा चलाया था। बात चलाने की नहीं‚ इज्जत देने की होती है। जिस बुलडोजर को ब्रिटिश पीएम तक ने इज्जत दी‚ हमारी अदालत को कम-से-कम उसे इतनी तो इज्जत देनी चाहिए थी कि उसके काम में अपनी टांग नहीं अड़ाती। वैसे भी बात सिर्फ बुलडोजर की इज्जत की नहीं है। बात है बुलडोजर न्याय की। अदालत ने ‘रोक दो‚ बंद कर दो’ का हुक्म देने से पहले क्या एक बार भी सोचा था कि इससे यूपी में‚ एमपी में‚ गुजरात में‚ उत्तराखंंड आदि-आदि में बुलडोजरों को क्या संदेश जाएगाॽ बुलडोजर अब न्याय कर ही नहीं सकते! पुलिस कहती रहे दंगाई‚ पर किसी के घर-दुकान पर बुलडोजर यूं ही नहीं चल सकते! बुलडोजर को भी न्याय करने के लिए अब किसी अदालत की इजाजत की प्रतीक्षा करनी होगीॽ तब तो हो लिया न्याय! सर्वोच्च अदालत है‚ इसलिए उसे खुद सोचना चाहिए कि वह कहीं पुराने भारत में ही तो नहीं अटका हुआ हैॽ वहां तक नया इंडिया पहुंचा ही नहीं लगता है। वर्ना यह जिद क्यों कि न्याय उसी को मानेंगे, जो अदालत करेगी। योगी जी का हो या मामा जी का‚ बुलडोजर के न्याय को न्याय ही नहीं मानेंगे। अदालत को बुलडोजर के रास्ते में नहीं आना चाहिए–बुलडोजर चलने के मूड में है‚ कहीं उसी पर न चल जाए!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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