सुबह की किरण फूटी ही थी कि अमेठी के जायस पहुंच गया। यह वही जायस है जिसके बारे में आखिरी कलाम में मलिक मोहम्मद जायसी खुद लिखते हैं —
जायस नगर मोर स्थानू
भा वैराग बहुत सुख पाऊँ
जायस कस्बा नीद जनित खुमारी से बाहर निकल रहा था,अलसाया सा। सूरज अपनी किरणों से जगा रहा था लेकिन घना कोहरा सूरज की राह में बाधा डाल रहा था। मलिक मोहम्मद जायसी जिस जगह पर पैदा हुए,वहां पर जाने के लिए तंग गली से होकर गुजरना पड़ता है।
जन्म स्थली के सामने एक ही परिसर में मस्जिद और इमामबाड़ा दोनों हैं। लाखौरी ईंटों के ध्वंसावशेष जन्म स्थली के चारों ओर बिखरे पड़े हैं। इसी में कहीं-कहीं पर आधुनिक रूप रंग के मकान भी हैं। इसी स्मारक के पीछे सफेद चूना लगा एक भवन है जो झारखंड के पूर्व राज्यपाल मोहम्मद रिजवी का है। जायसी ने हिंदी साहित्य को पद्मावत जैसा जगमगाता हीरा दिया। उनकी पैदाइश भूमि पर तत्समय में जो भी रहा हो,अब उसके निशान मिट चुके हैं। उनके स्थान पर स्मारक बन गया है।
वर्ष 1988 में लगा राजीव गांधी का शिलापट मौजूद है, पर उस पर लिखी बातें मिट रही है। स्मारक को पग पग पर सांस्कृतिक गौरव बोध हीनता जकड़े हुए हैं। महा कवि जायसी का परिचय देता हुआ तीन स्तंभ एक साथ लगे थे,लेकिन मौके पर सिर्फ हिंदी में लिखा ही बचा है। अन्य दोनों स्तंभ पर लिखी बातें पत्थर सहित गायब हैं। कई जगहों पर जूट के बोरे फैलाए गए थे और फर्श पर इतनी गंदगी बिखरी थी कि महसूस हुआ कि महीनों से यहां साफ सफाई नहीं हुई है। सोलर लाइट के दो बल्ब ही जल रहे हैं जबकि शेष दो खुद ही प्रकाश हीन हो चुके हैं। यूं ही बेखबरी रही तो जायसी के पैदाइश स्थल को भविष्य की पीढ़ी के लिए खोजना मुश्किल हो जाएगा…
उमेश का पन्ना की पोस्ट