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सत्ताधीशों के किले हैं , तो वे ढहेंगे भी…

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लेखक राकेश अचल

देश -दुनिया में दुर्ग यानि किले सत्ताधीशों के ही बनते आये है। लेकिन ये दुर्ग जब लोकतंत्र में सियासी दल भी बनाते हैं तो उन्हें ढहाने का उपक्रम भी लगातार चलता रहता है। सियासत के दुर्ग या तो राजनीतिक दल की विचारधारा के आधार पर बनाये जाते हैं या फिर व्यक्तित्व के आधार पर। आजादी के बाद यदि किसी राजनीतिक दल का सबसे मजबूत किला था तो वो था कांग्रेस का । लेकिन बाद में अधिकांश राजनीतिक दलों ने अपने-आपने इलाकों में किलों के बजाय छोटी-छोटी गढ़ियाँ बनाना शुरू कर दीं। आजकल देश में कहते हैं कि सबसे ज्यादा मजबूत किला भाजपा का है और उसे ढहाने में कांग्रेस समेत देश के तमाम छोटे-बड़े राजनीतिक दल लगे हुए हैं।
अतीत में झांके तो पाएंगे कि पहले सियासी किले अभेद्य हुआ करते थे। उनके ऊपर किसी भी तरह के हमलों का असर नहीं होता था ,क्योंकि ये किले विचारधारा की नींव पर खड़े किये गए थे। कांग्रेस,भाकपा,समाजवादी और दक्षिण पंथियों ने समय-समय पर अपने किले बनाये। इन किलों के जरिये देश में आरसे तक राजनीति भी खूब फली-फूली ,लेकिन जब किलों के ढहने का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर रुका नहीं। एक जमाने में जहाँ-जहँ कांग्रेस के किले थे वहां-वहां क्षेत्रीय दलों ने उनके ऊपर कब्जा कर लिया। ये क्षेत्रीय किले कहीं-कहीं कांग्रेस के साथ भी खड़े हुए और कहीं एकदम अकेले।
पश्चिम बंगाल में वामपंथ का किला 25 साल तक अभेद्य रहा। उसे कांग्रेस से अलग हुई तृणमूल कांग्रेस की संस्थापिका सुश्री ममता बनर्जी ने तोड़ा। दक्षिण के क्षेत्रीय किले तोड़ने के लिए कांग्रेस और भाजपा लगातार कोशिश करती रही ,लेकिन उन्हें ध्वस्त नहीं कर पायी। कर्नाटक में किले ढहाने और उन पर कब्जे करने का सनातन खेल जारी है। भाजपा ने 2014 में कांग्रेस के किले को ही नहीं ढहाए बल्कि कांग्रेस की गढ़ियाँ भी ध्वस्त कर दीं। लेकिन अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों के किले आज भी सुरक्षित हैं। मिसाल के तौर पर ओडिशा में बीजू जनता दल का किला। इन दिनों भाजपा का किला ढहाने के लिए कसबल लगाया जा रहा है। 2024 में भाजपा का किला ध्वस्त करने के लिए जगह-जगह सेंधमारी की जा रही है। कहीं कामयाबी मिल रही है और कहीं नहीं भी। दिल्ली और झारखण्ड कि किलेदारों को जेल की हवा भी खिला दी गयी है किन्तु ये किले यानि गढ़ियाँ जीती नहीं जा सकीं।
भाजपा का किला राम नाम की ईंटों से बनाया गया है अभी ये किला 44 साल पुराना ही है। इस किले को बनाने में राम जी बार-बार काम आये लेकिन इस बार भाजपा के किले की अनेक बुर्जों पर विरोधियों ने जमकर सेंधमारी की है। लोकतंत्र में सियासी किले ढहाने के लिए मतदान सबसे बड़ा जरिया है । वोट के बम किले की किसी भी बुर्ज को ध्वस्त कर सकते हैं और इन्हीं क्षतिग्रस्त बुर्जों से किले के भीतर जाने के रस्ते बनाये जानते हैं। सियासी किलों की मरम्मत और हमलों का काम हर पांच साल में होता है। इस साल भी किले फतह करने, किले कमजोर करने की कवायद चल रही है । पहले हमले में 102 ठिकानों पर जोर -आजमाइश हुई है। अभी इसी तरह के छह हमले और किये जाने है।
सियासी किले बचने के लिए साम-दाम-दंड भेद के सात गोधन,गजधन ,बाजधन और रतनधन के अलावा इलेक्ट्रोरल बांड से मिले धन का भी इस्तेमाल किया जाता है। बाहुबल अब गौण हो गया है ,हालाँकि बंगाल जैसे राज्यों में अभी भी ये बाहुबल भी प्रचलन में हैं। जिसके पास जितना ज्यादा धन होता है वो उतना ज्यादा ताकतवर माना जाता है। इस समय भाजपा धनबल के मामले में सबसे ज्यादा मजबूत है। उसकी अक्षोहणी सेना में संघ दीक्षित स्वयं सेवकों के साथ अंधभक्तों की तादाद दूर दलों के मुकाबले सबसे ज्यादा है। अंधभक्तों की टुकड़ी सबसे ज्यादा ताकतवर मानी जाती है ,क्योंकि इसे अपने राजा के अलावा कोई दूसरा सूझता ही नहीं।
मैंने अपने जीवन में अनेक मजबूत से मजबूत किले ध्वस्त होते देखे है। मैंने अनेक गढ़ियाँ बनते -बिगड़ते देखीं हैं। आपने भी देखी ही होंगीं लेकिन आपने शायद इनके बारे में ज्यादा गौर नहीं किया। जनता जनार्दन अक्सर इन किलों में या तो कैद रहती है या फिर अपने आपको महफूज महसूस कर इनसे बाहर नहीं निकलती। इन किलों में गरीबी परिवारों को पेट की आग बुझाने के लिउए मुफ्त का राशन और भाषण दोनों मिलता है । मनोरंजन के लिए रामधुन,आत्मशांति के लिए मंदिर की सुविधाएं भी मुहैया कराई जातीं है। कांग्रेस के किलों में मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा और गिरजाघर सब होते हैं। पहले इन्हीं सुविधाओं की वजह से कांग्रेस के किलों में ज्यादा लोग बसते थे । लेकिन बाद में कांग्रेस के किले में भगदड़ मची । हाल के दिनों में टोकांग्रेस का किला छोड़कर भाजपा के किले में लगे शरणार्थी शिविर में सबसे ज्यादा आमद दर्ज कराई है।
भाजपा की अपनी ताकत से किसी को इंकार नहीं है और होना भी नहीं चाहिये । लेकिन भाजपा इस बार अपना किला बिभीषणों के जरिये बचाये रखना चाहती है। भाजपा ने अपने शरणार्थी शिविरों में आने वाले कांग्रेसियों को सम्मान और सामान दोनों दिए है। उनके तमाम पाप क्षमा कर दिए हैं ,लेकिन बात बनती दिखाई नहीं दे रही। भाजपा को अपना किला महफूज बनाये रखने के लिए कम से कम 400 गढ़ियाँ चाहिए। इन्हें हासिल करने के लिए भाजपा ने हर नाजायज तरीके को जायज मानकर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। भाजपा को अपने दरबार के लिए जो नायब हीरे चाहिए वे जनता को ही चुनकर देना है। लेकिन चुनाव के पहले दौर में लक्षण अच्छे नहीं दिखाई दिए। आगे के छह चरणों में क्या होगा ,ये राम ही जानें ? मै राम की बात इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि भारत में एक दशक से सब कुछ राम के नाम पर ही हो रहा है। कभी-कभी भोले बाबा और योगाधीश कृष्ण का भी नाम लिया जाता है ,अभी राम का नाम सबसे ज्यादा चल रहा है।
हम तुलसी और कबीर के वंशज महासंग्राम के टीकाकार से ज्यादा कुछ नहीं है। हम ज्यादा से ज्यादा तुमुल ध्वनि कर सकते है। हमारी बिरादरी के कुछ लोग बाकायदा जिरह-बख्तर पहनकर भाजपा के लिए लड़ भी रहे हैं। किन्तु असल लड़ाई जनता लड़ रही ह। यदि कोई किला ढहता है या और मजबूत होता है तो इसका श्रेय किसी की गारंटी को नहीं बल्कि जनता की उदारता को दिया जाना चाहिए। अब देखिये आगे-आगे होता है क्या ?

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