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मंदी आई तो भारत भी बदहाली के खतरों से बच नहीं सकता

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नई दिल्ली: दुनिया के कई देशों में मंदी की आहट हर बीते दिन के साथ तेज हो रही है। यूरोपीय देशों के साथ अमेरिका, जापान और चीन जैसे देशों में मंदी की आशंका जताई जा रही है। कोरोना महामारी और उससे बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई थी। इसके बाद रही सही कसर रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी। ब्‍लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एशियाई देशों पर मंदी का खतरा कहीं ज्‍यादा बढ़ रहा है। अच्छी बात यह है कि भारत को मंदी के खतरे से पूरी तरह बाहर बताया गया है। लेकिन इस मुद्दे पर जानकारों की राय बंटी हुई है। कुछ जानकारों का कहना है कि अगर दुनिया खासकर अमेरिकी की इकॉनमी मंदी की चपेट में आती है तो भारत भी इससे बच नहीं सकता है। वहीं दूसरे जानकार मानते हैं कि दुनिया की मंदी भारत के लिए वरदान हो सकती है।

आर्थिक मामलों के जानकार और ईटी नाउ के कंसल्टिंग एडिटर स्वामीनाथन अय्यर का कहना है कि अगर दुनिया मंदी की चपेट में आएगी तो भारत पर भी उसका असर होगा। फेडरल रिजर्व इसी तरह इंटरेस्ट रेट बढ़ाता रहा तो इस साल के अंत में या अगले साल व्यापक मंदी आ सकती है। इससे दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं से डॉलर की निकासी होगी। इससे हम पर दोहरी मार पड़ेगी। मांग में कमी के साथ बड़ी मात्रा में डॉलर की निकासी होगी। इससे एक्सचेंज रेट कम हो जाएगा और हमारे लिए आयात करना महंगा हो जाएगा। इससे हमें ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ेगा। अगर हम व्यापक मंदी की चपेट में आए तो हमारे लिए काफी मुश्किल होगी।

बच नहीं सकता भारत
अय्यर ने कहा कि ग्लोबल इकॉनमी में भारत का हिस्सा महज सात फीसदी है। ऐसे में यह उम्मीद करना बेमानी है कि भारत मंदी के असर से बच जाएगा। अभी भारत की स्थिति दूसरी एमर्जिंग इकॉनमी से बेहतर लग रही है लेकिन जब संकट आएगा तो कोई भी इससे बच नहीं पाएगा। रुपये डॉलर के मुकाबले 80 के पार पहुंच गया है। इससे हमारे लिए आयात महंगा हो गया है। अगर यह 80 से 90 चला गया तो फिर महंगाई बेकाबू हो जाएगी। हमें अच्छे दौर की उम्मीद करनी चाहिए और बुरे दौर से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए।

ब्लूमबर्ग के सर्वे के बात करें तो अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत में मंदी की आशंका शून्‍य है। उनका कहना है कि एशिया और दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले भारत ज्‍यादा बेहतर स्थिति में दिख रहा है। इसकी वजह यह है कि भारत के अपना बड़ा बाजार होने के साथ मैन्युफैक्चरिंग और प्रॉडक्शन की बेहतर चेन है। इतना ही नहीं बचत के मामले में भी भारत का रेकॉर्ड सबसे बेहतर है। चीन और जापान के बाद भारत एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है। जापान में मंदी आने की आशंका 25 फीसदी और चीन में 20 फीसदी है।

Iमंदी हो सकती है वरदान
सिटीग्रुप (Citigroup) के मैनेजिंग डायरेक्टर और भारत में इसके चीफ इकनॉमिस्ट समीरन चक्रवर्ती (Samiran Chakraborty) ने ब्लूमबर्ग टीवी के साथ इंटरव्यू में कहा कि भारत कमोडिटीज का नेट इम्पोर्टर (Net Importer of Commodity) है। इसलिए विकसित देशों में मंदी से भारत को महंगाई के मोर्चे पर राहत मिलनी चाहिए। लेकिन भारत को भी वैश्विक मंदी के कारण दबाव का सामना करना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि इससे एक्सपोर्ट प्रभावित होगा और इकनॉमिक ग्रोथ में कमी आएगी। इस समय देश के नीति निर्माताओं का जोर महंगाई को काबू करने पर है। इसलिए कहा जा सकता है कि मंदी भारत के लिए कुछ मायनों में फायदेमंद हो सकती है।

मॉनसून से उम्मीद
इस बीच देश में मॉनसून की भूमिका बढ़ गई है। भारत की तीन लाख करोड़ डॉलर की इकॉनमी काफी हद तक खेती पर निर्भर है और खेती मॉनसून पर। देश में सालभर में होने वाली कुल बारिश में से 75 फीसदी मॉनसून में होती है। भारत धान, गेहूं और गन्ना सहित कई फसलों के उत्पादन में दुनिया के टॉप देशों में है। इस बार देश में मॉनसून के दौरान अब तक 11 फीसदी से अधिक बारिश हुई है। लेकिन समस्या यह है कि कुछ इलाकों में तो भारी बारिश हुई है और कुछ इलाकों में यह कम बरसा है। इससे उत्पादन के प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है। कम उत्पादन की आशंका से महंगाई को काबू में करने के सरकार के प्रयासों को भी झटका लगा है।

देश में धान बुवाई का रकबा पिछले साल के मुकाबले अब तक 19 फीसदी कम है। भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। उत्पादन में कमी से एक्सपोर्ट पर पाबंदी लगाई जा सकती है। इससे दुनियाभर में खाद्यान्न की कीमत में तेजी आ सकती है। दुनिया में पहले ही अनाज की कीमत रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है। जानकारों का मानना है कि चावल, दाल और सब्जियों की कीमत में तेजी आने की आशंका है। इसकी वजह यह है कि असामान्य मॉनसून से फसल का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है।

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