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परिसीमन हुआ तो हिंदीभाषी राज्यों में 84% सीटें बढ़ेंगी, चिंता में दक्षिणी-राज्य

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नई संसद की लोकसभा में 888 सांसद बैठ सकेंगे। इस बात ने दक्षिण के राज्यों को चिंता में डाल दिया है। इन राज्यों को डर है कि 46 साल से रुका हुआ परिसीमन जनसंख्या को आधार मानकर हुआ, तो लोकसभा में हिंदीभाषी राज्यों के मुकाबले उनकी सीटें करीब आधी हो जाएंगी।

परिसीमन के बाद दक्षिण के पांच राज्यों में 42% सीटें बढ़ेंगीं। जबकि हिंदीभाषी आठ राज्यों की सीटें करीब 84% बढ़ जाएंगीं। यानी दक्षिण राज्यों के मुकाबले दोगुनी सीटें। पिछले चुनाव में इन्हीं आठ राज्यों से BJP को 60% सीटें मिली थीं।

यह कैलकुलेशन कैसे किया, उसे 3 पॉइंट्स से समझिए

  • आखिरी बार 1976 में, 1971 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन किया गया था। उस वक्त देश की आबादी 54 करोड़ थी और हर 10 लाख आबादी पर एक लोकसभा सीट का फॉर्मूला अपनाया गया था। इस तरह कुल 543 सीटें तय की गईं।
  • 2011 में देश की आबादी करीब 121 करोड़ थी। उसके बाद जनगणना नहीं हुई है। अगर उसी जनगणना को आधार मानकर 2026 में परिसीमन किया जाता है और प्रति 10 लाख आबादी पर एक सीट का फॉर्मूला अपनाया जाता है, तो देशभर में कुल 1210 सीटें होंगी।
  • चूंकि नई संसद की लोकसभा में अधिकतम 888 सांसद ही बैठ सकेंगे। अगर इसे परिसीमन का आधार मानकर 1210 सीटों के साथ एडजस्ट करें, तो यूपी को 147 और कर्नाटक को 45 सीटें मिलेंगी। बाकी राज्यों में भी यही फॉर्मूला लगेगा।
  • परिसीमन की सुगबुगाहट क्यों शुरू हो रही है?
  • 1971 के बाद देश में 5 बार जनगणना हो चुकी है। 2021 वाली जनगणना अभी होनी है। आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई थी, तब देश की आबादी करीब 121 करोड़ थी। यानी 1971 के मुकाबले 2.25 गुना ज्यादा, लेकिन लोकसभा की सीटें नहीं बढ़ीं। ऐसे में सवाल है कि 46 साल बाद भी हम उसी फॉर्मूले पर क्यों टिके हुए हैं?
  • 2019 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में 1000 सीटें करने की मांग की थी। रविवार को नई संसद के उद्घाटन के बाद पीएम मोदी ने भी कहा कि आने वाले समय में लोकसभा की सीटें बढ़ेंगीं। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह और BJP राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने भी परिसीमन का जिक्र किया। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि 2026 में परिसीमन किया जा सकता है।
  • आखिरी परिसीमन से दक्षिण भारत के राज्य चिंता में क्यों हैं?
  • दअसल, 60 -70 के दशक में सरकार ने जनसंख्या काबू करने पर जोर लगा रखा था। दक्षिणी राज्य इस मामले में उत्तरी राज्यों खासतौर पर हिंदीभाषी राज्यों के मुकाबले काफी आगे थे, लेकिन उनकी इस उपलब्धि के पीछे एक कड़वा सच भी था। वह यह कि जनसंख्या घटी, तो लोकसभा में उत्तर भारतीय राज्यों के मुकाबले उनकी सीटें कम हो जाएंगी।
  • दक्षिणी राज्यों की इस शिकायत को दूर करने के लिए इंदिरा सरकार ने 1976 में इमरजेंसी के दौरान संविधान में संशोधन करके नए परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दी। सरकार का मानना था कि 2026 तक सभी राज्यों में जनसंख्या बढ़ने की दर एक जैसी हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं।
  • 2011 की जनगणना के मुताबिक दक्षिण भारत के राज्यों की औसत जनसंख्या वृद्धि दर 12.1% है, जबकि हिंदीभाषी राज्यों की औसत जनसंख्या वृद्धि दर 21.6%, यानी हिंदीभाषी राज्यों के मुकाबले करीब 9.5% कम। इसलिए दक्षिण के राज्यों को लगता है कि प्रति 10 लाख आबादी वाला फॉर्मूला अपनाया गया, तो लोकसभा में उनकी मौजूदगी उत्तर भारत के राज्यों के मुकाबले घट जाएगी।
  • नई संसद के मुताबिक लोकसभा की सीटें बढ़ती हैं, तो नॉर्थ ईस्ट के राज्यों पर इसका बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। आठ राज्यों को मिलाकर कुल 9 सीटों का ही इजाफा हो रहा है। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि असम में सबसे ज्यादा 9 सीटों की बढ़ोतरी हो रही है, जहां BJP मजबूत है। पिछले लोकसभा में उसे असम में 9 सीटें मिली थीं।
  • 2019 जैसा रिजल्ट रहा, तो हिंदीभाषी 8 राज्यों से BJP को 60% सीटें
  • दक्षिण भारत की पार्टियां और विपक्ष परिसीमन के सपोर्ट में नहीं है। उनका मानना है कि परिसीमन हुआ तो बीजेपी को फायदा होगा। इसे ऐसे समझते हैं-
  • परिसीमन के बाद लोकसभा में 888 सीटें होगीं। यानी बहुमत का आंकड़ा 445 होगा। 2019 में BJP को कुल 303 सीटें मिली थीं। इनमें 168 सीटें हिंदीभाषी राज्यों (काउ बेल्ट) से थीं। यानी करीब 55% सीटें।
  • मान लीजिए परिसीमन के बाद BJP 2019 का ही प्रदर्शन दोहराती है, तो उसे काउ बेल्ट में ही 309 सीटें मिलेंगी। यानी बहुमत के लिए जरूरी सीटों में से करीब 70% सीटें BJP इन आठ राज्यों से ही हासिल कर लेगी।
  • BJP ने 2019 में गैरहिंदी राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में जबरदस्त प्रदर्शन किया था। अगर वहीं प्रदर्शन BJP, परिसीमन के बाद भी दोहराती है तो गुजरात में 44, पश्चिम बंगाल में 28, कर्नाटक में 40 और महाराष्ट्र में 39 सीटें मिलेंगी। इस तरह बीजेपी इन 12 राज्यों से ही बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगी।
  • अब अंत में क्या 2026 या उससे पहले परिसीमन हो पाएगा?
  • अभी 2021 की जनगणना नहीं हुई है। सरकार परिसीमन से पहले जनगणना कराना चाहेगी। अगर 2021 की जनगणना नहीं होती है, तो वह 2011 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन करा सकती है, लेकिन इसमें भी पेंच है। दरअसल हमारे संविधान में आर्टिकल-81 में कहा गया है कि सदन में 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं होंगे। ऐसे में सीटों की संख्या बढ़ती है, तो संविधान संशोधन की जरूरत पड़ सकती है।
  • परिसीमन की सुगबुगाहट क्यों शुरू हो रही है?
  • 1971 के बाद देश में 5 बार जनगणना हो चुकी है। 2021 वाली जनगणना अभी होनी है। आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई थी, तब देश की आबादी करीब 121 करोड़ थी। यानी 1971 के मुकाबले 2.25 गुना ज्यादा, लेकिन लोकसभा की सीटें नहीं बढ़ीं। ऐसे में सवाल है कि 46 साल बाद भी हम उसी फॉर्मूले पर क्यों टिके हुए हैं?
  • 2019 में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में 1000 सीटें करने की मांग की थी। रविवार को नई संसद के उद्घाटन के बाद पीएम मोदी ने भी कहा कि आने वाले समय में लोकसभा की सीटें बढ़ेंगीं। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह और BJP राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने भी परिसीमन का जिक्र किया। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि 2026 में परिसीमन किया जा सकता है।
  • आखिरी परिसीमन से दक्षिण भारत के राज्य चिंता में क्यों हैं?
  • दअसल, 60 -70 के दशक में सरकार ने जनसंख्या काबू करने पर जोर लगा रखा था। दक्षिणी राज्य इस मामले में उत्तरी राज्यों खासतौर पर हिंदीभाषी राज्यों के मुकाबले काफी आगे थे, लेकिन उनकी इस उपलब्धि के पीछे एक कड़वा सच भी था। वह यह कि जनसंख्या घटी, तो लोकसभा में उत्तर भारतीय राज्यों के मुकाबले उनकी सीटें कम हो जाएंगी।
  • दक्षिणी राज्यों की इस शिकायत को दूर करने के लिए इंदिरा सरकार ने 1976 में इमरजेंसी के दौरान संविधान में संशोधन करके नए परिसीमन पर 2026 तक रोक लगा दी। सरकार का मानना था कि 2026 तक सभी राज्यों में जनसंख्या बढ़ने की दर एक जैसी हो जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं।
  • 2011 की जनगणना के मुताबिक दक्षिण भारत के राज्यों की औसत जनसंख्या वृद्धि दर 12.1% है, जबकि हिंदीभाषी राज्यों की औसत जनसंख्या वृद्धि दर 21.6%, यानी हिंदीभाषी राज्यों के मुकाबले करीब 9.5% कम। इसलिए दक्षिण के राज्यों को लगता है कि प्रति 10 लाख आबादी वाला फॉर्मूला अपनाया गया, तो लोकसभा में उनकी मौजूदगी उत्तर भारत के राज्यों के मुकाबले घट जाएगी।
  • नई संसद के मुताबिक लोकसभा की सीटें बढ़ती हैं, तो नॉर्थ ईस्ट के राज्यों पर इसका बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा। आठ राज्यों को मिलाकर कुल 9 सीटों का ही इजाफा हो रहा है। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि असम में सबसे ज्यादा 9 सीटों की बढ़ोतरी हो रही है, जहां BJP मजबूत है। पिछले लोकसभा में उसे असम में 9 सीटें मिली थीं।
  • 2019 जैसा रिजल्ट रहा, तो हिंदीभाषी 8 राज्यों से BJP को 60% सीटें
  • दक्षिण भारत की पार्टियां और विपक्ष परिसीमन के सपोर्ट में नहीं है। उनका मानना है कि परिसीमन हुआ तो बीजेपी को फायदा होगा। इसे ऐसे समझते हैं-
  • परिसीमन के बाद लोकसभा में 888 सीटें होगीं। यानी बहुमत का आंकड़ा 445 होगा। 2019 में BJP को कुल 303 सीटें मिली थीं। इनमें 168 सीटें हिंदीभाषी राज्यों (काउ बेल्ट) से थीं। यानी करीब 55% सीटें।
  • मान लीजिए परिसीमन के बाद BJP 2019 का ही प्रदर्शन दोहराती है, तो उसे काउ बेल्ट में ही 309 सीटें मिलेंगी। यानी बहुमत के लिए जरूरी सीटों में से करीब 70% सीटें BJP इन आठ राज्यों से ही हासिल कर लेगी।
  • BJP ने 2019 में गैरहिंदी राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में जबरदस्त प्रदर्शन किया था। अगर वहीं प्रदर्शन BJP, परिसीमन के बाद भी दोहराती है तो गुजरात में 44, पश्चिम बंगाल में 28, कर्नाटक में 40 और महाराष्ट्र में 39 सीटें मिलेंगी। इस तरह बीजेपी इन 12 राज्यों से ही बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगी।
  • अब अंत में क्या 2026 या उससे पहले परिसीमन हो पाएगा?
  • अभी 2021 की जनगणना नहीं हुई है। सरकार परिसीमन से पहले जनगणना कराना चाहेगी। अगर 2021 की जनगणना नहीं होती है, तो वह 2011 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन करा सकती है, लेकिन इसमें भी पेंच है। दरअसल हमारे संविधान में आर्टिकल-81 में कहा गया है कि सदन में 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं होंगे। ऐसे में सीटों की संख्या बढ़ती है, तो संविधान संशोधन की जरूरत पड़ सकती है।
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