प्रखर अरोड़ा
लिखो उस कुतिया की आँखों के बारे में जिसके पिल्ले का धड़ सड़क से गुज़र रहे टायरों में थोड़ा-थोडा चिपक चिपक कर साफ़ हो रहा है.
लिखो उस शर्मिंदा हिजड़े के नाक के पसीने के बारे में जो सब कुछ होना चाहता है सिवाय एक हिजड़े के।
लिख सकते हो तो लिखो उस जवान हाथ की कंपकंपाहट जो परिवार की जिम्मेदारियों को चाह कर भी पूरा न कर पाने की पीड़ा में ब्लेड लिए नस काटने के नफे-नुक्सान को तौल रहा है।
कभी लिखकर देखो उस चिड़िया के फडफडाते परों के बारे में जो एक चील को अपने सामने से अपना बच्चा दबोचते हुए देख रही है।
या लिखो उस मुर्गे के कानों के बारे में जो ध्यान से सुन रहे हैं दो ग्राहकों की झटके और हलाल की डिबेट।
तुम लिखो एक झोपड़ी में रात भर चली फुसफुसाती अन्ताक्षरी को जो टूटी छत से पानी टपकने की वजह से हो रही है।
किसी दिन उतार दो पन्ने पर, उस विकलांग की शर्म जिसने बाथरूम पहुँचते पहुँचते फर्श पर ही कर दी है।
तुम लिख कर देखो उस बाँझ आँख की चमक जिसे वाश-बेसिन में पड़ी उलटी में एक उम्मीद की रंगोली दिख रही है।
चाहो तो उस ट्यूब-बेल की मोटी धार के बारे में लिख सकते हो, जो कुछ नंगे बच्चों के पिछवाड़े को चूम कर धान को सुनहरा बना रहे हैं।
लिखो शहर की सबसे ऊंची बिल्डिंग की रेलिंग पर खड़े एक बेरोजगार हारे नौजवान की उड़ान, जो वो बस लेने वाला है।
तुम लिखो आसमान में बिन-मौसम काले बादल देखते हुए एक किसान की बेबसी और वहीँ थोड़ी दूर पर खेत में मिल रहे एक नए जोड़े के चेहरे की बूँदें।
या लिखो शमशान में एक कंधे पर गोल घूम रहे घड़े के छेद से गिरते पानी की छींटें जो सामने पड़ी आग में किसी को जगाने की कोशिश कर रही हैं।
लिख सकते हो तो लिखो उस बच्चे के भरोसे के बारे में जो छत से गोल घूम कर बस कूदने वाला है कि शक्तिमान आएगा।
और लिखो उन दोस्तों की ठिठोली के बारे में भी जिन्हें लग रहा है कि ये जिंदगी नहीं सिर्फ मज़ाक है।
लिखो दूर पहाड़ से बड़े शहर आई अकेली उस बुढिया के बारे में जिसे अस्पताल में अकेले इलाज कराना, एक पूरा जंगल काटने से ज्यादा कठिन लग रहा है।
लिखो उस भिखारी की फैली पुतलियों और अचानक उठे दर्द के बारे में जो सामने से आती एक बड़ी गाड़ी को देखकर बढ़ गया है।
लिखो उस रिश्तेदार के भेडिये जैसे दांतों के बारे में जो एक लड़की को कमरे में अकेले सोते हुए देखकर लार चुवा रहे हैं।
लिखो किसी गार्ड की बोरियत का बहीखाता जिसमे सुबह से एक हजार कार और दो हजार मोटरसाइकिल का डेबिट क्रेडिट हो चुका है।
लिखो कुछ ऐसा जिसपर किसी का ध्यान नहीं गया। लिखो क्यूंकि तुम्हारे पास बहुत सी अनकही कहानियाँ है आत्मा के छुपे हुए रिक्त स्थान में।
लिखो,जिसको पढ़कर कोई वाह-वाह न करे. लिखो कि तुम्हारे लिखे का चर्चा न हो, लिखो बस कि अभी बहुत कुछ लिखना है तुम्हे।
कल कभी नहीं आता. यह सिर्फ़ टालने का बहाना है. तुम भी ये सब कल से लिखना चाहोगे. आज तो तुम्हे किसी के गालों के तिल के बारे में लिखना है. है न ?