~डॉ. सलमान अरशद
आप प्रेम करते हैं, प्रेम ख़ोजते हैं, अपना प्रेम किसी पर उड़ेलने के लिए पात्र तलाश करते हैं, प्रेम में किसी से जुड़ते हैं और जुड़ते चले जाते हैं तब किसी रोज़ जब उस प्रेम से जुदा होना पड़ता है तो तड़प उठते हैं।
स्त्री और पुरुष को जोड़ने वाली ये भावना हमारे सांस्कृतिक जीवन की बुनियाद है। स्त्री और पुरुष के बीच संस्कृति निर्मित होने की प्रक्रिया में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिसे नहीं होना था, लेकिन इस होने में जिन हालात ने उर्वरक का काम किया है, उन्हें बदल दीजिये, फिर रिश्तों की तश्वीर पर जमी धूल साफ़ हो जाएगी। लेकिन इस धूल को आधार बनाकर स्त्री बनाम पुरुष की जंग खड़ी कीजियेगा तो स्त्री और पुरुष दोनों सिर्फ बेचैनियों का शिकार होंगे।
स्त्री या पुरुष एक दूसरे के बिना अपना वजूद क़ायम नहीं रख सकते, इसे नहीं भूलना चाहिए।
आपके प्रेम का एक अहम पक्ष सेक्स है। ये प्राकृतिक है लेकिन इसके इर्द गिर्द जो नियम बनाये गए वो सांस्कृतिक है, सामाजिक है। इन नियमों में न तो सब अच्छा है न ही सब बुरा, इन्हें बेहतर बनाइये लेकिन इंसान से प्राणिजगत की ओर यात्रा मत कीजिये, पीछे लौटने का न तो कोई मतलब है न ही इसकी कोई मंज़िल।
बार बार पार्टनर बदलना, न तो आज़ादी का कोई मकाम हो सकता है न ही इससे कुछ सार्थक निर्मित होने वाला है। संबंधों की बुनियाद कमिटमेंट है, इसके बिना सेक्स जीवन को संतुष्ट तो नहीं ही करेगा।
एक अजीब सी बहस चल निकली है इसके इर्द गिर्द। लेकिन ऐसी हर बहस को इस परिप्रेक्ष्य में देखना होगा कि आप एक व्यक्तित्व होते हुए भी एक सामाजिक उत्पाद भी हैं। आपके होने में ढेर सारे लोगों के होने ने मदद किया है, शारीरिक और मानसिक रूप से इनके बिना आपका कोई वजूद नहीं हो सकता था।
आपका होना, दूसरे अन्य लोगों के होने को प्रभावित करता है। इसलिए अस्तित्व के सागर में अलग थलग टापू बनने की कोशिश न करें, ये नहीं हो पायेगा।
सेक्स में आपका पूरा आतित्व शामिल होता है, शरीर का हर अंग, सारे ग्लैंड्स, आपका अंदर बाहर सब, एक काम जिसमें आपका पूरा वजूद शामिल होता है उसे “पान खाकर थूकने” के लेवल पर ले आना कोई समझदारी नहीं है।
मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि रिश्ता ज़हर बन जाये तो भी उसे ढोते रहें, लेकिन ये ज़रूर कह रहा हूँ कि प्रेम की प्यास भटकने से नहीं ठहरने से तुष्ट होगी, कहीं किसी एक पर ठहरिए !
(मैं न तो समाजशास्त्री हूँ, न सेक्सोलॉजिस्टि न ही चिकित्सक, मन का प्रलाप था, लिख दिया, काम का लगे तो आपका वरना दफ़ा कीजिये)
~डॉ. सलमान अरशद