शशिकांत गुप्ते
किसी चिंतक के ये विचार हैं।मजहब पर गुफ़्तगू एक ऐसी गुफ़्तगू जो कभी खत्म नहीं होती।आम आदमी अगर खत्म करना भी चाहे तो सियासित उसे किसी न किसी रूप में जिंदा रखती है।
इस मुद्दे पर प्रख्यात शायर साहिर लुधियानवी यह शेर मौजु है।
हर एक दौर का मज़हब, नया ख़ुदा लाया
करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें
मज़हब को लेकर शायर कैफ़ी आज़मीजी फ़रमाते हैं।
इसको मज़हब कहो या सियासत कहो
ख़ुदख़ुशी का हुनर तुम सीखा तो चले
सबसे अच्छी और सटीक बात कही है,प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी ने
मज़हबी बहस मैने की ही नहीं
फ़ालतू अक्ल मुझ में थी ही नहीं
अंधश्रद्धा को त्याग कर मज़हब को समझना चाहिए,यह बात स्पष्ट होती है। प्रख्यात शायर गीतकार स्व.गोपालदास नीरज के इस शेर में
जिसमें मज़हब के हर इक रोग का लिखा है इलाज़
वो क़िताब हम ने किसी रिंद के घर देखी है
रिंद का अर्थ ऐसा व्यक्ति जो धार्मिक बातों पर अंधविश्वास न रखता हो, और तर्क तथा बुद्धि के विचार से केवल युक्ति संगत बातें मानता हो।
युक्ति संगत बात करने वालों के लिए एक शायर फ़रमाते हैं।
मोहब्बत करने वालों का अलग इक अपना मज़हब है
वो राह-ए-इश्क़ में सूद-ओ-जियाँ देखा नहीं करतें
सूद-ओ-जियाँ का मतलब नफा नुकसान।
मज़हब से हटकर इंसानियत की बात इस शेर में कही गई है।
प्रख्यात शायर निदा फ़ाजली
का यह शेर है।
हिन्दू भी खुशहाल है मुसलमा भी खुशहाल है
फ़क़त परेशान है तो इंसान परेशान है
आदमीयत को परिभाषित करता
शायर हाफ़िज़ बनारसी का यह शेर मौजु है।
इश्क में हर नफ़स इबादत है
मज़हब-ए-इश्क आदमीयत है
नफ़स का अर्थ हरएक सांस और हरएक पल भी।
अंत में एक सूफी संत की उपदेशक रचना प्रस्तुत है।
फक्र से बकरा यूँ बोला मै ही मै इस दुनिया में हूँ
तब कहा कसाई ने किस खेत की मूली है तू
बात जब मानी नहीं उस नादान में तब फेर दी गुस्से में आकर छुरी जल्लाद ने
बकरे का गोश्त खाने वाले गोश्त ले गए।
पूर्व में पिंजारे( रुई धुनकनी वाले) बकरे आँतों की रुई की घुनकनी बनातें थे।
आगे रचना कार रचना में कहता है।
जब्र के सोंटे से जिस दम आँतें थर्राने लगी*
तब मै ही मै के बदले तुंही तुंही तुंही की सदा आने लगी
किसी भी व्यक्ति को उक्त स्थिति आने ही नहीं देना चाहिए।
शायर बशीर बद्र ने कहा है।
खुदा हमें ऐसी खुदाई न दे
हमारे शिवाय कुछ दिखाई न दे
मज़हब और विज्ञान का आपस में सामंजस्य होना यह दुर्भाग्य है। इसीकारण महान वैज्ञानिक न्यूटन का यह नियम धर्म और सियासत की गिरफ्त में आ गया है।
To every action there is equal and opposite reaction
“हर क्रिया की एक समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है”
आज यही हो रहा है।
अंत में संत कबीरसाहब की रचना प्रस्तुत करना ही उचित है।
साधो, देखो जग बौराना
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना
हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना
शशिकांत गुप्ते इंदौर