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अवैध बस्तियां….सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने सरकारी कामकाज की पोल-पट्टी खोल दी है

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सुप्रीम कोर्ट ने कथित अतिक्रमणकारी परिवारों को फौरी राहत ही दी है। क्योंकि नियम विरुद्ध कब्जे को कोई भी अदालत जायज नहीं मान सकती। इसलिए यदि अवैध कब्जा है तो उसे आज नहीं तो कल खाली करना ही होगा। फिर भी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने सरकारी कामकाज की पोल-पट्टी खोल दी है।

Patrika Opinion: बरसों बाद ही क्यों याद आती हैं अवैध बस्तियां

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर वर्षों से कब्जा जमाए हजारों परिवारों को रातोंरात उजडऩे से रोक कर मानवीय दृष्टिकोण से बड़ी राहत दी है। उत्तराखंड हाईकोर्ट के रेलवे के पक्ष में फैसला सुनाने के बाद हाड़तोड़ सर्दी में करीब 50 हजार लोगों के समक्ष बेघर होने का खतरा पैदा गया था। हालांकि स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने कथित अतिक्रमणकारी परिवारों को फौरी राहत ही दी है। क्योंकि नियम विरुद्ध कब्जे को कोई भी अदालत जायज नहीं मान सकती। इसलिए यदि अवैध कब्जा है तो उसे आज नहीं तो कल खाली करना ही होगा। फिर भी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने सरकारी कामकाज की पोल-पट्टी खोल दी है।

सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिस जमीन पर दशकों से कब्जा हो उसे छुड़ाने के लिए रेलवे आखिर अब क्यों जागी? और अब तक अतिक्रमणकारियों को किस नियम के तहत राज्य सरकार सुविधाएं मुहैया कराती रही? यदि रेलवे और राज्य सरकार के अधिकारी पचास साल तक सोए न रहते तो इस दौरान वहां बनाए गए पक्के ढांचे कभी खड़े ही नहीं हो पाते। इस इलाके में चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं। इसके अलावा दशकों पहले बनी दुकानें भी हैं। कब्जाधारियों का दावा है कि वे यहां करीब 50 साल से रह रहे हैं और नगर निगम को टैक्स भी देते रहे हैं। जबकि, रेलवे का दावा है कि उसकी करीब 78 एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा जमा लिया गया है। इस मामले में विवाद का एक बिंदु यह भी है कि आखिर जमीन किसकी है? इसे लेकर रेलवे और राज्य सरकार के बीच भी विवाद है। इसलिए यह भी तय करना होगा कि आखिर जमीन है किसकी।

देश में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण पुरानी समस्या है। करीब-करीब हर शहर में यह स्थिति दिखती है। बताने की जरूरत नहीं कि स्थानीय राजनेताओं ओर सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर यह संभव नहीं है। अकेले रेलवे की सैकड़ों हेक्टेयर जमीन पर अतिक्रमण है। मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 तक रेलवे की कुल 4.78 लाख हेक्टेयर जमीन में से 821.46 हेक्टेयर पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। अन्य मंत्रालयों और राज्य सरकारों की जमीन को मिला लें तो हजारों हेक्टेयर जमीन अवैध कब्जे में हैं। जाहिर है जब भी उन जमीनों पर कोई योजना बनेगी, वहां बसे परिवारों के समक्ष उजडऩे का खतरा होगा। इसलिए पहली जरूरत तो यही है कि सरकारें सतत निगरानी रखें ताकि कोई अवैध कब्जा हो ही न सके। दूसरी जरूरत दशकों से बसे लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करने की है। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही चाहा है।

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